26 दिस॰ 2015

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Chanakya Neeti - Twelfth Chapter in Hindi (चाणक्य नीति - बारहवा अध्याय)

By: Successlocator On: दिसंबर 26, 2015
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  • 1: घर आनंद से युक्त हो, संतान बुद्धिमान हो, पत्नी मधुर वचन बोलने वाली हो, इच्छापूर्ति के लायक धन हो, पत्नी के प्रति प्रेमभाव हो, आज्ञाकारी सेवक हो, अतिथि का सत्कार और श्री शिव का पूजन प्रतिदिन हो, घर में मिष्ठान व शीतल जल मिला करे और महात्माओ का सत्संग प्रतिदिन मिला करे तो ऐसा गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों से अधिक धन्य है। ऐसे घर का स्वामी अत्यंत सुखी और सौभाग्यशाली होता है।

    2: जो व्यक्ति दुःखी ब्राह्मणों पर दयामय होकर अपने मन से दान देता है, वह अनंत होता है। हे राजन ! ब्राह्मणों को जितना दान दिया जाता है, वह उतने से कई गुना अधिक होकर वापस मिलता है।

    3: जो पुरुष अपने वर्ग में उदारता, दूसरे के वर्ग पर दया, दुर्जनों के वर्ग में दुष्टता, उत्तम पुरुषों के वर्ग में प्रेम, दुष्टों से सावधानी, पंडित वर्ग में कोमलता, शत्रुओं में वीरता, अपने बुजुर्गो के बीच में सहनशक्ति,स्त्री वर्ग में धूर्तता आदि कलाओं में चतुर है, ऐसे ही लोगो में इस संसार की मर्यादा बंधी हुई है।

    4: दोनों हाथ दान देने से रहित, दोनों काल वेदशास्त्र को सुनने के विरोधी, दोनों नेत्र महात्माओं के दर्शन से वंचित, दोनों पैर तीर्थयात्रा से दूर और केवल अन्याय के द्वारा कमाए धन से पेट भरकर अहंकार करने वाले, हे रंगे सियार ! निंदा के योग्य इस नीच शरीर को छोड़ दे।

    5: जिनकी भक्ति यशोदा के पुत्र (श्रीकृष्ण) के चरणकमलों में नहीं है, जिनकी जिह्वा अहीरों की कन्याओं (गोपियों) के प्रिय (श्री गोविन्द) के गुणगान नहीं करती, जिनके कान परमानंद स्वरूप श्रीकृष्णचन्द्र की लीला तथा मधुर रसमयी कथा को आदरपूर्वक सुनने में नहीं है, ऐसे लोगो को मृदंग की थाप, धिक्कार है, धिक्कार है (धिक्तान्-धक्तान) कहती है।

    6: वसंत ऋतु में यदि करील के वृक्ष पर पत्ते नहीं आते तो इसमें वसंत का क्या दोष है ? सूर्य सबको प्रकाश देता है, पर यदि दिन में उल्लू को दिखाई नहीं देता तो इसमें सूर्य का क्या दोष है ? इसी प्रकार वर्ष का जल यदि चातक के मुंह में नहीं पड़ता तो इसमें मेघों का क्या दोष है ? इसका अर्थ यही है कि ब्रह्मा ने भाग्य में जो लिख दिया है, उसे कौन मिटा सकता है ?

    7: अच्छी संगति से दुष्टों में भी साधुता आ जाती है। उत्तम लोग दुष्ट के साथ रहने के बाद भी नीच नहीं होते। फूल की सुगंध को मिट्टी तो ग्रहण कर लेती है, पर मिट्टी की गंध को फूल ग्रहण नहीं करता।

    8: साधु अर्थात महान लोगो के दर्शन करना पुण्य तीर्थो के समान है। तीर्थाटन का फल समय से ही प्राप्त होता है, परन्तु साधुओं की संगति का फल तत्काल प्राप्त होता है।

    9: एक ब्राह्मण से किसी ने पूछा ----'हे विप्र ! इस नगर में बड़ा कौन है ? ब्राह्मण ने उत्तर दिया ----'ताड के वृक्षों का समूह।' प्रश्न करने वाले ने एक पल बाद फिर पूछा -----'इसमें दानी कौन है ?' उत्तर मिला -----'धोबी है। वही प्रातःकाल प्रतिदिन कपड़ा ले जाता है और शाम को दे जाता है।' पूछा गया -----'चतुर कौन है ?' उत्तर मिला ------'दुसरो की स्त्री को चुराने में सभी चतुर है।' आश्चर्य से उसने पूछा ------'तो मित्र ! यहां जीवित कैसे रहते हो ?' उत्तर मिला ------'में जहर के कीड़ों की भांति किसी प्रकार जी रहा हूं।

    10: जहां ब्राह्मणों के चरण नहीं धोये जाते अर्थात उनका आदर नहीं किया जाता, जहां वेद-शास्त्रों के श्लोको की ध्वनि नहीं गूंजती तथा यज्ञ आदि से देव पूजन नहीं किया जाता, वे घर श्मशान के समान है।

    11: सत्य मेरी माता है, पिता मेरा ज्ञान है, धर्म मेरा भाई है, दया मेरी मित्र है, शांति मेरी पत्नी है और क्षमा मेरा पुत्र है, ये छः मेरे बंधु-बांधव है।

    12: सभी शरीर नाशवान है, सभी धन-संपत्तियां चलायमान है और मृत्यु के निकट है। ऐसे में मनुष्य को सदैव धर्म का संचय करना चाहिए। इस प्रकार यह संसार नश्वर है। केवल सद्कर्म ही नित्य और स्थाई है। हमें इन्हीं को अपने जीवन का अंग बनाना चाहिए।

    13: निमंत्रण पाकर ब्राह्मण प्रसन्न होते है, जैसे हरी घास देखकर गौओ के लिए उत्सव अर्थात प्रसन्नता का माहौल बन जाता है। ऐसे ही पति के प्रसन्न होने पर स्त्री के लिए घर में उत्सव का सा दृश्य उपस्थित हो जाता है, परन्तु मेरे लिए भीषण रण में अनुराग रखना उत्सव के समान है। मेरे लिए युद्धरत होना जीवन की सार्थकता है।

    14: जो व्यक्ति दूसरे की स्त्री को माता के समान, दूसरे के धन को ढेले (कंकड़) के समान और सभी जीवों को अपने समान देखता है, वही पंडित है, विद्वान है।

    15: महर्षि वशिष्ठ राम से कहते है ------'हे राम ! धर्म के निर्वाह में सदैव तत्पर रहने, मधुर वचनों का प्रयोग करने, दान में रूचि रखने, मित्र से निश्छल व्यवहार करने, गुरु के प्रति सदैव विनम्रता रखने, चित्त में अत्यंत गंभीरता को बनाए रखने, ओछेपन को त्यागने, आचार-विचार में पवित्रता रखने, गुण ग्रहण करने के प्रति सदैव आश्वस्त रहे।
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    Description: Chanakya

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