8 सित॰ 2017
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एक पहुंचे हुए गुरु अपने चार शिष्यों के साथ रहते थे। शिष्यों को तरह तरह के ज्ञान बताते। एक दिन जब गुरु ने शिष्यों को कहा कि उनकी शिक्षा पूरी हो चुकी है तो वे गुरूजी से गुरुदक्षिणा मांगने का अनुरोध करने लगे।
पहले तो गुरु ने उनको मना किया कि उन्हें गुरुदक्षिणा देने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन शिष्यों के बार बार अनुरोध करने पर गुरु ने कहा..
"ठीक है अगर तुम मुझे देना ही चाहते हो तो मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बाद एक टोकरा सुखी पत्तियां मेरे लिए ला दो।"
शिष्यों ने सोचा कि गुरूजी को इतनी छोटी सी चीज चाहिए जिसको तो वे चुटकियों में ला सकते हैं। उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी गुरू से आज्ञा ली और चल पड़े घने जंगल में सुखी पत्तियां ढूंढने।।
जंगल में जाकर उन्होंने देखा कि वहां तो पेड़ों पर ही पत्तियां थी। कुछेक पत्तियां जमीन पर बिखरी पड़ी थी लेकिन वो तो बहुत थोड़ी सी थी। उनसे एक टोकरी तो क्या एक मुट्ठी भी न भरे। चारों शिष्य बहुत ही दुखी हो गए। सोचने लगे कि जंगल में तो इतनी सारी पत्तियां होनी चाहिए कि घर भर जाए लेकिन यहां तो एक टोकरी भरने को भी पत्तियां नहीं। वहां पास में एक लकड़हारा लकड़ियाँ काट रहा था। शिष्यों के पूछने पर उसने बताया कि सुखी पत्तियां सुबह ही समेट कर अपने घर ले जाकर आग जलाने में उपयोग में ले ली। उसने उन्हें बताया कि आगे एक गाँव है जहां एक व्यापारी सुखी पत्तियां कोई दे सकता है।
चारों गाँव में गये। व्यापारी ने उन्हें बताया कि उसने तो पत्तियों के पत्तल बना बना कर बेच दिए। अब उसके पास एक भी सुखी पत्ती नहीं थी। चारों अत्यन्त मायूस हो गए। व्यापारी ने उन्हें एक औरत का पता बताया जिसके पास सुखी पत्तियां होने की संभावना थी। पर औरत के पास जाने पर पता चला कि औरत तरह तरह की पत्तियों से दवाइयां बनाती थी और उसके पास आज कोई सुखी पत्ती नहीं थी।
दुखी होकर चारों गुरु के पास लौटे और सारा हाल कह दिया। उन्होंने बताया कि उन्हें अंदाजा नहीं था कि सुखी पत्तियों का भी इतना प्रयोग किया जाता।
गुरु ने हंसते हुए कहा,"सुनो तुम सब, यह जो ज्ञान तुम्हें आज मिला है यही मेरी गुरुदक्षिणा है। कभी किसी चीज को छोटा मत समझो। हर छोटी से छोटी चीज बड़े से बड़ा काम कर सकती है। जो काम एक सुई कर सकती है वह काम क्या एक तलवार क्र सकती है भला। तुम्हें यही समझाने के लिए मैने तुम्हें पत्तियां लाने को कहा था। और चूँकि तुम समझ गए हो तुम्हें ज्ञान मिल गया है तो मुझे भी अपनी गुरुदक्षिणा मिल गयी है।"
गुरु दक्षिणा।
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On: सितंबर 08, 2017
एक पहुंचे हुए गुरु अपने चार शिष्यों के साथ रहते थे। शिष्यों को तरह तरह के ज्ञान बताते। एक दिन जब गुरु ने शिष्यों को कहा कि उनकी शिक्षा पूरी हो चुकी है तो वे गुरूजी से गुरुदक्षिणा मांगने का अनुरोध करने लगे।
पहले तो गुरु ने उनको मना किया कि उन्हें गुरुदक्षिणा देने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन शिष्यों के बार बार अनुरोध करने पर गुरु ने कहा..
"ठीक है अगर तुम मुझे देना ही चाहते हो तो मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बाद एक टोकरा सुखी पत्तियां मेरे लिए ला दो।"
शिष्यों ने सोचा कि गुरूजी को इतनी छोटी सी चीज चाहिए जिसको तो वे चुटकियों में ला सकते हैं। उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी गुरू से आज्ञा ली और चल पड़े घने जंगल में सुखी पत्तियां ढूंढने।।
जंगल में जाकर उन्होंने देखा कि वहां तो पेड़ों पर ही पत्तियां थी। कुछेक पत्तियां जमीन पर बिखरी पड़ी थी लेकिन वो तो बहुत थोड़ी सी थी। उनसे एक टोकरी तो क्या एक मुट्ठी भी न भरे। चारों शिष्य बहुत ही दुखी हो गए। सोचने लगे कि जंगल में तो इतनी सारी पत्तियां होनी चाहिए कि घर भर जाए लेकिन यहां तो एक टोकरी भरने को भी पत्तियां नहीं। वहां पास में एक लकड़हारा लकड़ियाँ काट रहा था। शिष्यों के पूछने पर उसने बताया कि सुखी पत्तियां सुबह ही समेट कर अपने घर ले जाकर आग जलाने में उपयोग में ले ली। उसने उन्हें बताया कि आगे एक गाँव है जहां एक व्यापारी सुखी पत्तियां कोई दे सकता है।
चारों गाँव में गये। व्यापारी ने उन्हें बताया कि उसने तो पत्तियों के पत्तल बना बना कर बेच दिए। अब उसके पास एक भी सुखी पत्ती नहीं थी। चारों अत्यन्त मायूस हो गए। व्यापारी ने उन्हें एक औरत का पता बताया जिसके पास सुखी पत्तियां होने की संभावना थी। पर औरत के पास जाने पर पता चला कि औरत तरह तरह की पत्तियों से दवाइयां बनाती थी और उसके पास आज कोई सुखी पत्ती नहीं थी।
दुखी होकर चारों गुरु के पास लौटे और सारा हाल कह दिया। उन्होंने बताया कि उन्हें अंदाजा नहीं था कि सुखी पत्तियों का भी इतना प्रयोग किया जाता।
गुरु ने हंसते हुए कहा,"सुनो तुम सब, यह जो ज्ञान तुम्हें आज मिला है यही मेरी गुरुदक्षिणा है। कभी किसी चीज को छोटा मत समझो। हर छोटी से छोटी चीज बड़े से बड़ा काम कर सकती है। जो काम एक सुई कर सकती है वह काम क्या एक तलवार क्र सकती है भला। तुम्हें यही समझाने के लिए मैने तुम्हें पत्तियां लाने को कहा था। और चूँकि तुम समझ गए हो तुम्हें ज्ञान मिल गया है तो मुझे भी अपनी गुरुदक्षिणा मिल गयी है।"
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