राजा मानसिंह बहुत ही चिंता में पड़ गए थे। उनके चार अड़ियल घोड़े किसी कीमत पर तालिम सीख ही नहीं रहे थे। देश परदेश से कई तालिमार्थी आए और गए। कुछ लोग तो इसी चक्कर में हड्डियाँ भी तुड़वा बैठे। पर जंगली घोडे टस से मस नहीं हो रहे थे। कुछ दिन बाद राजा मानसिंह नें ऐलान कर दिया की जो भी इन घोड़ों को तालिम दे पाएगा उसे में एक घड़ा भर के सोने के सिक्के दूंगा। इनाम की खबर सुन कर एक नौजवान आगे आया। उसने घोड़ों को तालिम देने की चुनौती स्वीकार कर ली। और यह शर्त रखी की यह कार्य होने तक उसे घोड़ों के साथ दूर अकेला छोड़ दिया जाये।
करीब तीन माह तक वह आदमी घोड़ों को ले कर किसी अंजान जगह चला गया। अब राजा मानसिंह को लगा की वह नौजवान वापिस नहीं आएगा। और अब तक घोड़े उसके कब्ज़े से भाग भी चुके होंगे। तभी उन्हे घोड़ों के तलवों (खुर) की आवाज़ सुनाये देने लगी। उनके चारों घोड़े एक कतार में आराम से चलते हुए उसी के महल की और आ रहे थे। और उन पर लगाम और गद्दी भी लगी हुई थी।
इसका मतलब साफ था की वह चारो घोड़े अब तालिम ले चुके थे। राजा मानसिंह यह देख कर अति प्रसन्न हुए। उन्होने उसी वक्त घोड़ो को अपने कब्ज़े में लिया और उस नवयुवक को उसका इनाम दे दिया।
फिर राजा मानसिंह नें उसे पूछा की तुम इस कार्य में सफल कैसे हुए। यह घोड़े तो अच्छों अच्छों की हड्डियाँ तुड़वा चुके हैं। तब उस नौजवान नें कहा की, मैंने इन घोड़ो को मुक्त विचरने दिया। जिस से इनका तनाव दूर हो गया।
फिर धीरे धीरे इन के करीब से गुजरने लगा ताकि यह मेरी मौजूदगी स्वीकार करना सीख लें। उसके बाद मै इनहि के चरने के समय पास बैठ कर भोजन करता, जब यह आँख बंद कर के खड़े खड़े सुस्ताते तो मै भी इनके पास खड़ा खड़ा आंखे बंद कर के सोने का नाटक करता।
जब यह घोड़े मस्ती में खेलते दौड़ते तो मै भी इनके साथ उछलता कूदता। इस तरह मैंने धीरे धीरे इन सब का विश्वास जीता। फिर इन पर गद्दी बिछाना शुरू किया। पहले यह जटक देते थे। पर आहिस्ता आहिस्ता इन्हे मेरी आदत हो गयी।
फिर में लगाम बांधने लगा। तो यह थोड़े विचलित हुए। लेकिन इन्हे इतना भरोसा हो चुका था की में इन्हे नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा तो मै इस कार्य में भी सफल हुआ। धीरे धीरे मैंने इन पर सवारी करना शुरू किया।
कई बार गुस्से में इनहोने मुझे गिरा भी दिया। पर मैंने सैयम खो कर इन से दूरव्यवहार नहीं किया। बस विनम्रता से प्रयास करता रहा। और अंत में मै इन्हे अन्य लोगों के पास ले जा कर उनको भी सवारी करवाना शुरू किया। जिस से इन घोड़ों को लोगों का डर भी निकल गया। अब यह घोड़े पूरी तरह से तालिमबद्ध और शांत हो चुके हैं। मेरा कार्य खत्म हुआ।
राजा मानसिंह इस नौयुवक की चतुराई भरी बातें सुन कर बहुत खुश हुए। उन्होनेनें उस युवक को एक और सोने के सिक्कों से भरा हुआ घड़ा दिया। और उसे अपने घोड़ों के अस्तबल में प्रमुख कर्मचारी बनाने की पेशकश भी करी। वार्ता समाप्त।
कहानी का सार – मानवी के मन के अंदर भी चार घोड़े होते हैं। मानस, चिंता, अहम और बुद्धि। इन चार तत्व को काबू करना है तो बहुत सैयम से काम लेना चाहिए। जैसे इस कहानी के नौजवान नें लिया था।
दोस्तों अगर आप भी इस कहानी के हीरो जैसे सफल होना चाहते हैं तो अपने मन से दोस्ती कर लो। पहले खुद पर विश्वास करो। अपने मन से positive बात करो। खुद को खुश करो। यानि फिल्म देखो, घूमने जाओ, जो इन्सान अच्छा लगे उसके पास जाओ। खुद को खुश करो।
ऐसा करने से आप का चित्त प्रसन्न होगा। और आप के मुश्किल से मुश्किल काम ऐसे चुटकियों में सफल होने लगेंगे। पोस्ट अच्छी लगे तो पोस्ट Like करो, पोस्ट Share करो। और हमें Subscribe करना भूलना नहीं। धन्यवाद।
16 सित॰ 2017
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प्रतापी राजा मान सिंह और उनके चार अड़ियल घोड़ो की प्रेरणादायक कहानी।
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Successlocator
On: सितंबर 16, 2017
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