तल्लीनता
बहुत-से कामों मे हमें सफलता नहीं मिलती तो इसकी वजह यह है कि हम उन कामों को पूरे मन से नही करते। काम उठाया, थोड़ा-सा किया, मन मे दुविधा पैदा हो गयी-यदि यह काम पार न पड़ा तो? नही, इसे यों करें तो ठीक रहेगा। उस तरह सोच लो, फिर उसे करना शुरू करो। एक बार शुरू कर दिया तो उसे अपनी पूरी शक्ति से करों। जिसकी निगाह इधर-उधर भटकती रहती है, वह अपने लक्ष्य को नही देख सकता। आपने देखा होगा, तॉँगे मे घोड़े की ऑंखो के दोनो ओर पटटे बॉँध देते है। क्यो? इसलिए कि उसे सामने का ही रास्ता दिखाई दे। वह दायें-बायें न देखे।
स्टीफन ज्विग दुनिया के बहुत बड़े लेखक हुए है। वे एक बार एक बड़े कलाकार से मिलने गये। कलाकार उन्हे अपने स्टूडियों मे ले गया और मूर्तियों दिखाने लगा। दिखाते-दिखाते एक मूर्ति के सामने आया। बोला, यह मेरी नयी रचना है।" इतना कहकर उसने उस पर से गीला कपड़ा हटाया। फिर मूर्ति को ध्यान से देखा। उसकी निगाह उस पर जमी रही। जैसे अपने से ही कुछ कह रहा हो, वह बड़बड़ाया-"इसके कंधे का यह हिस्सा थोड़ा भारी हो गया है।" उसने ठीक किया। फिर कुछ कदम दूर जाकर उसे देखा, फिर कुछ ठीक किया। इस तरह एक घंटा निकल गया। ज्विग चुपचाप खड़े-खड़े देखते रहे। जब मूर्ति से सन्तोंष हो गया तो कलाकार ने कपड़ा उठाया, धीरे-से उसे मूर्ति पर लपेट दिया और वहां से चल दिया। दरवाजें पर पहुचकर उसकी निगाह पीछे गयी तो देखता क्या कि कोई पीछे-पीछे आ रहा है। अरे, यह अजनबी कौन है? उसने सोचां घड़ी भर वह उसकी ओर ताकता रहा। अचानक उसे याद आया कि यह तो वह मित्र है, जिसे वह स्टूडियो दिखाने साथ लाया था। वह लजा गया। बोला, "मेरे प्यारे दोस्त, मुझे क्षमा करना। मैं आपकों एकदम भूल ही गया था।"
ज्विग ने लिखा है, "उस दिन मुझे मालूम हुआ कि मेरी रचनाओं मे क्या कमी थी। शक्तिशाली रचना तब तैयार होती है, जब आदमी सारी शक्तियां बटोरकर एक ही जगह पर केन्द्रित कर देता है।"
अर्जुन की कहानी बहुतों से सुनी होगी। पाण्डवों के तीर चलाने की परिक्षा लेने के लिए
एक दिन गुरू द्रोणावचार्य ने सब भाईयों का इकटठा किया। बोले, "देखो वह सामने पेड़ पर सफेद रंग की एक नकली चिड़िया है। उसकी आंखों मे लाल रंग के दो रत्न लगे है। तुम्हें उसकी दाहीनी आंख पर निशाना लगाना है।" सब भाई धनुष-बाण लेकर तैयार हो गये। द्रोण ने एक-एक से पूछा, "तुम्हें वहॉँ क्या-क्या दिखाई देता है?" किसी ने कुछ बताया, किसी ने कुछ बताया। जब अर्जुनकी बारी आयी तो उसने कहा, "गुरूदेव मुझे तो उस चिड़िया की दायीं ऑंख के सिवा ओर कुछ दिखाई नहीं देता।" इतनी थी उसकी एकाग्रता। तभी तो वह बाण चलने मे बेजोड़ था।
एकाग्रता से आदमी का अपने काम को अच्छी तरह करने का मौका मिलता है। साथ ही उसका संकल्प भी पक्का बनता है।"एकहि साधै सब सधै।" एक चीज अच्छी तरह से हो गयी तो बहुत-सी चीजें आप पूरी हो जाती है। दस साल तक विनोबाजी सारे देश मे पैदल घूमते रहे। वह प्यार से उन लोगो से ज़मीन लेते, जिनके पास थी और प्यार से उन्हे दे देते थे, जिनके पास नही थी। विनोबाजी के पेट मे अल्सर था। वह कभी-कभी बड़ा दर्द करता था। उन्हे बड़ी हैरानी होती थी, पर उनकी यात्रा नही रूकती थी। एक बार जब दर्द बढ़ गया तो डॉक्टरों ने उनकी जॉच की। अच्छी तरह से देखभाल करके उन्होने विनोबाजी से कहा, "आपकी हालत गम्भीर है। आप आठ महीने आराम करें।"
विनोबाजी ने मुस्कराकर कहा, "हालत अच्छी नही है तो आपने चार महीने क्यों छोड़ दियें? अरे, आपको कहना चहिए था कि बारहों महीने आराम करों।"
डॉक्टरों ने कहा, "आप पैदल चलना छोड़ दें।"
विनोबाजी ने उसी लहज़े मे जवाब दिया, "मेरे पेट मे दर्द है, पैरो मे नही।"
विनोबाजी ने एक दिन को भी अपनी पदयात्रा बंद नही की। लोगों ने जब बहुत कहा तो उन्होने जवाब दे दिया, "सूर्य कभी नही रूकता, नदी कभी नही ठहरती, उसी अखण्ड गति से मेरी यात्रा चलेगी।" उनकी इस एकाग्रता का ही नतीजा है कि बिना किसी दबाव के, प्यार की पुकार पर, उन्हें कोई पैतालीस लाख एकड़ भूमि मिल गयी।
सुकरात बहुत बड़े दार्शनिक थे। एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे बाज़ार से साग लाने को कहा। वह चले, पर मन दर्शन की किसी गुत्थी मे उल्झा था। सीढ़ियॉँ उतरने लगे कि मन की समस्या ने उनकी गति रोक दी। वह सीढिय़ो पर ही खड़े थे। वह बड़ी झल्लाई, कुंछ उल्टी-सीधी बाते कही। सुकरात का ध्यान टुटा। बोले, "मैं अभी साग लाता हूं।" दो-तीन सीढियॉ तेजी से उतरे, पर मन फिर उलझ गया। पैर पिुर रूक गये। बहुत देर हो गयी। पत्नी चौका साफ करके गंदे पानी की बाल्टी उठाकर फेंकने चली तो देखती क्या है कि वह सीढ़ियों से नीचे भी नहीं उतरे हैं। उसने बाल्टी का पानी उनके ऊपर डाल दिया। उन्होंने हंसकर बस इतना ही कहा, "देवीजी इसमें अचरज की कोई बात नहीं है। बिजली की कड़क के बाद पानी तो आना ही था।"
चित्त् की एकग्रता से बहुत-सी घरेलू उलझनें हुईं, लेकिन उसी की बदौलत आज सुकरात को दुनिया याद करती है।
किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है, "प्रतिभा के मानी होते हैं नब्बे फ़ीसदी बहाना और दस फ़ीसदी प्रेरणा। दुनिया के काम मेहनत और एकाग्रता से ही पूरे होते हैं। वैज्ञानिको का कहना है कि एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति भरी होती है कि उसके द्वारा संसार की सारी मोटरें और चक्कियां चेलाई जा सकती हैं। ज़रुरत बस उस शक्ति को इअकटठा करने की हैं। भाप को इंजन, पिस्टन रॉड पर केन्द्रित करने की है।
एमर्सन का कथन है-"अगर जिंदगी में कोई बुद्धिमानी की बात है तो वह एकाग्रता है और अगर कोई खराब बात है तो अपनी शक्तियों को बिखेर देना।"
दुनिया में लोगों में शक्ति की कमी नहीं है, लेकिन वे अपनी उस शक्ति को केन्द्रित करना नहीं जानते। बंधी हुई भाप बड़े-से-बड़े इंजनों को खींच ले जाती है, लेकिन अगर वह बिखर जाय तो बेकार चली जाती है।
बहुत-से कामों मे हमें सफलता नहीं मिलती तो इसकी वजह यह है कि हम उन कामों को पूरे मन से नही करते। काम उठाया, थोड़ा-सा किया, मन मे दुविधा पैदा हो गयी-यदि यह काम पार न पड़ा तो? नही, इसे यों करें तो ठीक रहेगा। उस तरह सोच लो, फिर उसे करना शुरू करो। एक बार शुरू कर दिया तो उसे अपनी पूरी शक्ति से करों। जिसकी निगाह इधर-उधर भटकती रहती है, वह अपने लक्ष्य को नही देख सकता। आपने देखा होगा, तॉँगे मे घोड़े की ऑंखो के दोनो ओर पटटे बॉँध देते है। क्यो? इसलिए कि उसे सामने का ही रास्ता दिखाई दे। वह दायें-बायें न देखे।
स्टीफन ज्विग दुनिया के बहुत बड़े लेखक हुए है। वे एक बार एक बड़े कलाकार से मिलने गये। कलाकार उन्हे अपने स्टूडियों मे ले गया और मूर्तियों दिखाने लगा। दिखाते-दिखाते एक मूर्ति के सामने आया। बोला, यह मेरी नयी रचना है।" इतना कहकर उसने उस पर से गीला कपड़ा हटाया। फिर मूर्ति को ध्यान से देखा। उसकी निगाह उस पर जमी रही। जैसे अपने से ही कुछ कह रहा हो, वह बड़बड़ाया-"इसके कंधे का यह हिस्सा थोड़ा भारी हो गया है।" उसने ठीक किया। फिर कुछ कदम दूर जाकर उसे देखा, फिर कुछ ठीक किया। इस तरह एक घंटा निकल गया। ज्विग चुपचाप खड़े-खड़े देखते रहे। जब मूर्ति से सन्तोंष हो गया तो कलाकार ने कपड़ा उठाया, धीरे-से उसे मूर्ति पर लपेट दिया और वहां से चल दिया। दरवाजें पर पहुचकर उसकी निगाह पीछे गयी तो देखता क्या कि कोई पीछे-पीछे आ रहा है। अरे, यह अजनबी कौन है? उसने सोचां घड़ी भर वह उसकी ओर ताकता रहा। अचानक उसे याद आया कि यह तो वह मित्र है, जिसे वह स्टूडियो दिखाने साथ लाया था। वह लजा गया। बोला, "मेरे प्यारे दोस्त, मुझे क्षमा करना। मैं आपकों एकदम भूल ही गया था।"
ज्विग ने लिखा है, "उस दिन मुझे मालूम हुआ कि मेरी रचनाओं मे क्या कमी थी। शक्तिशाली रचना तब तैयार होती है, जब आदमी सारी शक्तियां बटोरकर एक ही जगह पर केन्द्रित कर देता है।"
अर्जुन की कहानी बहुतों से सुनी होगी। पाण्डवों के तीर चलाने की परिक्षा लेने के लिए
एक दिन गुरू द्रोणावचार्य ने सब भाईयों का इकटठा किया। बोले, "देखो वह सामने पेड़ पर सफेद रंग की एक नकली चिड़िया है। उसकी आंखों मे लाल रंग के दो रत्न लगे है। तुम्हें उसकी दाहीनी आंख पर निशाना लगाना है।" सब भाई धनुष-बाण लेकर तैयार हो गये। द्रोण ने एक-एक से पूछा, "तुम्हें वहॉँ क्या-क्या दिखाई देता है?" किसी ने कुछ बताया, किसी ने कुछ बताया। जब अर्जुनकी बारी आयी तो उसने कहा, "गुरूदेव मुझे तो उस चिड़िया की दायीं ऑंख के सिवा ओर कुछ दिखाई नहीं देता।" इतनी थी उसकी एकाग्रता। तभी तो वह बाण चलने मे बेजोड़ था।
एकाग्रता से आदमी का अपने काम को अच्छी तरह करने का मौका मिलता है। साथ ही उसका संकल्प भी पक्का बनता है।"एकहि साधै सब सधै।" एक चीज अच्छी तरह से हो गयी तो बहुत-सी चीजें आप पूरी हो जाती है। दस साल तक विनोबाजी सारे देश मे पैदल घूमते रहे। वह प्यार से उन लोगो से ज़मीन लेते, जिनके पास थी और प्यार से उन्हे दे देते थे, जिनके पास नही थी। विनोबाजी के पेट मे अल्सर था। वह कभी-कभी बड़ा दर्द करता था। उन्हे बड़ी हैरानी होती थी, पर उनकी यात्रा नही रूकती थी। एक बार जब दर्द बढ़ गया तो डॉक्टरों ने उनकी जॉच की। अच्छी तरह से देखभाल करके उन्होने विनोबाजी से कहा, "आपकी हालत गम्भीर है। आप आठ महीने आराम करें।"
विनोबाजी ने मुस्कराकर कहा, "हालत अच्छी नही है तो आपने चार महीने क्यों छोड़ दियें? अरे, आपको कहना चहिए था कि बारहों महीने आराम करों।"
डॉक्टरों ने कहा, "आप पैदल चलना छोड़ दें।"
विनोबाजी ने उसी लहज़े मे जवाब दिया, "मेरे पेट मे दर्द है, पैरो मे नही।"
विनोबाजी ने एक दिन को भी अपनी पदयात्रा बंद नही की। लोगों ने जब बहुत कहा तो उन्होने जवाब दे दिया, "सूर्य कभी नही रूकता, नदी कभी नही ठहरती, उसी अखण्ड गति से मेरी यात्रा चलेगी।" उनकी इस एकाग्रता का ही नतीजा है कि बिना किसी दबाव के, प्यार की पुकार पर, उन्हें कोई पैतालीस लाख एकड़ भूमि मिल गयी।
सुकरात बहुत बड़े दार्शनिक थे। एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे बाज़ार से साग लाने को कहा। वह चले, पर मन दर्शन की किसी गुत्थी मे उल्झा था। सीढ़ियॉँ उतरने लगे कि मन की समस्या ने उनकी गति रोक दी। वह सीढिय़ो पर ही खड़े थे। वह बड़ी झल्लाई, कुंछ उल्टी-सीधी बाते कही। सुकरात का ध्यान टुटा। बोले, "मैं अभी साग लाता हूं।" दो-तीन सीढियॉ तेजी से उतरे, पर मन फिर उलझ गया। पैर पिुर रूक गये। बहुत देर हो गयी। पत्नी चौका साफ करके गंदे पानी की बाल्टी उठाकर फेंकने चली तो देखती क्या है कि वह सीढ़ियों से नीचे भी नहीं उतरे हैं। उसने बाल्टी का पानी उनके ऊपर डाल दिया। उन्होंने हंसकर बस इतना ही कहा, "देवीजी इसमें अचरज की कोई बात नहीं है। बिजली की कड़क के बाद पानी तो आना ही था।"
चित्त् की एकग्रता से बहुत-सी घरेलू उलझनें हुईं, लेकिन उसी की बदौलत आज सुकरात को दुनिया याद करती है।
किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है, "प्रतिभा के मानी होते हैं नब्बे फ़ीसदी बहाना और दस फ़ीसदी प्रेरणा। दुनिया के काम मेहनत और एकाग्रता से ही पूरे होते हैं। वैज्ञानिको का कहना है कि एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति भरी होती है कि उसके द्वारा संसार की सारी मोटरें और चक्कियां चेलाई जा सकती हैं। ज़रुरत बस उस शक्ति को इअकटठा करने की हैं। भाप को इंजन, पिस्टन रॉड पर केन्द्रित करने की है।
एमर्सन का कथन है-"अगर जिंदगी में कोई बुद्धिमानी की बात है तो वह एकाग्रता है और अगर कोई खराब बात है तो अपनी शक्तियों को बिखेर देना।"
दुनिया में लोगों में शक्ति की कमी नहीं है, लेकिन वे अपनी उस शक्ति को केन्द्रित करना नहीं जानते। बंधी हुई भाप बड़े-से-बड़े इंजनों को खींच ले जाती है, लेकिन अगर वह बिखर जाय तो बेकार चली जाती है।
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