10 अप्रैल 2018
विद्यार्थियों के लिए श्लोक।shloka for students भाग-2
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On: अप्रैल 10, 2018
नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तप:।
नास्ति राग समं दुखं नास्ति त्याग समं सुखं॥
भावार्थ :
विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है ।
गुरु शुश्रूषया विद्या पुष्कलेन् धनेन वा।
अथ वा विद्यया विद्या चतुर्थो न उपलभ्यते॥
भावार्थ :
विद्या गुरु की सेवा से, पर्याप्त धन देने से अथवा विद्या के आदान-प्रदान से प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त विद्या प्राप्त करने का चौथा तरीका नहीं है ।
अर्थातुराणां न सुखं न निद्रा कामातुराणां न भयं न लज्जा । विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा क्षुधातुराणां न रुचि न बेला ॥
भावार्थ :
अर्थातुर को सुख और निद्रा नहीं होते, कामातुर को भय और लज्जा नहीं होते । विद्यातुर को सुख व निद्रा, और भूख से पीडित को रुचि या समय का भान नहीं रहता ।
पठतो नास्ति मूर्खत्वं अपनो नास्ति पातकम् ।
मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः ॥
भावार्थ :
पढनेवाले को मूर्खत्व नहीं आता; जपनेवाले को पातक नहीं लगता; मौन रहनेवाले का झघडा नहीं होता; और जागृत रहनेवाले को भय नहीं होता ।
विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः ।
अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥
भावार्थ :
विद्याभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये परम् कल्याणकारक हैं ।
विद्या वितर्को विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया ।
यस्यैते षड्गुणास्तस्य नासाध्यमतिवर्तते ॥
भावार्थ :
विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छे जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं ।
गीती शीघ्री शिरः कम्पी तथा लिखित पाठकः । अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥
भावार्थ :
गाकर पढना, शीघ्रता से पढना, पढते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ जाना, अर्थ न जानकर पढना, और धीमा आवाज होना ये छे पाठक के दोष हैं ।
सद्विद्या यदि का चिन्ता वराकोदर पूरणे ।
शुकोऽप्यशनमाप्नोति रामरामेति च ब्रुवन् ॥
भावार्थ :
सद्विद्या हो तो क्षुद्र पेट भरने की चिंता करने का कारण नहीं । तोता भी “राम राम” बोलने से खुराक पा हि लेता है ।
मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम्।
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥
भावार्थ :
विद्या माता की तरह रक्षण करती है, पिता की तरह हित करती है, पत्नी की तरह थकान दूर करके मन को रीझाती है, शोभा प्राप्त कराती है, और चारों दिशाओं में कीर्ति फैलाती है । सचमुच, कल्पवृक्ष की तरह यह विद्या क्या क्या सिद्ध नहीं करती ?
विद्याविनयोपेतो हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य । कांचनमणिसंयोगो नो जनयति कस्य लोचनानन्दम् ॥
भावार्थ :
विद्यावान और विनयी पुरुष किस मनुष्य का चित्त हरण नहीं करता ? सुवर्ण और मणि का संयोग किसकी आँखों को सुख नहीं देता ?
हर्तृ र्न गोचरं याति दत्ता भवति विस्तृता ।
कल्पान्तेऽपि न या नश्येत् किमन्यद्विद्यया विना ॥
भावार्थ :
जो चोरों के नजर पडती नहीं, देने से जिसका विस्तार होता है, प्रलय काल में भी जिसका विनाश नहीं होता, वह विद्या के अलावा अन्य कौन सा द्रव्य हो सकता है ?
द्यूतं पुस्तकवाद्ये च नाटकेषु च सक्तिता । स्त्रियस्तन्द्रा च निन्द्रा च विद्याविघ्नकराणि षट् ॥
भावार्थ :
जुआ, वाद्य, नाट्य (कथा/फिल्म) में आसक्ति, स्त्री (या पुरुष), तंद्रा, और निंद्रा – ये छे विद्या में विघ्नरुप होते हैं ।
विद्यार्थियों के लिए श्लोक(shlok for students) भाग-1
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On: अप्रैल 10, 2018
सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् । सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥
भावार्थ :
जिसे सुख की अभिलाषा हो (कष्ट उठाना न हो) उसे विद्या कहाँ से ? और विद्यार्थी को सुख कहाँ से ? सुख की ईच्छा रखनेवाले को विद्या की आशा छोडनी चाहिए, और विद्यार्थी को सुख की ।
न चोरहार्यं न च राजहार्यंन भ्रातृभाज्यं न च भारकारी । व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥
भावार्थ :
विद्यारुपी धन को कोई चुरा नहीं सकता, राजा ले नहीं सकता, भाईयों में उसका भाग नहीं होता, उसका भार नहीं लगता, (और) खर्च करने से बढता है । सचमुच, विद्यारुप धन सर्वश्रेष्ठ है ।
नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् । नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥
भावार्थ :
विद्या जैसा बंधु नहीं, विद्या जैसा मित्र नहीं, (और) विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहीं ।
ज्ञातिभि र्वण्टयते नैव चोरेणापि न नीयते ।. दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम् ॥
भावार्थ :
यह विद्यारुपी रत्न महान धन है, जिसका वितरण ज्ञातिजनों द्वारा हो नहीं सकता, जिसे चोर ले जा नहीं सकते, और जिसका दान करने से क्षय नहीं होता ।
सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् । अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥
भावार्थ :
सब द्रव्यों में विद्यारुपी द्रव्य सर्वोत्तम है, क्यों कि वह किसी से हरा नहीं जा सकता; उसका मूल्य नहीं हो सकता, और उसका कभी नाश नहीं होता ।
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम् विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः ।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम् विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥
भावार्थ :
विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, गुप्त धन है । वह भोग देनेवाली, यशदात्री, और सुखकारक है । विद्या गुरुओं का गुरु है, विदेश में वह इन्सान की बंधु है । विद्या बडी देवता है; राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं । इसलिए विद्याविहीन पशु ही है ।
अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् । अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥
भावार्थ :
आलसी इन्सान को विद्या कहाँ ? विद्याविहीन को धन कहाँ ? धनविहीन को मित्र कहाँ ? और मित्रविहीन को सुख कहाँ ?
रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः । विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥
भावार्थ :
रुपसंपन्न, यौवनसंपन्न, और चाहे विशाल कुल में पैदा क्यों न हुए हों, पर जो विद्याहीन हों, तो वे सुगंधरहित केसुडे के फूल की भाँति शोभा नहीं देते ।
विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः । अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥
भावार्थ :
विद्याभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये परम् कल्याणकारक हैं ।
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥
भावार्थ :
विद्या से विनय (नम्रता) आती है, विनय से पात्रता (सजनता) आती है पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है ।
दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले । श्रेष्ठानि कन्यागोभूमिविद्या दानानि सर्वदा ॥
भावार्थ :
सब दानों में कन्यादान, गोदान,भूमिदान,और विद्यादान सर्वश्रेष्ठ है ।
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् । क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥
भावार्थ :
एक एक क्षण गवाये बिना विद्या पानी चाहिए; और एक एक कण बचा करके धन ईकट्ठा करना चाहिए । क्षण गवानेवाले को विद्या कहाँ, और कण को क्षुद्र समजनेवाले को धन कहाँ ?
विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम् तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥
भावार्थ :
विद्या अनुपम कीर्ति है; भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन ।
अनंत की सैर। The journey of infinity (भाग-1)
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On: अप्रैल 10, 2018
"स्वयं और दूसरों की सत्ता से मुक्त होने का अर्थ है,अतीत की प्रत्येक वस्तु के प्रति मर जाना ताकि आपका चित्त सदा तरोताजा,युवा,निर्दोष और उत्साह व उत्कट आवेग से भरा हो।"
"जे.कृष्णमूर्ती"
इन शब्दों का यदि गहनता से अध्ययन किया जाए तो ये हमे उस मार्ग पर ले जा सकते है जिससे हम अनंत की सैर कर सके,कहने का तात्पर्य यह है कि हम यदि अपने भूत-भविष्य की चिंताओं से मुक्त हो जाये और वर्तमान में अपने समग्र अस्तित्व को समाहित कर ले तो हमारे लिए ब्रम्हांड के सारे रास्ते खुल जाएंगे और हम उन सारे सवालों के जवाब जान पाएंगे जो हमारे मन मस्तिष्क में खलबली मचाये हुए है।और वह हर चीज पाने में आप सक्षम हो पाएंगे जिसे इस भौतिक जगत में अर्थपूर्ण समझा जाता है।आप यदि अपने विचार रूपी समुद्री की गहराइयो में गोते लगाएंगे और एक दृष्टा के रूप में उन विचारों का अवलोकन करेंगे तो पता चलेगा कि वर्तमान में तो न हैम सुखी है ना दुखी जो सुख और दुख की अनुभूति है वो तो भूत और भविष्य के विचार हमारे मन मे उठते है उनके फलस्वरूप आती है यही वजह होती है कि वर्तमान में चल रहे किसी काम को हम सही न्याय नही दे पाते क्योंकि अतीत और भविष्य हैम पर इतना हावी रहता है कि वर्तमान हमारा उनकी छाया में जीने को मजबूर रहता है और कभी प्रकाशित नही हो पाता।इसको एक उदाहरण से समझते है एक बार एक टीवी चैनल के साक्षात्कार के दरम्यान सचिन तेंदुलकर से पुछा गया कि जब आप बैटिंग कर रहे होते है और बॉल आपकी तरफ आती है तो आपके मस्तिष्क में क्या विचार आते है उन्होंने बहुत ही सहजता पूर्वक कवाब दिया मैं उस पल सिर्फ उस बॉल को देखता हूं और सारे विचार अपने आप बंद हो जाते है। दोस्तो आपको ये जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि वर्तमान में जीना यानी उस अंतहीन अनंत की सैर ।यदि आपको भी इस अनुभूति का आनंद लेना है और अपने मष्तिष्क में गहराइयों में प्रविष्ट होना है तो एक सवाल के साथ आपको छोड़े जा रहा हु आप उसे हल करने के समय किसी पेपर पेन या किसी बाहरी वस्तु का इस्तेमाल न करे अपने विचारों की गहनता में घुश्कर इसे हाल करने का प्रयाश करे
एक ऐसी संख्या बताइए जिसमे 10 से भाग देने पर शेषफल 9 आये 9 से भाग देने पर शेषफल 8 आये 7 से भाग देने पर शेषफल 6 आये इस प्रकार 6,5,4,3,2,1 से भाग देने पर क्रमसः शेष फल 5,4,3,2,1,0 आये।
यह सवाल सिर्फ एक एक्सरसाइज मात्र है जो आपको अपने अनंत विचारो के समुद्र में डुबकी लगवाकर आपको वर्तमान शक्ति का अनुभव कराएगा।इस सवाल का जवाब और हल करते समय आपके अनुभव आप कमेंट में लिखे ।
8 अप्रैल 2018
आपने कभी अपने आप से ये सवाल पूछे है !!Think about these thinks
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On: अप्रैल 08, 2018
दोस्तो,मैं सुधीर तिवारी आज बहुत दिनों बाद मैं एक पोस्ट लेकर आपके सामने हाजिर हूँ, जो आपको अपने आप से बहुत से सवाल पूछने पर मजबूर कर देगी और मैं गारंटी देता हूं कि यदि आपने इन सवालों के विषय मे गंभीरता से विचार किया तो आपकी जिंदगी और जीने का तरीका सब कुछ बदल जायेगा।
अब मैं आपका ज्यादा समय न लेते हुए अपने वास्तविक विषय पर आते है,दोस्तो क्या आपने कभी सोचा है कि आपके जीवन जीने का मकसद क्या है,ये सवाल जब कोई हमसे पूछता है तो हैम यही कहते है कि अमीर बनना या फिर व्यापार करना,परिवार की खुशी,वगैरह वगैरह, क्या दोस्तो सच मे हमारे जीवन जीने का मकसद यही है क्या इन मकसदों की पूर्ति के पश्चात हम मृत्यु पर्यंत सुखी हो जायेगे,यदि आपको इस सवाल का जवाब नही मिल रहा तो किसी बुजुर्ग से मिलिए उससे उसके पूरी जिंदगी में उसके अनुभव के बारे में पूछिये और उससे ये भी पूछिये क्या वह दिल से खुश है, यदि खुश है तो अब उन्हें मृत्यु का भय नही होना चाहिए आप उनके जवाबो से आकलन लगा सकते है 95% व्यक्ति दोस्तो आपको ऐसे मिलेंगे जिन्हें पता ही नही उनके जीवन का मकसद क्या था अथवा क्या है आप पाएंगे कि जैसे उनके पूर्वज आये और गए वो भी आएंगे और जायेगे ये सिलसिला यू ही चलता रहेगा।अब यदि आप गहराई से मंथन करेगे तो एक सवाल ओर आपके मन मे बेचैनी पैदा करेगा ये सिलसिला आखिर क्या है,हम क्यों जन्म लेते है और क्यों मरते है ऐसा क्या है जो जब तक हमारे साथ रहता है हहम जीवित रहते है हमारी सांसे चलती रहती है और जब वो हमारे साथ छोड़ती है तो हमारा भी अस्तित्व समाप्त हो जाता है आखिर कोन सी वह शक्ति है जो इन सबके पीछे काम कर रही है आखिर क्यों जिनके पास समस्त ऐश्वर्य है वो भी दुखी है,फिर हमारे मन मे सवालो की बरसात होने चालू होगी आखिर मैं हूं कौन आप कहेंगे कि मैं फला नाम का व्यक्ति हूं फला नाम के व्यक्ति मेरे पिता या फिर कहेंगे कि फला कंपनी का मालिक,फिर सवाल उठता है इन सबसे से पहले आप कौन थे और इन सबके बाद आप क्या रहेंगे,आप पाएंगे कि जैसे जैसे हम गहरी सोच में उतरते है सवाल बढ़ते जाते है जो कि अंतहीन जान पड़ते है,क्या इन सवालों के जवाब नही है यह भी गणित के इनफिनिटी की तरह है या फिर अंतहीन ब्रम्हाड की तरह। अब दिसतो आपके पास दो विकल्प शेष रहते है या तो इसे अंतहीन माने या फिर अपने विचारों की गहनतम गहराइयों में घुश्कर इन्हें ढूंढे।
यदि आपको इनमे से किसी एक सवाल का जवाब मील तो हमे कमेंट में जरूर बताएं। अगली पोस्ट में आपके और हमारे अनुभवों से प्राप्त कुछ ऐसे ही सवालो जवाबो की चर्चा करेंगे आप हमारे साथ जुड़े रहिये अपने मन मे उठ रहे सवाल कमेंट में लिखे।
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