आज की इस भागती हुयी जिंदगी में हम सब सफलता या कामयाबी के लिए प्रयास कर रहे हैं|अक्सर ये सवाल लोगो के दिमाग में आता है कि कामयाब कैसे बनें – सफलता कैसे पायें | हम सभी किसी न किसी लक्ष्य या मकसद को लेके जीते हैं | उस लक्ष्य कि प्राप्ति के बाद एक नया लक्ष्य निर्धारित करते हैं | अपने लक्ष्यों तक पहुचना हम सभी का ध्येय रहता है | सफलता के सही मायने न पता होने की वजह से हम जिंदगी भर मायूस ही महसूस करते रहते हैं | इस पोस्ट का मुख्य उद्देश्य यही है कि आपको सफल होने के सही मायने बताये जाए|
सफलता क्या है ? कामयाबी किसे कहते हैं ?
अपने किसी लक्ष्य को प्राप्त कर लेना ही सफलता कि परिभाषा है| करियर या जिंदगी के शुरुवात में आपने जो गोल या मकसद अपने लिए बनाये थे , अगर आपने उन्हें पा लिया है तो आप सफल कहे जायेंगे |
सफलता के सूत्र क्या हैं ?
कहा जाता है कि सफलता का कोई शार्ट कट नहीं होता | सफल होने के कई सूत्र है |
एक बेहतर इंसान कैसे बने
कामयाब कैसे बनें – सफलता कैसे पायें
हम यहाँ उन ईंटो का ज़िक्र कर रहे हैं जिनसे आप अपनी सफलता कि सीढीयाँ बना कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं
लगातार प्रयास : एक दोहे में कहा गया है कि “करत करत अभ्यास ते जड़मति होते सुजन , रसरी आवत जात ते सिल पर पडत निसान”. इस दोहे का सीधा मतलब है लगातार प्रयास करना | अगर आप जिंदगी में सफल होना चाहते हैं तो बार बार अपने लक्ष्य कि प्राप्ति के प्रयास कीजिये | हर बार प्रयास कीजिये | थक के चूर हो जाईये मगर प्रयास बंद मत कीजिये | चेष्टा करना मत छोड़े | लगातार प्रयास करने से आप का लक्ष्य आपकी सकारत्मक उर्जा से आप के पास पहुच जाएगा
अथक परिश्रम :अगर आप कामयाब होना चाहते हैं तो परिश्रम करते रहिये | अपने आराम और सहूलियत को त्याग कर कर ही आप सफलतम व्यक्तियों में शुमार हो सकते हैं
किसी उपलब्धि को छोटा न समझे – अपनी किसी भी उपलब्धि को कभी कम आंकिये | अपनी हर छोटी बड़ी उपलब्धि का सम्मान कीजिये |
अतिविश्वास और आत्ममुग्धता से खुद को बचाए : कामयाब होने कि सबसे बड़ी शर्त है कि खुद को अतिविश्वास और आत्ममुग्धता से खुद को बचाए| अगर आप अतिविश्वास से भर गए तो आप अपने परिश्रम को बीच में छोड़ देंगे | और अगर आप आत्ममुग्धता से भर गए तो खुद को तुलनात्मक नज़रिए से नहीं देख पाएंगे
बुरी और नकारात्मक संगति से दूर रहे – दुनिया ऐसे लोगो से भरी पड़ी है जो आपके अन्दर नकारात्मकता और अविश्वास कि भावना डालते हैं | वो खुद तो कुछ नहीं करते साथ ही आप को तरह तरह से अपने लक्ष्य से भटकाने का पूरा प्रयास करते हैं |
सफल लोगों से मेल जोल बढ़ाये , उन्हें पढ़े – कहा जाता है कि आपके आस पास कि सकारत्मक उर्जा और नकारात्मक दोनों तरह की उर्जा आप को प्रभावित करती हैं | आप उन लोगो से मिलिए जो उद्यमी है , कर्मनिष्ठ और जिज्ञासु हैं | प्रोत्साहित करने वाले हैं और कामयाब हैं | आपको कुछ दिनों में ही अपने अन्दर बड़ा परिवर्तन नज़र आयेगा
खुद पर विश्वास – अपने आप में विश्वास रखे | अपने भाग्योदय के लिए किसी अन्धविश्वास को न पाले | कर्म से बड़ा कुछ नहीं है | तुलसी दास ने कहा है
“सकल पदारथ एही जग माहीं
कर्महीन नर पावत नाही”
कहने का तात्पर्य ये है कि सब कुछ इसी संसार में उपलब्ध है मगर उसकी कामना मात्र से काम नहीं चलेगा | उसे प्राप्त करने के लिए जीतोड़ म्हणत और लगातार कर्म करते रहने कि ज़रूरत है
नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तप:।
नास्ति राग समं दुखं नास्ति त्याग समं सुखं॥
भावार्थ :
विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है ।
गुरु शुश्रूषया विद्या पुष्कलेन् धनेन वा।
अथ वा विद्यया विद्या चतुर्थो न उपलभ्यते॥
भावार्थ :
विद्या गुरु की सेवा से, पर्याप्त धन देने से अथवा विद्या के आदान-प्रदान से प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त विद्या प्राप्त करने का चौथा तरीका नहीं है ।
अर्थातुराणां न सुखं न निद्रा कामातुराणां न भयं न लज्जा । विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा क्षुधातुराणां न रुचि न बेला ॥
भावार्थ :
अर्थातुर को सुख और निद्रा नहीं होते, कामातुर को भय और लज्जा नहीं होते । विद्यातुर को सुख व निद्रा, और भूख से पीडित को रुचि या समय का भान नहीं रहता ।
पठतो नास्ति मूर्खत्वं अपनो नास्ति पातकम् ।
मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः ॥
भावार्थ :
पढनेवाले को मूर्खत्व नहीं आता; जपनेवाले को पातक नहीं लगता; मौन रहनेवाले का झघडा नहीं होता; और जागृत रहनेवाले को भय नहीं होता ।
विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः ।
अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥
भावार्थ :
विद्याभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये परम् कल्याणकारक हैं ।
विद्या वितर्को विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया ।
यस्यैते षड्गुणास्तस्य नासाध्यमतिवर्तते ॥
भावार्थ :
विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छे जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं ।
गीती शीघ्री शिरः कम्पी तथा लिखित पाठकः । अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥
भावार्थ :
गाकर पढना, शीघ्रता से पढना, पढते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ जाना, अर्थ न जानकर पढना, और धीमा आवाज होना ये छे पाठक के दोष हैं ।
सद्विद्या यदि का चिन्ता वराकोदर पूरणे ।
शुकोऽप्यशनमाप्नोति रामरामेति च ब्रुवन् ॥
भावार्थ :
सद्विद्या हो तो क्षुद्र पेट भरने की चिंता करने का कारण नहीं । तोता भी “राम राम” बोलने से खुराक पा हि लेता है ।
मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम्।
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥
भावार्थ :
विद्या माता की तरह रक्षण करती है, पिता की तरह हित करती है, पत्नी की तरह थकान दूर करके मन को रीझाती है, शोभा प्राप्त कराती है, और चारों दिशाओं में कीर्ति फैलाती है । सचमुच, कल्पवृक्ष की तरह यह विद्या क्या क्या सिद्ध नहीं करती ?
विद्याविनयोपेतो हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य । कांचनमणिसंयोगो नो जनयति कस्य लोचनानन्दम् ॥
भावार्थ :
विद्यावान और विनयी पुरुष किस मनुष्य का चित्त हरण नहीं करता ? सुवर्ण और मणि का संयोग किसकी आँखों को सुख नहीं देता ?
हर्तृ र्न गोचरं याति दत्ता भवति विस्तृता ।
कल्पान्तेऽपि न या नश्येत् किमन्यद्विद्यया विना ॥
भावार्थ :
जो चोरों के नजर पडती नहीं, देने से जिसका विस्तार होता है, प्रलय काल में भी जिसका विनाश नहीं होता, वह विद्या के अलावा अन्य कौन सा द्रव्य हो सकता है ?
द्यूतं पुस्तकवाद्ये च नाटकेषु च सक्तिता । स्त्रियस्तन्द्रा च निन्द्रा च विद्याविघ्नकराणि षट् ॥
भावार्थ :
जुआ, वाद्य, नाट्य (कथा/फिल्म) में आसक्ति, स्त्री (या पुरुष), तंद्रा, और निंद्रा – ये छे विद्या में विघ्नरुप होते हैं ।
सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् । सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥
भावार्थ :
जिसे सुख की अभिलाषा हो (कष्ट उठाना न हो) उसे विद्या कहाँ से ? और विद्यार्थी को सुख कहाँ से ? सुख की ईच्छा रखनेवाले को विद्या की आशा छोडनी चाहिए, और विद्यार्थी को सुख की ।
न चोरहार्यं न च राजहार्यंन भ्रातृभाज्यं न च भारकारी । व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥
भावार्थ :
विद्यारुपी धन को कोई चुरा नहीं सकता, राजा ले नहीं सकता, भाईयों में उसका भाग नहीं होता, उसका भार नहीं लगता, (और) खर्च करने से बढता है । सचमुच, विद्यारुप धन सर्वश्रेष्ठ है ।
नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् । नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥
भावार्थ :
विद्या जैसा बंधु नहीं, विद्या जैसा मित्र नहीं, (और) विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहीं ।
ज्ञातिभि र्वण्टयते नैव चोरेणापि न नीयते ।. दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम् ॥
भावार्थ :
यह विद्यारुपी रत्न महान धन है, जिसका वितरण ज्ञातिजनों द्वारा हो नहीं सकता, जिसे चोर ले जा नहीं सकते, और जिसका दान करने से क्षय नहीं होता ।
सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् । अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥
भावार्थ :
सब द्रव्यों में विद्यारुपी द्रव्य सर्वोत्तम है, क्यों कि वह किसी से हरा नहीं जा सकता; उसका मूल्य नहीं हो सकता, और उसका कभी नाश नहीं होता ।
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम् विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः ।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम् विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥
भावार्थ :
विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, गुप्त धन है । वह भोग देनेवाली, यशदात्री, और सुखकारक है । विद्या गुरुओं का गुरु है, विदेश में वह इन्सान की बंधु है । विद्या बडी देवता है; राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं । इसलिए विद्याविहीन पशु ही है ।
अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् । अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥
भावार्थ :
आलसी इन्सान को विद्या कहाँ ? विद्याविहीन को धन कहाँ ? धनविहीन को मित्र कहाँ ? और मित्रविहीन को सुख कहाँ ?
रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः । विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥
भावार्थ :
रुपसंपन्न, यौवनसंपन्न, और चाहे विशाल कुल में पैदा क्यों न हुए हों, पर जो विद्याहीन हों, तो वे सुगंधरहित केसुडे के फूल की भाँति शोभा नहीं देते ।
विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः । अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥
भावार्थ :
विद्याभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये परम् कल्याणकारक हैं ।
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥
भावार्थ :
विद्या से विनय (नम्रता) आती है, विनय से पात्रता (सजनता) आती है पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है ।
दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले । श्रेष्ठानि कन्यागोभूमिविद्या दानानि सर्वदा ॥
भावार्थ :
सब दानों में कन्यादान, गोदान,भूमिदान,और विद्यादान सर्वश्रेष्ठ है ।
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् । क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥
भावार्थ :
एक एक क्षण गवाये बिना विद्या पानी चाहिए; और एक एक कण बचा करके धन ईकट्ठा करना चाहिए । क्षण गवानेवाले को विद्या कहाँ, और कण को क्षुद्र समजनेवाले को धन कहाँ ?
विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम् तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥
भावार्थ :
विद्या अनुपम कीर्ति है; भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन ।
"स्वयं और दूसरों की सत्ता से मुक्त होने का अर्थ है,अतीत की प्रत्येक वस्तु के प्रति मर जाना ताकि आपका चित्त सदा तरोताजा,युवा,निर्दोष और उत्साह व उत्कट आवेग से भरा हो।"
"जे.कृष्णमूर्ती"
इन शब्दों का यदि गहनता से अध्ययन किया जाए तो ये हमे उस मार्ग पर ले जा सकते है जिससे हम अनंत की सैर कर सके,कहने का तात्पर्य यह है कि हम यदि अपने भूत-भविष्य की चिंताओं से मुक्त हो जाये और वर्तमान में अपने समग्र अस्तित्व को समाहित कर ले तो हमारे लिए ब्रम्हांड के सारे रास्ते खुल जाएंगे और हम उन सारे सवालों के जवाब जान पाएंगे जो हमारे मन मस्तिष्क में खलबली मचाये हुए है।और वह हर चीज पाने में आप सक्षम हो पाएंगे जिसे इस भौतिक जगत में अर्थपूर्ण समझा जाता है।आप यदि अपने विचार रूपी समुद्री की गहराइयो में गोते लगाएंगे और एक दृष्टा के रूप में उन विचारों का अवलोकन करेंगे तो पता चलेगा कि वर्तमान में तो न हैम सुखी है ना दुखी जो सुख और दुख की अनुभूति है वो तो भूत और भविष्य के विचार हमारे मन मे उठते है उनके फलस्वरूप आती है यही वजह होती है कि वर्तमान में चल रहे किसी काम को हम सही न्याय नही दे पाते क्योंकि अतीत और भविष्य हैम पर इतना हावी रहता है कि वर्तमान हमारा उनकी छाया में जीने को मजबूर रहता है और कभी प्रकाशित नही हो पाता।इसको एक उदाहरण से समझते है एक बार एक टीवी चैनल के साक्षात्कार के दरम्यान सचिन तेंदुलकर से पुछा गया कि जब आप बैटिंग कर रहे होते है और बॉल आपकी तरफ आती है तो आपके मस्तिष्क में क्या विचार आते है उन्होंने बहुत ही सहजता पूर्वक कवाब दिया मैं उस पल सिर्फ उस बॉल को देखता हूं और सारे विचार अपने आप बंद हो जाते है। दोस्तो आपको ये जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि वर्तमान में जीना यानी उस अंतहीन अनंत की सैर ।यदि आपको भी इस अनुभूति का आनंद लेना है और अपने मष्तिष्क में गहराइयों में प्रविष्ट होना है तो एक सवाल के साथ आपको छोड़े जा रहा हु आप उसे हल करने के समय किसी पेपर पेन या किसी बाहरी वस्तु का इस्तेमाल न करे अपने विचारों की गहनता में घुश्कर इसे हाल करने का प्रयाश करे
एक ऐसी संख्या बताइए जिसमे 10 से भाग देने पर शेषफल 9 आये 9 से भाग देने पर शेषफल 8 आये 7 से भाग देने पर शेषफल 6 आये इस प्रकार 6,5,4,3,2,1 से भाग देने पर क्रमसः शेष फल 5,4,3,2,1,0 आये।
यह सवाल सिर्फ एक एक्सरसाइज मात्र है जो आपको अपने अनंत विचारो के समुद्र में डुबकी लगवाकर आपको वर्तमान शक्ति का अनुभव कराएगा।इस सवाल का जवाब और हल करते समय आपके अनुभव आप कमेंट में लिखे ।
दोस्तो,मैं सुधीर तिवारी आज बहुत दिनों बाद मैं एक पोस्ट लेकर आपके सामने हाजिर हूँ, जो आपको अपने आप से बहुत से सवाल पूछने पर मजबूर कर देगी और मैं गारंटी देता हूं कि यदि आपने इन सवालों के विषय मे गंभीरता से विचार किया तो आपकी जिंदगी और जीने का तरीका सब कुछ बदल जायेगा।
अब मैं आपका ज्यादा समय न लेते हुए अपने वास्तविक विषय पर आते है,दोस्तो क्या आपने कभी सोचा है कि आपके जीवन जीने का मकसद क्या है,ये सवाल जब कोई हमसे पूछता है तो हैम यही कहते है कि अमीर बनना या फिर व्यापार करना,परिवार की खुशी,वगैरह वगैरह, क्या दोस्तो सच मे हमारे जीवन जीने का मकसद यही है क्या इन मकसदों की पूर्ति के पश्चात हम मृत्यु पर्यंत सुखी हो जायेगे,यदि आपको इस सवाल का जवाब नही मिल रहा तो किसी बुजुर्ग से मिलिए उससे उसके पूरी जिंदगी में उसके अनुभव के बारे में पूछिये और उससे ये भी पूछिये क्या वह दिल से खुश है, यदि खुश है तो अब उन्हें मृत्यु का भय नही होना चाहिए आप उनके जवाबो से आकलन लगा सकते है 95% व्यक्ति दोस्तो आपको ऐसे मिलेंगे जिन्हें पता ही नही उनके जीवन का मकसद क्या था अथवा क्या है आप पाएंगे कि जैसे उनके पूर्वज आये और गए वो भी आएंगे और जायेगे ये सिलसिला यू ही चलता रहेगा।अब यदि आप गहराई से मंथन करेगे तो एक सवाल ओर आपके मन मे बेचैनी पैदा करेगा ये सिलसिला आखिर क्या है,हम क्यों जन्म लेते है और क्यों मरते है ऐसा क्या है जो जब तक हमारे साथ रहता है हहम जीवित रहते है हमारी सांसे चलती रहती है और जब वो हमारे साथ छोड़ती है तो हमारा भी अस्तित्व समाप्त हो जाता है आखिर कोन सी वह शक्ति है जो इन सबके पीछे काम कर रही है आखिर क्यों जिनके पास समस्त ऐश्वर्य है वो भी दुखी है,फिर हमारे मन मे सवालो की बरसात होने चालू होगी आखिर मैं हूं कौन आप कहेंगे कि मैं फला नाम का व्यक्ति हूं फला नाम के व्यक्ति मेरे पिता या फिर कहेंगे कि फला कंपनी का मालिक,फिर सवाल उठता है इन सबसे से पहले आप कौन थे और इन सबके बाद आप क्या रहेंगे,आप पाएंगे कि जैसे जैसे हम गहरी सोच में उतरते है सवाल बढ़ते जाते है जो कि अंतहीन जान पड़ते है,क्या इन सवालों के जवाब नही है यह भी गणित के इनफिनिटी की तरह है या फिर अंतहीन ब्रम्हाड की तरह। अब दिसतो आपके पास दो विकल्प शेष रहते है या तो इसे अंतहीन माने या फिर अपने विचारों की गहनतम गहराइयों में घुश्कर इन्हें ढूंढे।
यदि आपको इनमे से किसी एक सवाल का जवाब मील तो हमे कमेंट में जरूर बताएं। अगली पोस्ट में आपके और हमारे अनुभवों से प्राप्त कुछ ऐसे ही सवालो जवाबो की चर्चा करेंगे आप हमारे साथ जुड़े रहिये अपने मन मे उठ रहे सवाल कमेंट में लिखे।
दस भिक्षु सत्य की खोज में एक बार निकले थे। उन्होने बहुत पर्वतों-पहाडों, आश्रमों की यात्रा की। लेकिन उन्हें कोई सत्य का अनुभव न हो सका। क्योंकि सारी यात्रा बाहर हो रही थी। किन्हीं पहाडों पर, किन्ही आश्रमों में, किन्हीं गुरुओं के पास खोज चल हरी थी। जब तक खोज किसी और की तरफ चलती है, तब तक उसे पाया भी कैसे जा सकता है, जो स्वयं में है।आखिर में थक गए और अपने गांव वापस लौटने लगे। वर्षा के दिन थे, नदी बहुत पूर पर थी। उन्होने नदी पार की। पार करने के बाद सोचा कि गिन लें, कोई खो तो नहीं गया। गिनती की, एक आदमी प्रतीत हुआ खो गया है, एक भिक्षु डूब गया था। गिनती नौ होती थी। दस थे वे। दस ने नदी पार की थी। लौटकर बाहर आकर गिना, तो नौ मालूम होेते थै।
प्रत्येक व्यक्ति अपने को गिनना छोड जाता था, शेष सबको गिन लेता था। वे रोने बेठ गए। सत्य की खोज का एक साथी खो गया था।एक यात्री उस रस्ते से निकल रहा था, दूसरे गांव तक जाने के लिए । उसने उनकी पीडा पूदभ्, उनके गिरते आंसू देखे। उसने पूछा, क्या कठिनाई है ?
उन्होंने कहा- हम दस नदी में उतरे थे, एक साथी खो गया। उसके लिए हम रोते है। कैंसे खोंजे ? उसने देखा वे दस ही थे। वह हंसा और उसने कहा, तुम दस ही हो, व्यर्थ की खोज मत करो अपने रास्ते चला गया।
उन्होने फिर से गिनती की कि हो सकता है, उनकी गिनती में भूल हो। लेकिन उस यात्री को पता भी न था। उनकी गिनती में भूूल न थी, वे गिनती तो ठीक ही जानते थे। भूल यहां थी कि कोई भी अपनी गिनती नहीं करता था।
उन्होने बहुत बार गिना, फिर भी वे नौ ही थे। और तब उनमें से एक भिक्षु नदी के किनारे गया। उसने नदी में झांककर देखा। एक चट्टान के पास पानी स्थिर था। उसे अपनी ही परछाई नीचे पानी में दिखाई पडी। वह चिल्लाया, उसने अपने मित्रों को कहाः आओ,
जिसे हम खोजते थे, वह मौजुद है। दसवां साथी मिल गया है। लेकिन पानी बहुत गहरा है। और उसे हम शायद निकाल न सकेंगे। लेकिन उसका अंतिम दर्शन तो कर लें। एक-एक व्यक्ति ने उस चट्टान के पास झांककर देखा, नीचे एक भिक्षु मौजुद था। सबकी परछाई नीचे बनती उन्हे दिखाई पडी। तब इतना तो तय हो गया, इतने डूबे पानी में वह मर गया हैं।
वे उसका अंतिम संस्कार कर रहे थे। तब वह यात्री फिर वापस लौटा, उसने पूछा कि यह चिता किसके लिए जलाई हुई है ? यह क्या कर रहे हो ? उन नौ ही रोते हुए भिक्षुओं ने कहा, मित्र हमारा मर गया है। देख लिया हमने गहरे पानी में डूबी है उसकी लाश। निकालना तो संभव नहीं है। फिर वह मर भी गया होगा, हम उसका अंतिम दाह-संस्कार कर रहे है।
उस यात्री ने फिर से गिनती की और उनसे कहा, पागलों! एक अर्थ में तुम सबने अपना ही दाह-संस्कार कर लिया है। तुमने जिसे दखा है पानी में, वह तुम्हीं हो। लेकिन पानी में देख सके तुम, लेकिन स्वयं में न देख सके! प्रतिबिंब को पकड सके जल में, लेकिन खुद पर तुम्हारी दृष्टि न जा सकी! तुमने अपना ही दाह-संस्कार कर लिया। और दसों ने मिलकर उस दसवें को दफना दिया है, जो खोया ही नहीं था।
उसकी इस बात के कहते ही उन्हें स्मरण आया कि दसंवा तो मैं ही हूं। हर आदमी को खयाल आया कि वह दसंवा आदमी तो मैं ही हूं। और जिस सत्य की खोज वे पहाडों पर नहीं कर सकते थे, अपने ही गांव लौटकर वह खोज पूरी हो गई। वे दसों ही जागृत होकर, जान कर गांव वापस लौट गये थे।
उन दस भिक्षुओं की कथा ही हम सभी की कथा है। एक को भर हम छोड जाते है- स्वंय को। और सब तरफ हमारी दृष्टि जाती है- शास्त्रो में खोजते हैं, शब्दों में खोजते हैं, शास्त्रों के वचनों में खोजते हैं, पहाडों पर, पर्वतों पर खोजते हैं, सेवा में, समाज सेवा में, प्रार्थना में, पूजा में खोजते है। सिर्फ एक व्यक्ति भर इस खोज से वंचित रह जाता है, वह दसवां आदमी वंचित रह जाता है, जो कि हम स्वयं है।
स्वतंत्रता का अर्थ है- इस स्वयं को जानने से जो जीवन उपलब्ध होता है, उसका नाम स्वतंत्रता है। स्वतंत्र होना इस जगत में सबसे दूर्लभ बात है। स्वतंत्र वही हो सकता है, जो स्वंय को जानता हो। जो स्वंय को नहीं जानता, वह परतंत्र हो सकता है या स्वच्छंद हो सकता है, लेकिन स्वतंत्र नहीं।
Source bbc news
कई बार आपने कुछ लोगों को बड़बड़ाते देखा होगा. आमतौर पर जब हम किसी को ऐसा करते देखते हैं, तो हम उन्हें सनकी कहते हैं. हमें लगता है कि वो दिमागी ख़लल की वजह से ख़ुद से बातें करते रहते हैं.
दरअसल, ऐसे लोग अपने आपसे बातें करते हैं और जिसे आप दिमागी ख़लल कहकर ख़ारिज करते हैं, वो ख़ुद से बातें करने की आदत आपके लिए बड़े काम की साबित हो सकती है.
दुनिया में आज बहुत से एक्सपर्ट ये मशविरा देते हैं कि आप ख़ुद से बातें करें. उनके मुताबिक़ इससे याद्दाश्त तेज़ होती है. आत्मविश्वास भी बढ़ता है और आप ज़्यादा फ़ोकस हो जाते हैं.
अमरीका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर गेरी लुपयन कहते हैं कि तेज़ आवाज़ में ख़ुद से बात करना आपको भले अजीब लगे, लेकिन है ये कामयाबी का नुस्खा.
वो अपनी रिसर्च की बुनियाद पर कहते हैं कि ऐसा करने से आपका बहुत फ़ायदा हो सकता है.
प्रोफ़ेसर गैरी लुपयन ने एक तजुर्बा किया था, जिसमें कुछ लोगों को कंप्यूटर की स्क्रीन पर कुछ चीज़ें सिर्फ़ देखने को कहा गया और कुछ को तेज़ आवाज़ में उनका नाम पुकारने को.
जिन लोगों ने तेज़ आवाज़ में उन चीज़ों का नाम लिया, वो स्क्रीन पर उन चीज़ों को ज़्यादा जल्दी पहचान पाए और जो लोग सिर्फ़ स्क्रीन को देख रहे थे, उन्हें वही चीज़ें पहचानने में थोड़ा समय लगा.
इसी तरह का प्रयोग उन्होंने किराने की दुकान पर भी किया. जिन लोगों ने सब्ज़ियों की तस्वीर देखकर उनका नाम तेज़ आवाज़ में पुकारा था, स्टोर में वही सब्ज़ी तलाशने में उन्हें आसानी हुई.
प्रोफेसर गैरी का कहना है कि जब हम किसी चीज़ का नाम अपनी ज़ुबान से तेज़ आवाज़ में लेते हैं तो उसकी तस्वीर हमारे ज़हन में बन जाती है. हमारा दिमाग़ ख़ुद-ब-ख़ुद ज़रूरत पड़ने पर उसे हमारे ज़हन में ज़िंदा कर देता है.
ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक और लेखिका एनी विल्सन का कहना है कि वो अपने सभी क्लाइंट्स को ख़ुद से बातें करने की सलाह देती हैं.
अगर उनके किसी मरीज़ को बहुत गुस्सा आता है, तो वो उसे भी यही सलाह देती हैं, क्योंकि ऐसा करने से मसले का हल निकल आता है और गुस्सा ग़ायब हो जाता है.
एनी विल्सन कहती हैं- हम हमेशा चाहते हैं कि हमारे आसपास वो लोग रहें जो हमसे ज़्यादा ज्ञानी हों, जिनसे हमें कुछ सीखने को मिल सके.
सबसे अहम ये है कि जो हमें समझ सकें. जो ख़ासियतें हम दूसरों में तलाशते हैं, वो हम अपने अंदर हासिल कर सकते हैं.
आख़िर ख़ुद को इंसान सबसे अच्छे से जानता है. जब हम ख़ुद से बाते करने लगते हैं तो बहुत हद तक हम अपने अंदर ही उन्हें तलाश लेते हैं.
ऐसे में हम ख़ुद अपने आप को ही सबसे ज़्यादा दिलचस्प शख़्सियत पाते हैं और हमारी ख़ुद से दोस्ती हो जाती है.
2014 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, जब हम किसी को तुम या वो कहकर बातें करते हैं, तो हम अपने जज़्बात पर जल्दी काबू कर लेते हैं. क्योंकि ऐसे में हम खुद एक दूसरी शख़्सियत बनकर अपने को ही समझाते हैं.
ख़ुद से बातें करने के फ़ायदे
ब्रिटेन के यूजीन गैम्बल इसकी बड़ी मिसाल हैं. वो बरसों तक दांतों के डॉक्टर थे. एक दिन उन्होंने डॉक्टरी छोड़कर कारोबार शुरू करने का इरादा कर लिया. जबकि उन्हें कारोबार का कोई तजुर्बा नहीं था. इस वजह से यूजीन को कई बार नाकामी मिली.
लिहाज़ा उन्होंने बिज़नेस कोच की मदद ली, जिसने उन्हें सबसे पहली सलाह ख़ुद से बात करने की ही दी और उन्हें इसका फ़ायदा भी हुआ.
आज जब भी उन्हें बिज़नेस की कोई प्रेज़ेन्टेशन देनी होती है तो वो सबसे पहले ख़ुद अपने आपसे बात करते हैं और अपनी प्रेज़ेन्टेशन को तेज़ आवाज़ में पढ़ते हैं.
ऐसा करने से वो अपने आइडिया पर ज़्यादा फोकस कर पाते हैं और अपनी प्रेज़ेन्टेशन को अच्छी तरह याद रख पाते हैं.
हम सभी के लिए हर समय ख़ुद से बात करना ना तो संभव है और ना ही हम कर पाते हैं.
इसकी बड़ी वजह ये है कि समाज में ख़ुद से बातें करने वाले को पागल करार दिया जाता है. इसीलिए कई लोग चाहकर भी ख़ुद से बातें नहीं कर पाते.
उन्हें सनकी कहकर ख़ारिज किए जाने का डर रहता है.
लेकिन छोटे बच्चे अक्सर ये काम करते हैं.
रिसर्च बताती हैं कि बच्चों के विकास में ये अमल बहुत कारगर साबित होता है.
2008 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, पांच साल की उम्र वाले जिन बच्चों ने अपने आप से ज़्यादा बातें कीं, वो ज़्यादा समझदार थे बनिस्बत उन बच्चों के जो उस उम्र में ख़ामोश रहते थे.
अगर आप भी अपनी याददाश्त को तेज़ करना चाहते हैं, काम पर ज़्यादा ध्यान देना चाहते हैं, तो ख़ुद अपने आपके दोस्त बनिए और अपने आपसे बाते कीजिए.
शुरूआत में यह थोड़ा अजीब लगेगा. लेकिन, जब इसके फ़ायदे आपके सामने आएंगे, तो यक़ीन जानिए आप ख़ुद हैरान रह जाएंगे.