काम मे प्रसन्नता
किसी बड़े आदमी ने कहा है कि जिस काम मे प्रसन्नता, आन्नद न हो, वह बेकार है। हम रोज़ देखते है कि कुछ लोग थोड़ा-सा काम करके थक जाते है, जबकि कुछ लोग ढेर-का-ढेर काम करके भी फूल की तरह खिले रहते है। इसका कारण क्या है। इसका कारण यही है कि जिनको काम मे रस नही आता, उनके लिए काम, भारी बोझ-सा होता है और भला भारी बोझ लेकर आदमी कितनी दूर चल सकता है? जिनको काम में रस मिलता है, वे उसमें आनन्द लेते हैं, उसे सहज भाव से करते है, इसलिए काम का भार उन पर नही पड़ता।
काम में यह आन्नद तब मिलता है, जबकि हम काम के साथ आत्मीयता का नाता जोड़ लेते है। मॉँ अपने बच्चे के लिए रात-रात भर जागती है, फिर भी उसे वह भारी नही पड़ता। दूसरे के लिए थोड़ा-सा भी जगने मे उसे हैरानी हो जाती है।
यह भी जरूरी है कि हम किसी भी काम को छोटा न समझे। हमारे यहॉँ बुद्धि से काम करने वाले शरीर की मेहनत से होने वाले कामों को छोटा समझते है। नतीजा यह कि जब उन्हें शरीर से काम करना पड़ता है तो उन्हें आनन्द नही आता। कोई भी काम छोटा नहीं है, न कोई काम बड़ा है। सबका अपना-अपना स्थान है। कहावत है न कि, "जहॉँ काम अवे सुई, कहॉँ करै तलवार।" यानी जहॉँ सूई की आवश्यकता है, वहॉँ तलवार क्या करेगी? रसोई मे काम करने वाला रसोइया, दफ्तर मे काम करने वाला बाबू, कक्षा मे पढ़ाने वाला अध्यापक, प्रयोगशाला मे प्रयोग करने वाला वैज्ञानिक, इमारतों के नक्शे बनाने वाला इंजीनियर, खेतों मे काम करने वाले किसान और मज़दूर आदि-आदि सबके काम अपना-अपना महत्व रखते है। उनमें न कोई हेय है, न कोइ श्रेष्ठ है। सब आदमी के लिए जरूरी है ओर एक-दूसरे के पूरक है।
जब काम के साथ ऐसी भावना पैदा हो जाती है तो उसमें से आनन्द का सोता फूट पड़ता है। काम बहुत ही प्यारा लगने लगता है। शेक्सपियर ने लिखा है, "जिस परिश्रम से हमें आनन्द मिलता है, वह हमारी व्याधियों के लिए अमृत के समान होता है।"
काम मे आदमी को रस मिलने से उसका उत्साह बढ़ता है। उत्साह बढ़ने से आदमी के हाथ दूना काम करते है। उत्साह वह ज्योति है, जिसके आगे निराशा का अंधकार एक क्षण नही ठहरता। उत्साह से भरा व्यक्ति कभी खाली नही बैठ सकता। उसे नित नये-नये काम सूझते रहते है। बड़ी उम्र मे भी जवान बना रहता है।
जीवन में सबके सामने बड़े-बड़े अवसर आते रहते है। जो उन्हे पहचानकर पकड़ लेते है, वे महान काम कर डालते है। किसी चित्रशाला मे एक चित्र था, जिसमें चेहरा बालों से ढँका था और पैर मे पंख लगे थे। किसी ने पूछा, "यह किसकी तस्वीर है?"
गांधी जी के लिए कभी कोई काम छोटा न था।
कलाकार ने कहा, "अवसर की।"
"इसका मुँह क्यों छिपा हुआ है?"
"इसलिए कि जब यह लोगों के सामने आता है तो वे इसे पहचान नही पाते।"
"इसके पैर में पंख क्यो लगें है?"
"इसलिए कि यह बड़ी तेजी से भाग जाता है और एक बार गया कि उसे कोई नहीं पकड़ सकता।"
उत्साही आदमी अवसर को कभी हाथ से नही जाने देता। उसकी ऑंखे सदा खुली रहती है और उसकी बुद्धि हमेशा जाग्रत रहती है।
बाइबिल मे कहा है-"काम पूजा है।" जिस तरह लोग पूजा मे ऊँची निगाह और ऊँची भावना रखते है, वैसी ही निगाह और भावना हमें हर काम मे रखनी चाहिए। जिसे काम मे रस आता है, वही काम की महिमा को जानता है, वही काम को कर्त्तव्य मानकर करता है। गांधीजी को इतने बड़े-बडे काम रहते थे, लेकिन फिर भी वही अपने आश्रम के छोटे-से-छोटे काम मे भी मदद करते थे। रसोई मे साग काटते थे, पखाना साफ करते थे, बीमारों की देख-भाल करते थे। काम उनके लिए सचमुच की पूजा थी।
किसी बड़े आदमी ने कहा है कि जिस काम मे प्रसन्नता, आन्नद न हो, वह बेकार है। हम रोज़ देखते है कि कुछ लोग थोड़ा-सा काम करके थक जाते है, जबकि कुछ लोग ढेर-का-ढेर काम करके भी फूल की तरह खिले रहते है। इसका कारण क्या है। इसका कारण यही है कि जिनको काम मे रस नही आता, उनके लिए काम, भारी बोझ-सा होता है और भला भारी बोझ लेकर आदमी कितनी दूर चल सकता है? जिनको काम में रस मिलता है, वे उसमें आनन्द लेते हैं, उसे सहज भाव से करते है, इसलिए काम का भार उन पर नही पड़ता।
काम में यह आन्नद तब मिलता है, जबकि हम काम के साथ आत्मीयता का नाता जोड़ लेते है। मॉँ अपने बच्चे के लिए रात-रात भर जागती है, फिर भी उसे वह भारी नही पड़ता। दूसरे के लिए थोड़ा-सा भी जगने मे उसे हैरानी हो जाती है।
यह भी जरूरी है कि हम किसी भी काम को छोटा न समझे। हमारे यहॉँ बुद्धि से काम करने वाले शरीर की मेहनत से होने वाले कामों को छोटा समझते है। नतीजा यह कि जब उन्हें शरीर से काम करना पड़ता है तो उन्हें आनन्द नही आता। कोई भी काम छोटा नहीं है, न कोई काम बड़ा है। सबका अपना-अपना स्थान है। कहावत है न कि, "जहॉँ काम अवे सुई, कहॉँ करै तलवार।" यानी जहॉँ सूई की आवश्यकता है, वहॉँ तलवार क्या करेगी? रसोई मे काम करने वाला रसोइया, दफ्तर मे काम करने वाला बाबू, कक्षा मे पढ़ाने वाला अध्यापक, प्रयोगशाला मे प्रयोग करने वाला वैज्ञानिक, इमारतों के नक्शे बनाने वाला इंजीनियर, खेतों मे काम करने वाले किसान और मज़दूर आदि-आदि सबके काम अपना-अपना महत्व रखते है। उनमें न कोई हेय है, न कोइ श्रेष्ठ है। सब आदमी के लिए जरूरी है ओर एक-दूसरे के पूरक है।
जब काम के साथ ऐसी भावना पैदा हो जाती है तो उसमें से आनन्द का सोता फूट पड़ता है। काम बहुत ही प्यारा लगने लगता है। शेक्सपियर ने लिखा है, "जिस परिश्रम से हमें आनन्द मिलता है, वह हमारी व्याधियों के लिए अमृत के समान होता है।"
काम मे आदमी को रस मिलने से उसका उत्साह बढ़ता है। उत्साह बढ़ने से आदमी के हाथ दूना काम करते है। उत्साह वह ज्योति है, जिसके आगे निराशा का अंधकार एक क्षण नही ठहरता। उत्साह से भरा व्यक्ति कभी खाली नही बैठ सकता। उसे नित नये-नये काम सूझते रहते है। बड़ी उम्र मे भी जवान बना रहता है।
जीवन में सबके सामने बड़े-बड़े अवसर आते रहते है। जो उन्हे पहचानकर पकड़ लेते है, वे महान काम कर डालते है। किसी चित्रशाला मे एक चित्र था, जिसमें चेहरा बालों से ढँका था और पैर मे पंख लगे थे। किसी ने पूछा, "यह किसकी तस्वीर है?"
गांधी जी के लिए कभी कोई काम छोटा न था।
कलाकार ने कहा, "अवसर की।"
"इसका मुँह क्यों छिपा हुआ है?"
"इसलिए कि जब यह लोगों के सामने आता है तो वे इसे पहचान नही पाते।"
"इसके पैर में पंख क्यो लगें है?"
"इसलिए कि यह बड़ी तेजी से भाग जाता है और एक बार गया कि उसे कोई नहीं पकड़ सकता।"
उत्साही आदमी अवसर को कभी हाथ से नही जाने देता। उसकी ऑंखे सदा खुली रहती है और उसकी बुद्धि हमेशा जाग्रत रहती है।
बाइबिल मे कहा है-"काम पूजा है।" जिस तरह लोग पूजा मे ऊँची निगाह और ऊँची भावना रखते है, वैसी ही निगाह और भावना हमें हर काम मे रखनी चाहिए। जिसे काम मे रस आता है, वही काम की महिमा को जानता है, वही काम को कर्त्तव्य मानकर करता है। गांधीजी को इतने बड़े-बडे काम रहते थे, लेकिन फिर भी वही अपने आश्रम के छोटे-से-छोटे काम मे भी मदद करते थे। रसोई मे साग काटते थे, पखाना साफ करते थे, बीमारों की देख-भाल करते थे। काम उनके लिए सचमुच की पूजा थी।
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