"आलोचक-आपका
मार्गदर्शक "
मार्गदर्शक "
एक धनवान व्यक्ति भेंगा था. उसे
अपनी आंखों के दोष का पता न था.
एक दिन उसने दर्पण में देखा कि उसकी
आंखों की बनावट दूसरे व्यक्तियों से
भिन्न तथा खराब है. उसे लगा दर्पण
खराब है. दूसरे दर्पण में देखा, उसमें भी
आंखों में दोष दिखायी दिया. उस
व्यक्ति को क्रोध आ गया. जिस
दर्पण में भी उसे अपनी आंखें दोषपूर्ण
दिखती, वह उन सभी दर्पणों को
तुड़वा देता. घर के सारे दर्पण तोड़ दिये
गये थे. कुछ दिन तक ऐसा ही चलता
रहा. जहां दर्पण मिलता, वह उसे तोड़
देता.
एक दिन उसके मित्र ने उससे दर्पण तोड़ने
का कारण पूछा. कारण सुनने के बाद
मित्र ने कहा,‘‘भाई कमी दर्पण में नहीं,
तुम्हारी आंखों में है. दर्पण में जो
दिखता है, वह तो प्रतिबिंब मात्र है.
कहने का मतलब कि यदि
कोई आलोचना करे, तो आलोचक में
कमी न देख, आत्ममंथन कर जरूरी सुधार
करें. यदि कोई आपकी आलोचना कर
रहा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि
आपमें वाकई कोई दोष या कमी है.
आलोचना का एक पक्ष यह भी हो
सकता है कि आपके आलोचक आपसे कुछ
भिन्न विचार रखते हों. अमेरिकी
राजनेता एलेनर रुजवेल्ट के अनुसार कोई
आपको तब तक नीचा नहीं दिखा
सकता, जब तक कि स्वयं आपकी उसके
लिए सहमति न हो. घर हो या बाहर,
ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां आपको
आलोचना का सामना न करना पड़े. हर
क्षेत्र में और हर जगह यह एक आम बात है.
यह कभी स्वस्थ तरीके से
की जाती है तो कभी बीमार
मानसिकता से भी. ठीक इसी तरह इसे
ग्रहण करने की बात भी है. कुछ लोग इसे
स्वस्थ मन से स्वीकार करते हैं और कुछ
इसी से अपने मन को बीमार बना लेते हैं.
कुछ ऐसे भी होते हैं जो सुनते हैं, अगर उन्हें
लगता है कि बात सही है तो गुनते हैं,
वरना ठहाका लगाते हैं और आगे बढ़
जाते हैं.
किसी की आलोचना का आप पर
कैसा असर होता है, यह बहुत हद तक
आपके नजरिये पर निर्भर है. इस नजरिये
से ही यह तय होता है कि आप अपनी
जिंदगी में किस हद तक सफल होंगे.
इसीलिए सजग लोग आलोचना को
भी अपने व्यक्तित्व विकास की
योजना का एक जरूरी हिस्सा बना
लेते हैं.
- बात पते की
* कोई आपको तब तक नीचा नहीं
दिखा सकता, जब तक कि स्वयं
आपकी उसके लिए सहमति न हो.
* इसीलिए सजग लोग आलोचना को
भी अपने व्यक्तित्व विकास की
योजना का एक जरूरी हिस्सा बना
अपनी आंखों के दोष का पता न था.
एक दिन उसने दर्पण में देखा कि उसकी
आंखों की बनावट दूसरे व्यक्तियों से
भिन्न तथा खराब है. उसे लगा दर्पण
खराब है. दूसरे दर्पण में देखा, उसमें भी
आंखों में दोष दिखायी दिया. उस
व्यक्ति को क्रोध आ गया. जिस
दर्पण में भी उसे अपनी आंखें दोषपूर्ण
दिखती, वह उन सभी दर्पणों को
तुड़वा देता. घर के सारे दर्पण तोड़ दिये
गये थे. कुछ दिन तक ऐसा ही चलता
रहा. जहां दर्पण मिलता, वह उसे तोड़
देता.
एक दिन उसके मित्र ने उससे दर्पण तोड़ने
का कारण पूछा. कारण सुनने के बाद
मित्र ने कहा,‘‘भाई कमी दर्पण में नहीं,
तुम्हारी आंखों में है. दर्पण में जो
दिखता है, वह तो प्रतिबिंब मात्र है.
कहने का मतलब कि यदि
कोई आलोचना करे, तो आलोचक में
कमी न देख, आत्ममंथन कर जरूरी सुधार
करें. यदि कोई आपकी आलोचना कर
रहा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि
आपमें वाकई कोई दोष या कमी है.
आलोचना का एक पक्ष यह भी हो
सकता है कि आपके आलोचक आपसे कुछ
भिन्न विचार रखते हों. अमेरिकी
राजनेता एलेनर रुजवेल्ट के अनुसार कोई
आपको तब तक नीचा नहीं दिखा
सकता, जब तक कि स्वयं आपकी उसके
लिए सहमति न हो. घर हो या बाहर,
ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां आपको
आलोचना का सामना न करना पड़े. हर
क्षेत्र में और हर जगह यह एक आम बात है.
यह कभी स्वस्थ तरीके से
की जाती है तो कभी बीमार
मानसिकता से भी. ठीक इसी तरह इसे
ग्रहण करने की बात भी है. कुछ लोग इसे
स्वस्थ मन से स्वीकार करते हैं और कुछ
इसी से अपने मन को बीमार बना लेते हैं.
कुछ ऐसे भी होते हैं जो सुनते हैं, अगर उन्हें
लगता है कि बात सही है तो गुनते हैं,
वरना ठहाका लगाते हैं और आगे बढ़
जाते हैं.
किसी की आलोचना का आप पर
कैसा असर होता है, यह बहुत हद तक
आपके नजरिये पर निर्भर है. इस नजरिये
से ही यह तय होता है कि आप अपनी
जिंदगी में किस हद तक सफल होंगे.
इसीलिए सजग लोग आलोचना को
भी अपने व्यक्तित्व विकास की
योजना का एक जरूरी हिस्सा बना
लेते हैं.
- बात पते की
* कोई आपको तब तक नीचा नहीं
दिखा सकता, जब तक कि स्वयं
आपकी उसके लिए सहमति न हो.
* इसीलिए सजग लोग आलोचना को
भी अपने व्यक्तित्व विकास की
योजना का एक जरूरी हिस्सा बना
- लेते हैं.
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