6 सित॰ 2017
Tagged Under: motivational
दोस्तों कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें दूसरों का बेवजह अपमान करने में आनंद मिलता है । ऐसे लोग बार-बार सबके सामने किसी ना किसी की बुराई करके उन्हें अपमानित करने की कोशिश करते रहते हैं। यदि आपके साथ भी कोई ऐसा करता है तो ऐसे में आपको क्या करना चाहिए इसका जवाब खुद भगवान श्रीकृष्ण ने दिया है।
महाभारत में श्री कृष्ण और शिशुपाल का प्रसंग प्रसिद्ध है। उसी प्रसंग से हम यह सीख सकते हैं कि यदि कोई हमारा अपमान करता है तो हमें क्या करना चाहिए। महाभारत में कृष्ण और शिशुपाल का प्रसंग काफी चर्चा में रहा है । शिशुपाल श्री कृष्ण की बुआ का पुत्र था । श्री कृष्ण ने शिशुपाल की माता को यह वचन दिया था कि वह शिशुपाल की 100 गलतियां को माफ करेगा लेकिन सो गलतियां पूरी हो जाने के बाद वह उसे उचित दंड अवश्य देगा ।
विदर्भ राजा के पांच पुत्र थे और उनकी पुत्री थी जिसका नाम था रुकमणी । रुकमणी के माता-पिता उसका विवाह भगवान श्रीकृष्ण के साथ करना चाहते थे लेकिन रुक्मी जो रुकमणी का बड़ा भाई था वह चाहता था कि रुक्मणी का विवाह शिशुपाल के साथ हो और इसलिए उसने रुकमणी टीका शिशुपाल के यहां भिजवा दिया। रुक्मणी श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी और इसलिए रुक्मणी ने एक ब्राह्मण के हाथों श्रीकृष्ण को संदेश भिजवा दिया।
भगवान श्री कृष्ण भी रुक्मणी को प्रेम करते थे और वह यह भी जानते थे कि रुकमणी के माता-पिता उसका विवाह उन्हीं के साथ करना चाहते हैं लेकिन उसका बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण को शत्रु मानता है जिसके कारण यह विवाह नहीं होने देगा। श्रीकृष्ण ने रुक्मी के विरोध के बावजूद रुकमणी से विवाह कर लिया। इस विवाह को शिशुपाल ने अपना अपमान समझा और भगवान श्रीकृष्ण को अपना शत्रु समझने लगे।
कुछ वक्त बाद जब युधिष्ठिर ने राज सूर्य यज्ञ का आयोजन किया तो उस आयोजन में सभी राजा आमंत्रित किया गए । उसी आयोजन में शिशुपाल भी आया था जब देवता की जगह पर श्रीकृष्ण का सम्मान और पूजा करते देखा तो शिशुपाल बहुत ही क्रोधित हो गया और उसने श्रीकृष्ण को अपशब्द कहने शुरू कर दिए। यज्ञ में उपस्थित सभी लोगों ने शिशुपाल को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं माना ।
अर्जुन और भीम तक तो शिशुपाल को मारने के लिए खड़े हो गए थे लेकिन श्रीकृष्ण ने उन दोनों को रोक दिया । शिशुपाल लगातार गालियां देता रहा और श्रीकृष्ण उनकी गालियों को गिनते रहे। जब शिशुपाल ने सौ अपशब्द कह दिए तब श्री कृष्ण ने कहा अब तुम रुक जाओ वरना परिणाम अच्छा नहीं होगा । श्रीकृष्ण के समझाने के बावजूद भी शिशुपाल नहीं रूक पाया और अपने अपशब्द कहता रहा ।
श्रीकृष्ण के समझाने के बाद शिशुपाल के मुंह से जैसे ही पहला अपशब्द निकला श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का मस्तक काट दिया।
दोस्तों इस प्रसंग से हम सीख ले सकते हैं यदि कोई व्यक्ति बार-बार हमारा अपमान करता है तो उसे समझाने का पूरा प्रयास करना चाहिए लेकिन यदि बार बार समझाने के बाद भी वह व्यक्ति ना समझे और आप के मान सम्मान को ठेस पहुंचाता रहे तो फिर उसे उचित जवाब देना भी जरुरी है।
ऐसे लोगों को चुप कराने के लिए हमें श्रेष्ठ काम करना चाहिए और उसकी बातों को गलत साबित कर देना चाहिए । दोस्तों भगवान श्री कृष्ण और शिशुपाल का ये प्रसंग हमें जीवन में इस तरह के लोगों से निपटने के लिए एक बहुत अच्छी सीख देता है । जिसे अपनाकर हम अपने जीवन में कई परेशानियों को खत्म कर सकते हैं।
बार बार अपमान करने वालो के साथ क्या करना चाहिए जानिए
By:
Successlocator
On: सितंबर 06, 2017
दोस्तों कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें दूसरों का बेवजह अपमान करने में आनंद मिलता है । ऐसे लोग बार-बार सबके सामने किसी ना किसी की बुराई करके उन्हें अपमानित करने की कोशिश करते रहते हैं। यदि आपके साथ भी कोई ऐसा करता है तो ऐसे में आपको क्या करना चाहिए इसका जवाब खुद भगवान श्रीकृष्ण ने दिया है।
महाभारत में श्री कृष्ण और शिशुपाल का प्रसंग प्रसिद्ध है। उसी प्रसंग से हम यह सीख सकते हैं कि यदि कोई हमारा अपमान करता है तो हमें क्या करना चाहिए। महाभारत में कृष्ण और शिशुपाल का प्रसंग काफी चर्चा में रहा है । शिशुपाल श्री कृष्ण की बुआ का पुत्र था । श्री कृष्ण ने शिशुपाल की माता को यह वचन दिया था कि वह शिशुपाल की 100 गलतियां को माफ करेगा लेकिन सो गलतियां पूरी हो जाने के बाद वह उसे उचित दंड अवश्य देगा ।
विदर्भ राजा के पांच पुत्र थे और उनकी पुत्री थी जिसका नाम था रुकमणी । रुकमणी के माता-पिता उसका विवाह भगवान श्रीकृष्ण के साथ करना चाहते थे लेकिन रुक्मी जो रुकमणी का बड़ा भाई था वह चाहता था कि रुक्मणी का विवाह शिशुपाल के साथ हो और इसलिए उसने रुकमणी टीका शिशुपाल के यहां भिजवा दिया। रुक्मणी श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी और इसलिए रुक्मणी ने एक ब्राह्मण के हाथों श्रीकृष्ण को संदेश भिजवा दिया।
भगवान श्री कृष्ण भी रुक्मणी को प्रेम करते थे और वह यह भी जानते थे कि रुकमणी के माता-पिता उसका विवाह उन्हीं के साथ करना चाहते हैं लेकिन उसका बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण को शत्रु मानता है जिसके कारण यह विवाह नहीं होने देगा। श्रीकृष्ण ने रुक्मी के विरोध के बावजूद रुकमणी से विवाह कर लिया। इस विवाह को शिशुपाल ने अपना अपमान समझा और भगवान श्रीकृष्ण को अपना शत्रु समझने लगे।
कुछ वक्त बाद जब युधिष्ठिर ने राज सूर्य यज्ञ का आयोजन किया तो उस आयोजन में सभी राजा आमंत्रित किया गए । उसी आयोजन में शिशुपाल भी आया था जब देवता की जगह पर श्रीकृष्ण का सम्मान और पूजा करते देखा तो शिशुपाल बहुत ही क्रोधित हो गया और उसने श्रीकृष्ण को अपशब्द कहने शुरू कर दिए। यज्ञ में उपस्थित सभी लोगों ने शिशुपाल को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं माना ।
अर्जुन और भीम तक तो शिशुपाल को मारने के लिए खड़े हो गए थे लेकिन श्रीकृष्ण ने उन दोनों को रोक दिया । शिशुपाल लगातार गालियां देता रहा और श्रीकृष्ण उनकी गालियों को गिनते रहे। जब शिशुपाल ने सौ अपशब्द कह दिए तब श्री कृष्ण ने कहा अब तुम रुक जाओ वरना परिणाम अच्छा नहीं होगा । श्रीकृष्ण के समझाने के बावजूद भी शिशुपाल नहीं रूक पाया और अपने अपशब्द कहता रहा ।
श्रीकृष्ण के समझाने के बाद शिशुपाल के मुंह से जैसे ही पहला अपशब्द निकला श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का मस्तक काट दिया।
दोस्तों इस प्रसंग से हम सीख ले सकते हैं यदि कोई व्यक्ति बार-बार हमारा अपमान करता है तो उसे समझाने का पूरा प्रयास करना चाहिए लेकिन यदि बार बार समझाने के बाद भी वह व्यक्ति ना समझे और आप के मान सम्मान को ठेस पहुंचाता रहे तो फिर उसे उचित जवाब देना भी जरुरी है।
ऐसे लोगों को चुप कराने के लिए हमें श्रेष्ठ काम करना चाहिए और उसकी बातों को गलत साबित कर देना चाहिए । दोस्तों भगवान श्री कृष्ण और शिशुपाल का ये प्रसंग हमें जीवन में इस तरह के लोगों से निपटने के लिए एक बहुत अच्छी सीख देता है । जिसे अपनाकर हम अपने जीवन में कई परेशानियों को खत्म कर सकते हैं।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें