9 जन॰ 2017
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बिजनेस में उतार-चढ़ाव कोई नई बात नहीं है पर कोई नया बिजनेस शुरू कर उसमें सफल होना हमेशा नई बात रही है. बिजनेस के लिए सबसे जरूरी चीज है पैसा या फंड. पर जरूरी नहीं कि किसी के पास पैसा है तो वह एक सफल बिजनेसमै बन ही जाए या अगर आपके पास पैसे नहीं हैं तो आप बिजनेस शुरू नहीं कर सकते. कई बिजनेसमैन हैं जिन्होंने बिजनेस के लिए फंड या पैसों की सबसे जरूरी चीज की धारणा को गलत साबित किया है. इनफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति आज सफल और स्थापित बिजनेसमैन के रूप में जाने जाते हैं. पर शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि नारायण मूर्ति ने इनफोसिस का आधार केवल 10,000 रुपयों से शुरू किया था और वह भी कर्ज लेकर.
आज इंफोसिस मल्टीनेशनल कंपनी में आती है और आईटी की सर्विसेज देने वाली तीसरी बड़ी कंपनी है. पर 1981 में जब श्री नारायण मूर्ति (Narayan Murthy) ने इसे शुरू किया था तो उनके पास पैसे नहीं थे. उनकी पत्नी सुधा ने मूर्ति से छुपाकर जमा किए 10,000 रु. उन्हें कंपनी शुरू करने के लिए दी थी. इंफोसिस के लिए यही 10,000 इसका आधार बना. उस वक्त इनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि कंपनी के लिए कोई कमरा भी किराए पर ले सकें. शुरू होने के 6 महीने बाद 2 जुलाई, 1981 को कंपनी का रजिस्ट्रेशन इंफोसिस प्राइवेट लिमिटेड के नाम से हुआ जिसमें ऑफिस का पता मूर्ति के दोस्त और कंपनी में पार्टनर राघवन के घर का दिया गया. हालांकि मूर्ति के घर के अगले भाग में स्थित कमरा ही उनका यानि कि इंफोसिस का ऑफिस था.
नारायण मूर्ति का हौसला ही था कि आज इंफोसिस इस मुकाम पर पहुंच पाया है वरना एक वक्त ऐसा भी था जब कंपनी की हालत को देखते हुए कंपनी में मूर्ति के अन्य पार्टनर इसे बेच दिए जाने का विचार कर रहे थे. 1990 तक इंफोसिस जरूरी लाभ नहीं कमा पा रही थी. उसी वक्त किसी कंपनी ने इंफोसिस को खरीदने का ऑफर रखा. मूर्ति के अन्य सभी पार्टनर नंदन नीलकेणी ( Nandan Nilekani), एन. एस. राघवन (N. S. Raghavan), एस. गोपालाकृष्णन (S. Gopalakrishnan), एस. डी. शिबुलाल (S. D. Shibulal), के. दिनेश (K. Dinesh) इंफोसिस को बेच देने की राय से सहमत थे पर मूर्ति को यह मंजूर नहीं था. मूर्ति को जब लगा कि उनके पार्टनर अब उनका साथ नहीं देंगे तो उन्होंने उनसे कहा कि ठीक है मैं तुम सबको खरीद लूंगा. भले ही तुम्हें खरीदने में मेरी पाई-पाई चली जाए पर मुझे विश्वास है कि इस कंपनी का भविष्य उज्ज्वल होगा. नारायण मूर्ति के इस वक्तव्य ने सभी को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने कंपनी बेचने का खयाल छोड़कर मूर्ति का साथ देने का फैसला कर लिया.
नारायण मूर्ति ने इंफोसिस का सपना देखते हुए शायद इतना बड़ा एंपायर खड़ा करने का सोचा नहीं होगा. 10,000 की छोटी लागत करोड़ो का मुनाफा कमाने वाली मल्टीनेशनल कंपनी बन चुकी है. आज भारत के अलावे जर्मनी, स्वीडन, बेल्जियम और ऑस्ट्रेलिया में भी इसकी शाखाएं हैं. इंफोसिस हजारों लोगों को रोजगार मुहैया करवा रही है साथ ही समाज सेवा के काम भी करती है. नारायण मूर्ति का हौसला और आत्मविश्वास इंफोसिस को जमीन से आसमान तक की दूरी तय करने में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुआ. यह हर नए बिजनेसमैन के लिए या बिजनेस शुरू करने की चाह रखने वालों के लिए उदाहरण है कि बिजनेस फंड से नहीं आत्मविश्वास से चलता है.
10,000 से शुरू किया था, आज करोड़ो के मालिक हैं
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Successlocator
On: जनवरी 09, 2017
बिजनेस में उतार-चढ़ाव कोई नई बात नहीं है पर कोई नया बिजनेस शुरू कर उसमें सफल होना हमेशा नई बात रही है. बिजनेस के लिए सबसे जरूरी चीज है पैसा या फंड. पर जरूरी नहीं कि किसी के पास पैसा है तो वह एक सफल बिजनेसमै बन ही जाए या अगर आपके पास पैसे नहीं हैं तो आप बिजनेस शुरू नहीं कर सकते. कई बिजनेसमैन हैं जिन्होंने बिजनेस के लिए फंड या पैसों की सबसे जरूरी चीज की धारणा को गलत साबित किया है. इनफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति आज सफल और स्थापित बिजनेसमैन के रूप में जाने जाते हैं. पर शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि नारायण मूर्ति ने इनफोसिस का आधार केवल 10,000 रुपयों से शुरू किया था और वह भी कर्ज लेकर.
आज इंफोसिस मल्टीनेशनल कंपनी में आती है और आईटी की सर्विसेज देने वाली तीसरी बड़ी कंपनी है. पर 1981 में जब श्री नारायण मूर्ति (Narayan Murthy) ने इसे शुरू किया था तो उनके पास पैसे नहीं थे. उनकी पत्नी सुधा ने मूर्ति से छुपाकर जमा किए 10,000 रु. उन्हें कंपनी शुरू करने के लिए दी थी. इंफोसिस के लिए यही 10,000 इसका आधार बना. उस वक्त इनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि कंपनी के लिए कोई कमरा भी किराए पर ले सकें. शुरू होने के 6 महीने बाद 2 जुलाई, 1981 को कंपनी का रजिस्ट्रेशन इंफोसिस प्राइवेट लिमिटेड के नाम से हुआ जिसमें ऑफिस का पता मूर्ति के दोस्त और कंपनी में पार्टनर राघवन के घर का दिया गया. हालांकि मूर्ति के घर के अगले भाग में स्थित कमरा ही उनका यानि कि इंफोसिस का ऑफिस था.
नारायण मूर्ति का हौसला ही था कि आज इंफोसिस इस मुकाम पर पहुंच पाया है वरना एक वक्त ऐसा भी था जब कंपनी की हालत को देखते हुए कंपनी में मूर्ति के अन्य पार्टनर इसे बेच दिए जाने का विचार कर रहे थे. 1990 तक इंफोसिस जरूरी लाभ नहीं कमा पा रही थी. उसी वक्त किसी कंपनी ने इंफोसिस को खरीदने का ऑफर रखा. मूर्ति के अन्य सभी पार्टनर नंदन नीलकेणी ( Nandan Nilekani), एन. एस. राघवन (N. S. Raghavan), एस. गोपालाकृष्णन (S. Gopalakrishnan), एस. डी. शिबुलाल (S. D. Shibulal), के. दिनेश (K. Dinesh) इंफोसिस को बेच देने की राय से सहमत थे पर मूर्ति को यह मंजूर नहीं था. मूर्ति को जब लगा कि उनके पार्टनर अब उनका साथ नहीं देंगे तो उन्होंने उनसे कहा कि ठीक है मैं तुम सबको खरीद लूंगा. भले ही तुम्हें खरीदने में मेरी पाई-पाई चली जाए पर मुझे विश्वास है कि इस कंपनी का भविष्य उज्ज्वल होगा. नारायण मूर्ति के इस वक्तव्य ने सभी को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने कंपनी बेचने का खयाल छोड़कर मूर्ति का साथ देने का फैसला कर लिया.
नारायण मूर्ति ने इंफोसिस का सपना देखते हुए शायद इतना बड़ा एंपायर खड़ा करने का सोचा नहीं होगा. 10,000 की छोटी लागत करोड़ो का मुनाफा कमाने वाली मल्टीनेशनल कंपनी बन चुकी है. आज भारत के अलावे जर्मनी, स्वीडन, बेल्जियम और ऑस्ट्रेलिया में भी इसकी शाखाएं हैं. इंफोसिस हजारों लोगों को रोजगार मुहैया करवा रही है साथ ही समाज सेवा के काम भी करती है. नारायण मूर्ति का हौसला और आत्मविश्वास इंफोसिस को जमीन से आसमान तक की दूरी तय करने में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुआ. यह हर नए बिजनेसमैन के लिए या बिजनेस शुरू करने की चाह रखने वालों के लिए उदाहरण है कि बिजनेस फंड से नहीं आत्मविश्वास से चलता है.
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