29 फ़र॰ 2016

हारिए न हिम्मत

By: Successlocator On: फ़रवरी 29, 2016
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  • हारिए न हिम्मत


    कहिए साहब, क्या मामला है? आप इतने उदास क्यों है। आपकी आंखों मे आंसू क्यों छलछला रहे है। आपके चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही है?

    ओहो, आप मुसीबतों मे जूझते-बूझते थक गये है। घर मे बीमारी है, बच्चो की पढाई का बोझ है, लड़की का जल्दी ही ब्याह होना है, बीसियों खर्च सिर पर है, पर पैसे की तंगी है। रात-दिन परेशानियों से आपका हौसला पस्त हो गया है, आपकी हिम्मत जवाब दे गयी है। चारों ओर अंधकार दिखाई देता है। कोई रास्ता ही नही सूझता।

    भाई, आपके साथ मेरी सहानूभूति है और मैं चाहता हूं कि आपकी परेशानियां जल्दी-से-जल्दी दूर हो। पर मेरी एक बात का जवाब दीजिए। क्या आपके इतनी चिन्ता करने, इतना हैरान होने और निराश होकर हाथ-पर-हाथ रखकर बैठ जाने से आपकी कोई समस्या हल हुई है? हल होने में मदद मिली है? बीमारी को कोई फायदा पहुंचा हैं? बच्चों की पढाई का बोझ हल्का हुआ है? लड़की शादी के लिए रास्ता निकला है?

    वाह, आपने भी अच्छा सवाल किया! अजी, मुसीबत आती है तो किसे हैरानी नही होती? चोट लगती है तो किसके दर्द नही होता? जब चारों तरफ के रास्तें बंद हो जाते है तो किसका दिल नही टूटता? इंसान ही तो है! बहुत ज्यादा बोझ आखिर कब तक उठा सकता हैं।

    आपने इतनी बातें कह डाली, पर मेरे सवाल का ज़वाब मुझे नही मिला। मैने पूछा था कि क्या फ्रिक करने और हिम्मत हारने से आपकी मुश्किलें कम हुई? कठिनाइयों मे से रास्तें निकला?

    जी नही, मेरी समस्याएँ ज्यो-की-त्यों बनी है, बल्कि बढ़ी ही है।

    तब आप बताइए कि आपने चिन्ता करके, हिम्मत हार करके, क्या पाया? किसी ने ठीक ही कहा है, चिन्ता चिता के समान है। वह आदमी को खा जाती है और जो चिता के वश मे हाकर हौसला छोड़ बैठते है, उनकी नाव डूब जाती है। रूकावटें किसके रास्ते मे नही आती? लेकिन उनसे पार वे ही पाते है, जो उनके आगे सिर नही झुकाते, उनका मुक़ाबला करते हैं,

    शुतुरमुर्ग का नाम आपने सुना होगा। जब कोई खतरा आता है तो वह डर के मारे अपना मुँह धरती मे गाड़ लेता है। जानते है, इसका नतीजा क्या होता है? बड़ी आसनी से मौत उसे अपने पंजे मे जकड़ लेती हैं।

    शुतुरमुर्ग जानवरर होता है और माना जाता है कि बहुत-से जानवरों मे अक़ल की कमी होती है। पर आदमी तो अक़लमन्द कहलाता है। ऐसी लाचारी उसके लिए शोभा नही देती। मर्द तो वह है, जिसकी हिम्मत के सामने तूफान भी थरथरा उठे।

    कोलम्बस की कहानी आपने पढ़ी होगी। वह एक छोटा-सा जहाज लेकर नयी दुनिया की खोज करने के लिए महासागर मे निकल पड़ा था। अचानक तूफान आ गया। तीन दिन तक उसका जहाज लहरों से टक्कर लेता रहा। इतने मे उसका एक मस्तूल ख़राब हो गया। उन दिनों जहाज इंजन से नही चलते थे। ऊँची बल्लियँ। लगाकर उन पर पाल तान देते थे। पालों में हवा भर जाती थी और उससे जहाज चलते थे।

    मस्तूल का खराब होना मामूली बात नही थी। उसके मानी थी जहाज का खतरा, आदमियों की जान को ख़तरा। उसके संगी-साथी घबरा गये। उन्होने कहा, "अब हम आगे नही जायेगें। देश लौट जायेंगें। कोलम्बस बड़ा साहसी था। उसने मॉँझियों का हौसला बढ़ाया। बोला, "जरा-सी बात पर हाथ-पैर फुला दोगे तो उससे क्या होगा? तूफान हमारी परीक्षा ले रहा है। हम हार नही मानेगें।"

    मॉँझियों की खोई हिम्मत लौट आयी। पर ज़रा आगे बढ़े कि उनकी कुतुबुनुमा बिगड़ गयी। कुतुबुनुमा दिशा बताने वाली घड़ी होती है। उसके ख़राब होने से यह पता लगना कठिन हो गया कि वे किधर जा रहे है। पर कोलम्बस की रग-रग मे हिम्मत भरी थी। मॉँझियों को

    समझाकर उसने कहा, "मैं आपसे कहता हूँ, कितनी भी मुश्किले आयें, पर जीत हमारी जरुर होगी।"

    और उसकी बात सच निकली। वे आगे बढते गये। उनके हर्ष का ठिकाना न रहा, जब उन्हें अकस्मात् पानी पर झाड़ियों की लकड़ियॉँ तैरती दिखाई दी और आकाश मे उड़ते हुए पक्षी नज़र आये। उन्हे नयी दुनिया मिल गयी, जिसकी तलाश मे वे निकले थे।

    अब आप बताइए, अगर तूफान के आने, मस्तूल के खराब होने और कुतुबनुमा के बिगड़ जाने पर कोलम्बस ने हार मान ली होती तो क्या होता? दुनिया एक बहुत बड़ी खोज से वंचित रह जाती।

    कार्लाइल दुनिया का बहुत बड़ा लेखक हुआ हैं। उसने फ्रांस की क्रान्ति का इतिहास लिखने मे बड़ी मेहनत की। उसका पहला भाग छपने जानेवाला था कि एक मित्र उसे पढ़ने ले गये। मित्र की गलती से वह घर के फर्श पर गिर पड़ा और नौकरानी ने उसे रद्दी काग़ज़ समझकर आग जलाने के काम मे ले लियां। मित्र को मालूम हुआ तो बड़े दुखी हुए, पर कार्लाइल के माथे पर शिकन तक न आयीं। महीनों तक उसने सैकड़ो किताबों, हस्तलिखित पत्रों ओर घटनाओं के हालों को फिर से पढा और उस ग्रन्थ्र को दोबारा लिखकर ही माना।

    किसी ने ठीक ही कहा है, "जीवन की धारा जब किसी गीत की तरह बहती हो तो उस समय पुलकित होना काफी आसान है; लेकिन असली अदमी तो वह है, जो सबकुछ उल्टा होने पर भी मुस्करा सके।"


    28 फ़र॰ 2016

    खरी कमाई

    By: Successlocator On: फ़रवरी 28, 2016
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  •                                      खरी कमाई

    आप कहेंगे, तुम सेवा की और प्रेम की बातें करते हो। हम भी उन्हें जानतें है। पर जिन्हें हर घड़ी पेट के लाले पड़े रहते हो, वे कहाँ से सेवा और कहाँ से प्रेम करें? उन्हे तो सबसे पहले रोटी चाहिए।

    आपकी बात सच है। भूखे को रोटी चाहिए और रोटी उसे हर हालत मे मिलनी चाहिए, लेकिन उतने से आदमी को सन्तोंष होता कहाँ है! पहली बात तो यह कि आदमी मेहनत नही करता, काम से बचता है; दूसरी बात यह कि वह खाने के लिए कम, बचाने के लिए अधिक कमाता है। गांधीजी ने लिखा है, "हर मेहनती आदमी को रोजी पाने का अधिकार है, मगर धन इकटठा करने का अधिकार किसी को नहीं है। सच कहें तो धन का इकटठा करना चोरी है। जो भूख से अधिक धन लेता है, वह जान मे या अनजान में, दूसरों की रोजी छीनता है।"

    आज दुनिया मे यही हो रहा है। एक ओर इतनी कमाई है कि आदमी खाकर हज़म नही कर सकता; दूसरी ओर इतना अभाव है कि आदमी पेट भरकर खा भी नही सकता। जहाँ ढेर होता है, वहाँ गडढा अपने आप हो जाता है। एक बुढिया की बड़ी मजेदार कहानी है। एक बड़ी ग़रीब बुढ़िया थी। बेचारी तंगी के मारे हैरान रहती थी। एक दिन किसी ने उससे कहा, माई पैसे से पैसा आता है।" वह बेचारी कहीं से एक पैसा जुटा लाई ओर पैसे के ढेर के पास खड़ी होकर लगी उसे पैसा दिखाने। थोड़ी देर मे उसका वह पैसा भी ढेर मे चला गया। वह रोने लगी। तब किसी ने उसे समझाया, "तू जानती नही, पैसा ढेर मे जाता है।"

    आज यही बात देखने मे आ रही है। कुछ लोग कहते है कि अमीरी और गरीबी किस ज़माने मे नही रही। पुराने समय से लेकर अब तक यह भेद चला आ रहा है। सब बराबर कैसे हो सकते है?

    इस तर्क मे बड़ी भूल है। ईश्वर ने सारे इंसानो को एक-सा बनाया है। आदमी आदमी मे कोई अन्तर नही रक्खा। अन्तर तो स्वयं आदमी ने पैदा किया है। एक आदमी दिमाग़ से काम करता है, दूसरा शरीर से। पहले को हम बड़ा मानते है और उसे अधिक पैसा देते है, दूसरे को किसान-मजूर कहकर छोटा मानते है। और उसकी कम कीमत लगाते है। लेकिन यह न्याय नही है। जो दिमाग काम करता है, उसे भी खाने को अन्न चाहिए और अन्न बिना शरीर की मेहनत के नही मिल सकता। शरीर से काम करे वाले को दिमागी काम करने वाले का सहारा चाहिए। इस तरह दोनों एक-दूसरे के पूरक है। एक के बिना दूसरे का काम नही चल सकता।

    पर आज का समाज उन्हें एक-दूसरे का पूरक या साथी मानता कहाँ है? बुद्धि से काम करने वाला शरीर की मेहनत को छोटा और ओछा मानता है और उससे बचता है। वह मानता है कि मजूर से मेहनत लेने का उसे अधिकार है। वह यह नही मानता कि

    मजूर के प्रति उसका कोई कर्त्तव्य भी है। फल यह कि ईश्वर की दी हुई समानता को आदमी ने न सिर्फ नष्ट कर दिया है, बल्कि आदमी के बीच ऊँच-नीच की, छोटे-बड़े की, अमीरी-गरीबी की चौड़ी खाई भी खोद दी।

    मेहनत की खरी कमाई।

    गांधीजी इसी खाई को पाटना चाहते थे। उन्होने रामराज्य की जो बात कही थी, उसके पीछे यही भावना थी। वह चाहते थे कि एक भी आदमी बिना अन्न के न रहे, सबको पहनने को कपड़े और रहने को घर मिले, सबको पढाई-लिखाई की सुविधा मिले और हारी-बिमारी के लिए दवा-दारू की व्यवस्था हो; यानी सबको विकास की समान सुविधाएँ हों। उनका तो यहां तक कहना था कि जब तक एक भी आंख मे आंसू है, तब तक लड़ाई की मंजिल पूरी नही सकती।

    यह खाई एकदम दूर हो जाए, तब तो कहना ही क्या! लेकिन आज के जमाने में वह बिल्कुल दूर न हो सके तो कम तो हो ही जानी चाहिए। हमारे समाज की बुनियाद नये मूल्यों पर रक्खी जानी चाहिए। धन को अब तक बहुत प्रतिष्ठा मिल चुकी है, उसकी जगह अब सच्चे इंसान को इज्ज़त मिलनी चाहिए। बौद्धिक और शारीरिक भ्रम के बीच जो दीवार खड़ी हो गयी है, वह टूटनी चाहिए। भ्रमका शोषण बंद होना चाहिए। हमारे सारे काम इंसान को, ग़रीबो के उस प्रतिनिधी का, जिसे गांधीजी ने दरिद्रनारायण कहा था, सामने रखकर होने चाहिए। भारत इसलिए भारत बना रहा कि उसने इंसानियत को ऊँची जगह दी। मानवता को वही मान देने का अब समय आ गया है।

    कहने का मतलब यह कि हर आदमी अपनी क्षमता के अनुसार काम करे और जरूरत के अनुसार पाये; कोई किसी का शोषण ने करे, न अपना होने दे; सब अपने-अपने कर्त्तव्य को जाने और मानें कि अधिकार तो कर्त्तव्य मे से अपने-आप आते है; सब सादगी से रहे ओर सबके बीच प्रेम का अटूट नाता हों। जब समाज की बुनियाद इन पक्के आधरों पर रखी जायेगी। तो हमारे सारे दुखऔरक्लेश अभाव और भेद, अपने-आप दूर हो जायेगें। तब आदमी धन और सत्ता, प्रभुत्व और वैभव, किसी के नीचे नही रहेगा, बल्कि उन सबके ऊपर रहेगा। मानव को इतना मान मिलेगा तो प्रभु ईसा के शब्दो मे धरती पर स्वर्ग उतरते देर नही लगेगी।

    27 फ़र॰ 2016

    प्रेम की निर्मल धारा

    By: Successlocator On: फ़रवरी 27, 2016
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  •                                  प्रेम की निर्मल धारा

    सेवा के लिए पहली शर्त प्रेम हैं, अर्थात जिसके दिल में प्रेम हैं, वही सेवा कर सकता है। टॉल्स्टॉय ने कहा है, "प्रेम स्वर्ग का रास्ता है।" बुद्ध का कथन है, "प्रेम इंसानियत का एक फूल है और है और प्रेम उसका मधु।" रामकृष्ण परंमहंस ने कहा है, "प्रेम संसार की ज्योति है।" विक्टर ह्यूगों का कहना है, "जीवन एक फल है और प्रेम उसका मधु।" रामकृष्ण परंमहंस ने कहा है, "प्रेम अमरता का समुदंर है।" कबीर का कथन है, "जिस घर में प्रेम नहीं, उसे मरघट समझ—बिना प्राण के सॉँस लेने वाली लुहार की धौंकनी।"

    अलग—अलग शब्दों में सभी महापुरूषों ने प्रेम का बखान किया है। वास्तव में प्रम मानव-जाति की बुनियाद है। प्रेम ऐसा चुम्बक है, जो सबको अपनी ओर खींच लेता है। जिसके हृदय में प्रेम है, उसके लिए सब अपने हैं। भारतीय संस्कृति में तो सारी पृथ्वी को एक कटुम्ब माना गया है—'वसुधैव कुटुम्बकम्।'

    जो सबकों प्रेम करता है, उससे बड़ा दौलतमंद कोई नहीं हो सकता। वह दूसरे के दिल में ऊँची भावना पैदा कर देता है। आप जानते हैं, आदमी को भूमि से कितना मोह होता है। कौरवों ने कहा था कि हम पाण्डवों को सुई की नोक के बराबर भी ज़मीन नहीं देगे; लेकिन विनोबा के प्रेम ने लाखों एकड़-भूमि इकट्ठी करा दी। उन्होंने लोगों से यह नहीं कहा कि मुझे जमींन दो। नहीं दोगे तो कानून से या ज़ोर-जबरजस्ती से छीनवा दूगॉँ। जिसका हृदय प्रेम से सराबोर हो, वह ऐसी भाषा कैसे बोल सकता था! उन्होंने कहा, "मेरे प्यारे भाइयों, मैं तुम्हारे घर पर आया हूँ। तुम्हारे पॉच बेटे हैं, छठा होता तो उसका भी लालन-पालन करते न! मुझे अपना छठा बेटा मान लो और मेरा हिस्सा मुझे दे दो।"

    विनोबा का यह प्रेम ही था, जिसने लोगों के दिलों को मोम बना दिया। किसी-किसी ने तो अपनी सारी-की-सारी जमीन उनके चरणों में रख दी। प्रेम के इतने बड़े चमत्कार की घटनाएँ हम किताबों में पढ़ते है, पर आज के युग में विनोबा ने उसे सामने करके दिखा दिया।

    जिसका हृदय निर्मल है, उसी में ऐसे महान् प्रेम का निवास रहता है। वैसे तो हम रोज़ प्रेम करते है; अपने बच्चों के, अपने सम्बन्धियों के, अपने मित्रों के प्रति प्रेम का व्यवहार करते है, लेकिन बारीकी से देखा तो वह असली प्रेम नहीं है। हमारे प्रेम में कर्त्तव्य की थोड़ी-बहुत भावना रहती है; पर साथ ही यह स्वार्थ भी कि हमारे बच्चे बड़े होकर बुढ़ापे का सहारा बनेंगें।

    सगे-सम्बन्धी मुसीबत में काम आवेंगे। अगर हमें यह भरोसा हो जाय कि हमारा काम दूसरों के बिना भी चल जायेगा तो सच मानिए, हमारे प्रेम का बर्तन बहुत-कुछ खाली हो जायेगा। ऐसा प्रेम हमारे जीवन में छोटी-मोटी सुविधाएँ पैदा कर सकता है, पर दुनिया को बाँध नहीं सकता।

    असली प्रेम तो वह है, जिसमें किसी प्रकार की बदले की भावना न हो। इतना ही नही, उसमें विरोधी के लिए भी जगह हो। गर्मी से व्याकुल होकर हम जाने कितनी बार सूरज को कोसते हैं, पर सूरज कभी हम पर नाराजी दिखाता है? हम धरती को रोज़ पैरों से दबाते हुए चलते हैं, पर वह कभी गुस्सा होती है? ज़रा गरम हवा आती है तो हम कहते हैं-मार डाला कमबख्त़ ने।" हमारी गाली का हवा कभी बुरा मानती है? यदि गुस्सा होकर सूरज धूप और रोशनी न दे, धरती अन्न न दे, हवा प्राण न दे, तो सोचिए, हम लोगों की क्या हालत होगी!

    संत फ्रांसिस, जो प्राणि-मात्र को प्रेम करता था।

    पर दुनिया उन्हं कितना ही भला-बुरा कहे, वे अपने धर्म को नहीं छोड़ सकते। उनके प्रेम में तनिक भी अन्तर नहीं पड़ सकता, क्योंकि उनके प्रेम के पीछे किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं है। वे प्रेम इसलिए देते हैं, कि बिना दिये रह नहीं सकते। यही है वास्तविक प्रेम।

    ऐसे प्रेम का वरदान बिरलों को ही मिलता है, पर जिन्हें मिलता है, वे अपने को कृतार्थ बना जाते हैं, दुनिया को धन्य कर जाते हैं।

    26 फ़र॰ 2016

    खोटा धन, खरा इंसान

    By: Successlocator On: फ़रवरी 26, 2016
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  •                          खोटा धन, खरा इंसान
     
    धन की खोट आदमी को तब मालूम होती है, जब वह खरा बनने लगता है। खरा बनने का अर्थ यह नहीं है कि इंसान घरबार छोड़ दे, जंगल में चला जाय और भगवान के चरणों में लौ लगाकर बैठा रहे। बहुत-से लोग ऐसा भी करते हैं, पर यह रास्ता सबका रास्ता नहीं है। ज्यादातर लोग तो दुनिया में रहते है और उनका वास्ता अपने घर के लोगों से ही नहीं, दूसरों के साथ भी पड़ता है। खरा आदमी वह है, जो अपनी बुराइयों को दूर करता है और नीति का जीवन बिताते हुए अपने समाज के और देश के काम आता है। ऐसा आदमी सबकों प्रेम करता है। और सबके सुख-दु:ख में काम आता है। हज़रत मुहम्मद जहॉँ भी दु:ख होता था, वहॉँ फौरन पहुँच जाते थे। भगवान् बुद्ध ने न जाने कितनों की सेवा की। गांधीजी परचुरे शास्त्री के घावों को अपने हाथों से साफ़ करते थे। ये मामूली घाव नहीं थे, कुष्ठ के थे; उनमें से मवाद निकलता था, लेकिन गांधीजी बड़े प्रेम से शास्त्रीजी की सेवा करते थे। ऐसी मिसालें एक-दो, नहीं, सैकड़ों-हजारों है। जो मानव-जाति की सेवा करता है, उससे बड़ा धनी कोई नहीं हो सकता।

    अबू बिन अदम की कहानी आपने सुनी होगी। एक दिन रात को वह अपने कमरे में सो रहा था। अचानक उसकी आँख खुली। देखा कि सामने एक देवदूत बेठा कुछ लिख रहा हे। अदम ने पूछा, "आप क्या लिख रहे हैं?"

    उसने जवाब दिया, "मैं उन लोगों के नाम लिख रहा हूँ, जो भगवान् के प्यारे हैं?"

    अदम थोड़ी देर चुप रहां फिर बोला, "भैया, मेरा नाम उन लोगों में लिख लेना, जो इंसान की सेवा करते है।"

    देवदूत चला गया और अगले दिन जब वह लौटा तो उसके हाथ में उन आदमियों की सूची थी, जिन्हें भगवान् का आशीर्बाद मिला था। अबू बिन अदम का नाम सूची में सबसे ऊपर था। साफ है कि जो दूसरों की सेवा करता है, वह भगवान् की ही सेवा करता है।

    सेवा करने का अपना आनन्द होता है। एक बार सेवा करने की आदत पड़ जाती है तो फिर छूटती नहीं। जो बिना किसी स्वार्थ दूसरो के दूसरों की सेवा करता है, उसका मुक़ाबला कोई नहीं कर सकता। सूरज बिना बदले की इच्छा रखे सबकों धूप और रोशनी देता है, चॉँद ठंडक पहुँचाता है, धरती अन्न देती है, पानी जीवन देता है, हवा प्राण देती है। इनकी बराबरी कौन कर सकता है!

    विनोबा के पास क्या रखा था? न धन, न कोई बाहरी सत्ता; पर सेवा के जोर पर उन्होंने करोड़ों लोगों के दिलों में अपना घर बना लिया। उन्हें चालीस लाख एकड़ से उपर जमीन मिली। सैकड़ों गॉँव ग्रामदान में मिले ओर जीवनदानियों की उनकी पास फौज़ इकट्ठी हो गयी। यह सब कैसे हुआ? सेवा के बल पर। जब विनोबा ने भूदान-यक्ष आरम्भ किया था, लोगों ने जाने क्या-क्या बातें कहीं थीं, पर विनोबा ने उनकी कोई परवा नहीं की। उनका भगवान पर विश्वास था; उनके दिल में कोई स्वार्थ न था। ऐसे आदमी को अपने काम में सफलता मिलनी ही थी। वह हज़ारों मील पैदल चले। जाड़ों में चले, गर्मियों में चले, वर्षा में चले, धूप में चले। लोगों ने कहा, "बाबा, चलते-चलते बहुत दिन हो गये। थोड़ा आराम कर लो।"

    जानते हैं, विनोबा ने क्या जबाबा दिया? उन्होंने कहा, "सूरज कभी रूकता नहीं, चाँद कभी टिकता नहीं, नदी कभी थमती नहीं; मेरी भी यात्रा अखण्ड गति से चलेगी।"

    विनोबा की पग-यात्रा कभी रूकी नहीं।

    सेवा के आनन्द में लीन विनोबा चलते रहे, चलते रहे। देश का कोई भी कोना उन्होंने नहीं छोड़ा। प्रेम की निर्मल धारा उन्होंने घर-घर पहुँचा दी। एक दिन उनकी टोली में हम कई जने बैठे थे। शाम का समय था। उस दिन विनोबा को बहुत-सी जमीन मिली थी। जब उन्हें दिनभर का हिसाब बताया गया तो वह मुस्कराने लगे। बोले, "आज इतनी जमीन हाथ में आयी है, लेकिन देखों, कहीं हाथ में मिट्टी चिपकी तो नहीं!"

    हम सब हँस पड़े, पर विनोबा ने बड़े मर्म की बात कहीं थी। जिसके हाथों में लाखों एकड़ भूमि आयी हो, उसके हाथ में एक कण भी चिपका न रहे, इससे बड़ा त्याग और क्या हो सकता है।

    शरीर के दुबले-पतले विनोबा ने हम सबको दिखा दिया कि इंसान दुनिया में किसी का भी मूल्य नहीं है।

    एक सूफ़ी सन्त ने कहा है, "किसी का दिल उसकी खिदमत करके अपने हाथों में ले, यही सबसे बड़ी इज्ज़त है। हज़ारों काबों से एक दिल बढ़कर है।"

    गांधीजी ने तो सेवा-धर्म को, अहिंसा और सत्य दोनों की बुनियाद माना। उन्होंने कहा, "सेवा-धर्म का पालन किये बिना मैं अहिंसा-धर्म का पालन नहीं कर सकता; और अहिंसा धर्म का पालन किये बिना मैं सत्य की खोज नहीं कर सकता।"

    सेवा की बड़ी महिमा है। धन से आप कुछ लोगों को अपनी ओर खींच सकते हैं, सेना से कुछ और ज्यादा पर विजय पा सकते हैं, लेकिन सारी दुनिया को तो सेवक ही जीत सकता है।

    25 फ़र॰ 2016

    पारसमणि

    By: Successlocator On: फ़रवरी 25, 2016
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  • पारसमणि

    रवीन्द्र ठाकुर की एक बड़ी ही सीख देने वाली रचना है। एक आदमी को रात में सपने में भगवान् दिखाई दिये। उन्होंने उससे कहा कि जाओ, आमुक जगह पर एक साधु रहता है, उससे मिलो और उसके पास हीरा है, उसे ले लो। उस आदमी को लगा, भगवान की बात सही हो सकी है। सो अगले दिन उसने सबेरे उठकर उनके बताये स्थान पर साधु की खोज की। संयोग से साधु मिल गये। उसने उन्हें सपने में भगवान् के दर्शन देने और उनसे मिलकर हीरा लेने की बात बतायी। साधु ने कहा-"हॉँ ठीक है। जाओ, वहॉँ नदी-किनारे पेड़ के नीचे हीरा पड़ा है, उसे ले लो।" आदमी वहॉँ गया और उसके अचरज का ठिकाना न रहा, जब उसने देखा कि पेड़ के नीचे सचमुच बड़ा कीमती हीरा पड़ा है। उसने हीरे को उठा लिया। खुशी से उसका दिल नाचने लगा।

    हीरे को नदी में फेंककर वह साधु के पस चल दिया।

    अचानक उस आदमी के मन में एक विचार पैदा हुआ। साधु ने इसे यों ही क्यों डाल रखा है? जरूर उसके पास इस हीरे से भी मूल्यवान् कोई चीज़ है, जिसने ऐसी अनमोल चीज़ को मिट्टी के मोल बना दिया हैं यह हीरा तो आज है, कल नहीं। मुझे वही चीज़ प्राप्त करनी

    चाहिए, जो हीरे को भी ठीकरा कर देती है। इतना सोच उसने हीरे को नदी में फेंक दिया और साधू के पास चला गया।

    यह घटना कवि के दिमाग की कोरी कल्पना नहीं है, इसमें बहुत बड़ी सच्चाई है। जिसके पास धन से भी कीमती कोई दूसरी चीज़ होती है, उसे धन फीका लगता है। किसी बुद्धिमान ने ठीक ही लिखा है, "जिसके पास केवल धन है, उससे बढ़कर ग़रीब और कोई नहीं है।" ऊँचे दर्जे के एक आदमी ने कितनी बढ़िया बात कहीं है, "मुझसे धनी कोई नहीं है, क्योंकि मैं सिवा भगवान् के और किसी का दास नहीं हूँ।"

    यह जानते हुए भी कि धन-दौलत की आदमी को देखते कोई कीमत नहीं है, आज सभी समाजों में, सभी देखों में, पैसे का बोलबाला है। अमरीका के पास बहुत धन है, पर वह और धन चाहता हैं। रूस के पास उतना पैसा नहीं है; लेकिन वह चाहता है कि उसके देशवासी खूब खुशहाल हों। यही हाल दूसरे बहुत-से देशों का है। वे सब दिन-रात पैसे की होड़ में दौड़ रहे है। जानते हैं, इसका नतीजा क्या है? इसका नतीजा यह है कि अमरीका के बहुत-से लोग रोज़ रात को नींद की दवा लेकर सोते है। उनके जीवन में सहजता नहीं है। और जिसके जीवन में उतावली या उलझन है, उसे नींद कहॉँ से आयेगी!

    दुनिया आज हैरान इसीलिए बनी हुई है कि उसका मुँह दौलत की ओर है। यहॉँ दौलत से मतलब सिर्फ़ रूपये-पैसे से ही नहीं है, सुख-सुविधा की बाहरी चीजों से भी है। ऐसी चीजों के पीछे पड़ने से आदमी को लगता है कि उसे कुछ मिल रहा है, पर उसकी हालत वैसी ही होती है, जैसी की रेगिस्तान में भ्रम से दीख पड़ने वाले पानी को देखकर हिरन की होती है। वह उसकी ओर दौड़ता है, पर पानी हो तो मिले! बेचारा भटक-भटककर प्यासा ही प्राण दे देता है।

    हम कह चुके हैं, संसार में जितने साधु, सन्त, महात्मा और बड़े लोग हुए है, उन्होनें धन से जो कीमती चीजें हैं, उसे पाने की कोशिश की है। उन्होंने अपनी आत्मा को ऊँचा उठाया है, अपनी बुराइयों को दूर करने का प्रयत्न किया है और अपने सामने ऊँचा उद्देश्य रखा है।

    सोचने की बात है अगर पैसे में और पैसे के वैभव में ही सब कुछ होता तो भगवान् बुद्ध क्यों घर-बार छोड़ते और क्यों भगवान् महावीर राजपाट पर लात मारते! यह तो ढाई हजार बरस पहले की बात हुई। आज के जमाने में ही हमने गांधीजी को देखां उन्होंने सारे आडम्बर छोड़ दिये। सादगी का जीवन बनाया और बिताया। वह समझ गये थे कि जो आन्नद सादगी की जिन्दगी में है, वह पैसे की जिन्दगी में नहीं है। यदि वह चाहते तो अच्छी-खासी कमाई कर सकते थे, लेकिन उस हालत में वह गांधी न होते। उन्होंने पैसे का मोह त्यागा और बड़े-बड़े काम किये। दुनिया में उनका नाम अमर हो गया। आपको याद होगा, प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने लिखा था—"आगे आने वाली पीढ़ियॉँ मुश्किल से विश्वास कर पायेंगी कि इस धरती पर हाड़-मांस का बना गांधी-जैसा व्यक्ति कभी चलता-फिरता था।"

    असल में उन्होंने सोना नहीं जुटाया। उन्होनें वह पारसमणि प्राप्त की, जिसको छूकर सब कुछ सोना बन जाता है। जिसके पास ऐसी मणि हो, उसके पास किस चीज़ की कमी हो सकती है!

    लेकिन यह पारसमणि यों ही नहीं मिल जाती। इसके लिए बड़ी साधना की जरूरत होती है। सोना तपने पर कंचन बनता है, ठीक यही बात आदमी के साथ भी है।

    हमारे धर्म-ग्रन्थों में कहा गया है कि इस दुनिया में सबसे दुलर्भ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी ईजादें हुई हैं, सब बुद्धि के बल पर हुई है। आप सबेरे दिल्ली में नाश्ता करके चलते है और दोपहर का खाना मास्कों में खा लेते है। हजारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही सम्भव हुआ है।


    24 फ़र॰ 2016

    आदमी को कितनी ज़मीन चाहिए?

    By: Successlocator On: फ़रवरी 24, 2016
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  • सफलता की कुंजी
    आदमी को कितनी ज़मीन चाहिए?

    रूस में एक बहुत बड़े लेखक हुए हैं, इतने बड़े कि सारी दुनिया उन्हें जानती है। उनका नाम था लियो टॉल्स्टॉय, पर हमारे देश में उन्हें महर्षि टॉल्स्टॉय कहते है। उन्होंने बहुत-सी किताबें लिखी है। इन किताबों में बड़ी अच्छी-अच्छी बातें है। उनकी कहानियों का तो कहना ही क्या! एक-से एक बढ़िया है। उन्हें पढ़ते-पढ़ते जी नहीं भरता।

    इन्हीं टॉल्स्टॉय की एक कहानी है-'आदमी को कितनी जमीन चाहिए.?' इस कहानी में उन्होंने यह नहीं बताया कि हर आदमी को अपनी गुज़र-बसर कें लिए किनती ज़मीन की जरूरत है। उन्होनें तो दूसरी ही बात कहीं है। वह कहते हैं कि आदमी ज्यादा-से-ज्यादा जमीन पाने के लिए कोशिश करता है, उसके लिए हैरान होता है, भाग-दौड़ करता है, पर आखिर में कितनी जमीन उसके काम आती है? कुल छ:फुट, जिसमें वह हमेशा के लिए सो जाता है।

    यों कहने को यह कहानी है, पर इसमें दो बातें बड़े पते की कही गयी है। पहली यह कि आदमी की इच्छाऍं, कभी पूरी नही होतीं। जैसे-जैसे आदमी उनका गुलाम बनता जाता है, वे और बढ़ती जाती हैं। दूसरे, आदमी आपाधापी करता है, भटकता है, पर अन्त में उसके साथ कुछ भी नहीं जाता।

    आपको शायद मालूम न हो, यह कहानी गांधीजी को इतनी पसन्द आयी थी कि उन्होनें इसका गुजराती में अनुवाद किया। हजारों कापियॉँ छपीं और लोगों के हाथों में पहुँचीं। धरती के लालच में भागते-भागते जब आदमी मरता है तो कहानी पढ़ने वालों की ऑंखे गीली हो आती है। उनका दिल कह उठता है-'ऐसा धन किस काम का!'

    अपनी इस काहानी में टॉल्सटॉय ने जो बात कही है, ठीक वहीं बात हमारे साधु-सन्त, और त्यागी-महात्मा सदा से कहते आये है। उन्होने कहा है कि यह दुनिया एक माया-जाल है। जो इसमें फँसा कि फिर निकल नहीं पाता। लक्ष्मी यानी धन-दौलत को उन्होंने चंचला माना है। वे कहते हैं, "पैसा किसी के पास नहीं टिकता। जो आज राजा है, वही कल को भिखारी बन जाता है।"

    आदमी इस दुनिया में खाली हाथ आता है, खाली हाथ जाता है। किसी ने कहा है न:

    आया था यहॉँ सिकन्दर, दुनिया से ले गया क्या?
    थे दोनों हाथ खाली, बाहर कफ़न से निकले।

    संत कबीर ने यही बात दूसरे ढ़ंग से कही है:

    कबीर सो धन संचिये, जो आगे कूँ होइ।
    सीस चढ़ाये पोटली, जात न देखा कोई॥

    उर्दू के मशहूर कवि नज़ीर अकबराबादी ने जो कहा है, वह तो बच्चे-बच्चे की जवान पर है:

    सब ठाठ पड़ा रह जायेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।

    एक मुसलमान सन्त ने तो यहॉँ तक कहा है, "ए इंसान, दौलत की ख्वाहिश न कर। सोने में गम का सामान है, उसकी मौजूदगी में मुहुब्बत खुदगर्ज और ठंडी हो जाती है। घमंड ओर दिखावे का बुखार चढ़ जाता है।"

    आप कहंगे, "वाह जी वाह, आपने तो इतनी बातें कह डालीं। पर मैं पूछता हूँ कि बिना धन के किसका काम चलता है? साधु-सन्तों की बात छोड़ दीजिए, लेकिन जिसके घर-बार है, उसे खाने को अन्न चाहिए, पहनने को कपड़े और रहने को मकान चाहिए। और, आप क्या जानते नहीं, जिसके पास पैसा है, उसी को लोग इज्जत करते हैं, गरीब को कोई नहीं पूछता।"

    "आपकी बात में सचाई है, पर एक बात बताइए—"आप रोटी खाते हैं?"

    "जी हॉँ। सभी खाते हैं।"

    "किसलिए?"

    "पेट भरने के लिए।"

    "जानवर खाते हैं?"

    "जी हॉँ।"

    "किसलिए?"

    "पेट भरने के लिए?"

    "ठीक। अब मुझे यह बताइए कि जब आदमी और जानवर दोनों पेट भरने के लिए खाते हैं तो फिर दोनों में क्या अन्तर क्या रहा?"

    "यह भी आपने खूब कही! साहब, आदमी आदमी है, जानवर जानवर।"

    "यह तो मैं भी मानता हूँ, पर मेरा सवाल तो यह है कि उन दोनों में अन्तर क्या है?"

    "अन्तर! अन्तर यह है कि जानवर खाने के लिए जीता है, आदमी जीने के लिए खाता है।"

    "वाह, आपने तो मेरे मन की ही बात कह दी। यही तो मैं कहना चाहता था। जब आदमी जीने के लिए खाता है, तब उसके जीवन को कोई उद्देश्य धन कमाना नहीं हो सकता। धन कमाने का मतलब होता है पेट के लिए जीना; और जो पेट के लिए जीता है, उसका पेट कभी नहीं भरता। आदमी तिजोरी में भरी जगह को नहीं देखता। उसकी निगाह खाली जगह पर रहती है। इसी को 'निन्यानवे का फेर' कहते हैं। स्वामी रामतीर्थ ने एक बड़ी सुन्दर कहानी लिखी है। एक धनी आदमी था। वह ओर उसकी स्त्री, दोनों हर घड़ी पेरशान रहते थे और अक्सर आपस में लड़ते रहते थे। उनका पड़ोसी गरीब था, दिन-भर मजूरी करता था। औरत घर का काम करती थी। रात को दोनों चैन की नींद सोते थे। एक दिन धनी स्त्री ने कहा, "इन पड़ोसियों को देखो, कैसे चैन से रहते हैं!" आदमी ने कहा, "ठीक कहती हो।"

    अगले दिन उसने किया क्या कि पोटली में निन्यानवे रुपये बॉँधे और उसे गरीब पड़ोसी के घर में डाल दिया। पड़ोसी ने रूपये देखे। उसकी आँखे चमक उठीं। उसी घड़ी लोभ ने उसे धर दबोचा। वह निन्यानवे के सौ और सो के एक सौ एक करने में लग गया। फिर क्या था! उसकी नींद हराम हो गयी। सुख भाग गया। मेहनत की खरी कमाई का आनन्द सपना हो गया।


    23 फ़र॰ 2016

    सफलता की हिंदी कहानियाँ, Real Businessman Story in Hindi

    By: Successlocator On: फ़रवरी 23, 2016
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  • सफलता की हिंदी कहानियाँ, Real Businessman Story in Hindi

    स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं –
    1 . ये वो हैं जो समय के साथ खुद को नहीं बदलते और पिछड़ जाते हैं ,
    2. ये वो लोग हैं वो समय के साथ खुद को बदल लेते हैं और आगे बड़ जाते हैं
    3. ये वो लोग हैं जो समय के अनुसार नहीं बदलते बल्कि समय को ही अपने अनुसार बदल देते हैं और इन्हीं को युगपुरुष कहा जाता हैं जो सदियों में एक बार जन्म लेते हैं ।

    Andrew Carnegie ये नाम है उस शख्स का जिसे स्टील टाइकून(स्टील किंग) कहा जाता है । जो अपने धैर्य और परिश्रम की वजह से दुनियां के सबसे अमीर आदमी बने । इनका जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था जिनके पास दो वक्त का खाना जुटाने के लिए भी पैसे नहीं थे और केवल एक कमरे का घर था । ये स्कॉटलैंड के रहने वाले थे लेकिन गरीबी और भुखमरी की वजह से ये लोग काम की तलाश में अमेरिका आ गए । घर की दरिद्रता की वजह से ऐन्ड्रू की पढ़ाई भी नहीं हो पायी और 13 साल की छोटी सी उम्र में घर घर का भार सँभालने की जिम्मेदारी कन्धों पे आ गयी ।

    13 साल के ऐन्ड्रू ने एक कपड़े बनाने की फैक्ट्री में छोटी सी नौकरी कर ली जहाँ उसे 12 घंटे और सातों दिन कठिन परिश्रम करना पढता , लेकिन जिस इंसान में लगन होती है वही कोयले से हीरा बनाने का माद्दा रखते हैं । ऐन्ड्रू काम से समय निकाल कर सफल लोगों की कहानियां पढता था उनसे प्रेरणा लेता था । धीरे -धीरे समय बीतता गया , ऐन्ड्रू ने कुछ दिन बाद एक पोस्टमैन की नौकरी भी की । शहर में बड़ी लाइब्रेरी थी जहाँ किताबों का विशाल संकलन था । ऐन्ड्रू वक्त निकाल कर लाइब्रेरी में पढता रहता था । यहाँ उसने कुछ इंटस्ट्री और बिज़निस के बारे में सीखा , नौकरी करते हुए कुछ पैसे इकट्ठे किये और धीरे धीरे स्टील बनाने वाली कम्पनीयों में इन्वेस्ट करने लगे जिससे उन्हें अच्छी इनकम हो जाती थी इसी तरह समय का चक्र चलता गया और फिर ऐन्ड्रू ने एक दिन अपनी खुद की कंपनी बनाने की सोची ।

    यही सोचकर Carnegie Steel Corporation नाम की एक कंपनी की स्थापना की शुरुआत में कंपनी औसत रही लेकिन ये ऐन्ड्रू कार्नेगी की मेहनत और लगन का ही नतीजा था की कुछ ही सालो में ऐन्ड्रू स्टील किंग बन गए और बहुत जल्द उन्हें Builders of America का अवार्ड मिला । एक समय था जब ऐन्ड्रू कार्नेगी की अकेली कंपनी पूरे ब्रिटेन से ज्यादा स्टील उत्पादन करती थी । और इसी लगन ने एक दिन ऐन्ड्रू को बना दिया “दुनिया का सबसे अमीर इंसान “, 1889 में ऐन्ड्रू कार्नेगी को दुनिया का सबसे अमीर इंसान घोषित किया गया ।

    अपनी लगन और परिश्रम से ऐन्ड्रू ने इतिहास को बदल कर रख दिया जिस व्यक्ति का परिवार एक समय भुखमरी से जूझा हो उसके लिए दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनना एक मिशाल पेश करने से काम नहीं हैं ।

    तो मित्रों दृंढ निश्चय और मेहनत से पहाड़ो का भी सीना चीरा जा सकता है बस जरुरत है अपने आत्मविश्वाश को जगाने की

    22 फ़र॰ 2016

    4 प्रेरणादायी कहानियां जो आपकी जि़न्दगी बदल सकती हैं ।

    By: Successlocator On: फ़रवरी 22, 2016
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  • 4 प्रेरणादायी कहानियां जो आपकी जि़न्दगी बदल सकती हैं



    दोस्तो, कई बार ऐसा होता है कि अपने सपने को पूरा करने के प्रयास में कई बार हम थोड़ा बहुत demotivated हो जाते हैं। ये लाजि़मी हैं क्योंकि सफलता मिलने से पहले काफी चुनौतियां हमारे सामने आती हैं। ऐसे में सफल लोगों की प्रेरणादायी कहानियां पढ़कर हम लोग अपने आपको फिर charge कर सकते हैं। चलिए आज मैं आपको कुछ एक महान् लोगों short inspirational stories की बताता हूं। 
    1. सॉईचिरो होंडा
    सॉईचिरो होंडा Honda company के संस्थापक हैं। आज Honda कम्पनी दुनिया की अग्रणी वाहन कम्पनियों में से एक है। वैसे सॉईचिरो होंडा ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि वे अपनी कम्पनी शुरू करेंगे, वे तो Toyota कम्पनी में जॉब करना चाहते थे। जब वे Toyota में interview देने के लिए गए तो उनको यह कहकर reject कर ​िदया गया कि वे job के लिए उपयुक्त नहीं हैं। सॉईचिरो इस बात से काफी दुखी हुए और उन्होने decide किया के वे एक ऐसी कम्पनी बनाएंगे जो Toyota से मुकाबला करेगी। और आज हम जानते हैं कि Honda, Toyota से बड़ी कम्पनी है। दोस्तों जि़न्दगी में सबको कभी न कभी rejection का सामना करना पड़ता है परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि आप का​िबल नहीं हैं।
    2. स्टीफन किंग
    स्टीफन किंग को हम लोग एक बेहतरीन novelist के तौर पर जानते हैं, परन्तु शुरू में कोई भी publisher उनका novel छापने के लिए तैयार नहीं था। बहुत से publishers को ​िदखाने के बाद भी जब उनका novel नहीं छपा तो वे इतने निराश हो गए कि उन्होने अपना novel कूड़ेदान में फेंक ​िदया। उनकी पत्नी ने novel को कूड़ेदान उठाया और उनसे novel को दूसरे publishers को ​िदखाने के लिए प्रेरित किया। आखिरकार उनका novel publish हो गया और आज Stephen King हमारे सामने एक महान् novelist के रूप में हैं।
    3. थॉमस एडिसन
    थॉमस एडिसन मानव इतिहास के महान्तम आविष्कारकों में से एक हैं। परन्तु बल्ब का आविष्कार करने में वे 999 बार असफल हुए और 1000वीं बार प्रयास करने पर वे बल्ब बनाने में कामयाब हुए। दोस्तों हम लोग तो एक - दो failures से ही काफी परेशान हो जाते हैं, और थॉमस एडिसन 999 असफल होने पर भी निराश नहीं हुए। इसलिए आप जब भी असफल हों तो निराश मत होइए, बल्कि एक बार फिर से कोशिश कीजिए। क्योंकि बहुत सी असफलताओं के बाद जो सफलता मिलती है उसका आनन्द बेहतरीन होता है।
    4. ​िबल गेट्स
    ​िबल गेट्स Microsoft के सह संस्थापक हैं, वे दुनिया के सबसे बेहतरीन business leaders में से एक माने जाते हैं। परन्तु जब उन्होने पहली बार graphical interface और mouse वाले computer का idea एक कम्पनी को ​िदखाया तो उनको बेइज़्जत करके वहां से बाहर निकाला गया। और आज जिस मुकाम पर ​िबल गेट्स हैं वहां पर पहुंचना करोड़ों लोगों का सपना है। 
    इन कहानियों से क्या सबक लें?
    1. होने पर हार मत मानिए। 
    2. असफलता कोई बड़ी बात नहीं है। 
    3. अपने आप पर भरोसा करना सफलता की चाबी है। 

    21 फ़र॰ 2016

    सफलता की हर कहानी महान असफलताओ कि भी कहानी है

    By: Successlocator On: फ़रवरी 21, 2016
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  • सफलता की हर कहानी महान असफलताओ कि भी कहानी है




    असफलता , सफलता हासिल करने का रास्ता है | आई. बी. एम के टॉम वाटसन , सीनियर का कहना ,” अगर आप सफल होना चाहते है , तो अपनी असफलता की दर दूनी कर दीजिए । “
    अगर हम इतिहास पढ़े ,तो हम पायगे की सफलता की हर कहानी के साथ महान असफलताए भी जुडी हुई है । लकिन लोग उन असफलताओ पर धयान नहीं देते । वे केवल नतीजों को देखते है और सोचते है की उस आदमी ने क्या किस्मत पाई है , ” वह सही वक्त पर सही जगह रहा होगा । “
    एक आदमी की ज़िंदगी की कहानी बड़ी मशहूर है ।
    यह आदमी 21 साल की उम्र में व्यापार में नाकामयाब हो गया , 22 साल की उम्र में वह एक चुनाव हार गया , 24 साल की उम्र में उसे व्यापार में फिर असफलता मिली , 26 साल की उम्र में उसकी पत्नी मर गयी , 27 साल की उम्र में उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया , 34 साल की उम्र में वह कांग्रेस का चुनाव हार गया ,45 साल की उम्र में उसे सीनेट के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा , ४७ साल की उम्र में वह राष्ट्रपति बनने में असफल रहा , 49 साल की उम्र में उसे सीनेट के एक और चुनाव में नाकामयाबी मिली , और वाही आदमी 52 साल की उम्र में अमेरिका का राष्ट्रपति चुना गया । वह आदमी अब्राहम लिंकन था |
    क्या आप लिंकन को असफल मानेगे ? वह शर्म से सिर झुका कर मैदान से हैट सकते थे , और अपनी वकालत फिर शुरू कर सकते थे । लेकिन लिंकन के लिए हार केवल एक भटकाव थी , सफर का अंत नहीं |
    थॉमस एडिसन बिजली का बल्ब बनाने से पहले लगभग 10 हजार बार असफल हुए ।
    हेनरी फोर्ड 40 साल की उम्र में दिवालिया हो गए थे ।
    बीथोवेन जब युवा थे , तो उनसे कहा गया था कि उनमे संगीत की प्रतिभा नहीं है ,लकिन उन्होंने संसार को संगीत की कुछ उत्तम रचनाऐं दी |
    सफलता की सारी कहानियो के साथ महान असफलताओ की कहानिया भी जुडी हुई है । फर्क केवल इतना था कि हर असफलता के बाद वे जोश के साथ फिर उठ खड़े हुए । इसे पीछे धकेलने वाली नहीं , बल्कि आगे बढ़ाने वाली नाकामयाबी कहते है । हम सीखते हुई आगे बढ़ते है । हम अपनी असफलताओ से सबक लेते हुई आगे बढ़ते है |
    हमें रास्ते में ठोकर जरूर लगेगी । लेकिन वह हमारे लिए प्रेरणा भी बन सकती है , और हमें विनम्रता का पाठ पढ़ा सकती है । इससे हम मुसीबत की घड़ी में अपने अंदर बाधाओ को दूर करने की सकती और विशवास का अनुभव करेगे ।
    हर ठोकर लगने के बाद खुद से पूछे कि हमने इस तजरबे से क्या सीखा ? तभी हम रास्ते के रोड़े को कामयाबी की सीढ़ी बना पायेगें |

    20 फ़र॰ 2016

    सफल लोगों की सोने से पहले की कहानी,

    By: Successlocator On: फ़रवरी 20, 2016
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  • दुनिया में जितने भी सफल लोग होते हैं उनके बारे में बहुत सी बातें कही जाती हैं या सफलता के तमाम तरह के मूलमंत्र गिनाए जाते हैं. अब तक आप सुनते आएं होंगे कि कामयाब होने के लिए जरूरी है सुबह जल्दी उठना. लेकिन सफल होने के लिए रात की क्या योजना होनी चाहिए आएये इस पर बात की जाए.

     * हम आपको बताते हैं दुनिया के कई कामयाब लोग सोने से पहले क्या-क्या करते हैं.

    1.कम से कम एक घंटे तक पढ़ना

    सोने से पहले एक घंटा पढ़ना आपके लिए बेहद जरूरी और फायदेमंद है. क्या आप जानते हैं कि माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के बिल गेट्स भी सोने से पहले एक घंटा किताब पढ़ते हैं. वे वर्तमान घटनाओं और राजनीति पर पढ़ना ज्यादा पसंद करते हैं. इस तरह से आप दिन भर के तनाव से मुक्त हो जाते हैं.

    एक शोध के मुताबिक किताब पढ़ना एक एक अच्छी दिमागी कसरत हो सकती है और ऐसा करने परा दिमाग का तीव्र विकास होता है.

    2. टहलना

    क्या आपको लगता है कि आप बहुत व्यस्त हैं और आप सुबह अपने लिए टहलने का संय भी नहीं मिल पाता. तो इसमें चिंता करने की जरूरत नहीं है. आप रात के समय भी टहल सकती हैं. जरूरी नहीं है कि बहुत ज्यादा टहला जाए. घर में आसपास ही हल्के कदमों से भी टहला जा सकता है.

    बफर की सीईओ जो कि बहुत ही व्यस्त रहती हैं लेकिन वो रात के समय टहलने का समय निकालती ही हैं. इस तरह से तनाव तो कम हो ही जाता है दिमाग की रचनात्मक भी बनी रहती है. इस समय कम से कम काम के बारे में नहीं सोचना चाहिए.

    3. मोबाइल वगैरह से दूर रहना

    दन भर काम करने के बाद आप थक जाते हैं. ऐसे समय में आप मोबाइल या फेसबुक वगैरह से दूर रहना भी चाहते होंगे लेकिन ऐसा करन नहीं पाते हैं. तो आज से आप तय कर लीजिए सोने के लिए जाते समय आप मोबाइल से दूर रहेंगे. ऐसा करने से आप खुद को समय दे पाएंगे. हावार्ड विश्वविद्यालय के डा चार्लस के मुताबिक सेलफोन की तेज रोशनी दिमाग पकर असर कर नींद की प्राकृतिक प्रक्रिया को बाधित करती है और इसकी किरणें त्वचा के माध्यम से शरीर को प्रभावित भी करती हैं. एरिना हफिंगटन का कहना है कि कि जब वो जब वो रात करो थक जाती हैं तो तो वो सबसे अगल थॉलग हो जाती हैं और इससे वो तनाव मुक्त होती हैं.

    4. मेडिटेशन

    सोने से पहले मेडिटेशन करना कितना जरूरी है इससे समझा जा सकता है कि मिस विनफ्रे भी नींद में जाने से पहले मेडिटेशन को समय देती हैं. 2014 में मेडिटेशन से जुड़ा एक सर्वे हुआ है जिसके मुताबिक इससे चिंता अवसाद जैसी दिक्कतें कम हो जाती हैं. दरअसल मेडिटेशनया या ध्यान वास्तव में दिमाग को स्वस्थ रखने का एक अच्छा तरीका है.

    5. रचनातमकता लाएं

    रात में सोने से पहले का समय ऐसा होता है इस समय आप अपनी रचनात्मकता का सबसे अच्छा उपयोग कर सकते हैं. वैरा वैंग के अनुसार वो इस समय को रचनात्मकता को उपयोग करने में लगाती हैं. एलबियन कॉलेज द्वारा किए शोध में कहा गया है कि रात के सोने से पहले का समय रचनात्मक को निखारने के लिए सबसे अच्छा होता है.

    6. अगले दिन की योजना बनाना

    क्या आप कभी ऐसा करते हैं कि बिस्तर में जाकर एक अच्छी नींद लेने से पहले अगले दिन की योजना भी बना लेते हों. अमेरिकन एक्सप्रेस के सीईओ का कहते हैं कि वे सोने से पहले आने वाले दिन की योजना बना लेना पसंद करते हैं और अगले दिन सुबह अपना काम सही समय पर शुरू कर देते हैं.

    19 फ़र॰ 2016

    महापुरुषों की विफलता से सफलता की कहानी | mahapurusho ki vifalta se safalta ki kahani

    By: Successlocator On: फ़रवरी 19, 2016
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  • महापुरुषों की विफलता से सफलता की कहानी | mahapurusho ki vifalta se safalta ki kahani


    जीवन में या किसी भी व्यवसाय (business) में सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार सकारात्मक (positive) रहना बहुत आवश्यक है. अपने आप को उस क्षेत्र में ले जाए जहा बहोत ज्यादा कचरा (मुश्किलें) हो, और जहा आपकी इच्छा अनुसार कुछ नहीं हो रहा हो. इसलिए, जब-जब भी मै निराश (sad) होता हु तो मुझे इन महापुरुषों की असफलता याद आती है..
    तो आइये देखते है इन 9 महान लोंगो की विफलता से सफलता की कहानी शोर्ट में|
    1. बिल गेट्स / Bill Gates
    माइक्रोसॉफ्ट (microsoft) के संस्थापक और अध्यक्ष, ने पूरी तरह से 21 वी सदी में कंप्यूटर (computer) को काम में लाकर काम करने की पूरी संस्कृति ही बदल डाली. वे एक दशक से भी ज्यादा दुनिया के सबसे अमिर व्यक्ति (richest person) रह चुके है. 1970 के पहले अपना Business शुरू करने से पूर्व उन्हें हॉवर्ड विश्वविद्यालय (howard university) से निकाला गया था. और सबसे ज्यादा मजेदार बात ये है की, उन्होंने अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी (जो बाद में माइक्रोसॉफ्ट बनी) सॉफ्टवेयर तंत्रज्ञान को 50 US $(डॉलर) में ख़रीदा था.
    2. अब्राहम लिंकन  / Abraham Lincoln
    ने अपने पुरे जीवनकाल (lifetime) में 5 साल से ज्यादा पढाई नही की. और जब वे बड़े हुए, तो वे राजनीती (politics) में शामिल हुए और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के 16 वे राष्ट्रपति बनने से पूर्व 12 बार असफल (fail) हुए.
    3. इस्साक न्यूटन / Isaac Newton
    उनके काल के बहुत बड़े अंग्रेजी गणित (english mathematician) के जानकार थे. उनके प्रकाश विज्ञान (science) और गुरुत्वाकर्षण (gravity) के आविष्कार (invention) ने उन्हें दुनियाभर में पहचान दिलाई और महान वैज्ञानिक भी बनाया. ऐसे कई विचार है की इस्साक बचपन से ही होशियार थे, लेकिन ऐसा नहीं है. वे अपनी स्कूल की श्रेणी में बहुत ही अस्वस्थ थे और उनके शिक्षक उन्हें बेवकूफ (stupid) समझते थे.
    4. थॉमस एडिसन / Thomas Edison
    थॉमस एडिसन ने बहुत सारे यंत्रो को विकसित (develop) किया जिनका 20 वी सदी के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा. एडिसन को इतिहास (history) का बहुफलदायक अविष्कारक कहा जाता है, जिनके नाम आविष्कार करने के 1093 U.S अधिकार थे. जब वे बच्चे (kid) थे तब उनके शिक्षक ने उनसे कहा था की वे कुछ भी सिखने के लोए बहुत ही बुद्धू है. और जब वे बड़े हुए, तब एक सफल लाइट बल्ब (light bulb) बनाने से पूर्व उन्होंने 9000 से भी ज्यादा प्रयोग किये.
    5. वाल्टर डिज्नी / Walt Disney
    एक अमेरिकन सिनेमा (american theater) के निर्माता, निर्देशक, सिनेमा लेखक, आवाज़ कर्ता और कार्टून फिल्म (cartoon movies) बनाने वाले दिग्दर्शक थे. उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी इशारा देने वाले चित्र बनाने की सबसे बड़ी कंपनी डिज्नी की स्थापना की. उसकी संस्था (association) आज वाल्ट डिज्नी कंपनी के नाम से जानी जाती है, जो साल में 30 बिलियन $ का राजस्व बनती है. डिज्नी ने अपना पहला Business खुद के ही घर में शुरू किया और उनका निर्माण (production) किया पहला कार्टून असफल भी हुआ. उनके पहले पत्रकार सम्मलेन में, एक अखबार के संपादक (writer) ने उनका उपहास भी किया क्यों की उनके पास एक अच्छी सिनेमा बनाने की कल्पना नहीं थी.
    6. विंस्टन चर्चिल / Winston Churchill
    विंस्टन चर्चिल 6 वी कक्षा Fail थे. लेकिन उन्होंने कठिन परिश्रम (hard work) करना कभी नहीं छोड़ा. वो प्रयत्न करते रहे और दुसरे विश्व युद्ध (2nd world war) के दौरान यूनाइटेड किंगडम (united kingdom) के प्रधानमंत्री बने. चर्चिल साधारणतः ब्रिटेन और दुनिया के इतिहास (history) में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण नेता थे. BBC के 2002 के चुनाव में जिसमे 100 महानतम ब्रिटिश लोगो का चुनाव होना था उसमे सभी ने चर्चिल को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया गया.
    7. अल्बर्ट आइंस्टीन / Albert Einstein
    एक सैधान्तिक भौतिकशास्त्री थे जिन्हें 20 वी सदी में सबसे ज्यादा महत्त्व दिया जाता था. 1921 में उन्हें Photo electronic प्रभाव के स्पष्टीकरण के लिए और सैधान्तिक भौतिक विज्ञानं में उनकी सेवा के लिए नोबेल पुरस्कार (nobel prize) से सम्मानित किया गया. जबकि, जब आइंस्टीन जवान थे, उसके माता-पिता समझते थे की वे दिमाग (brain) से कमजोर है. उसके स्कूल के ग्रेड भी बहुत कम थे इसलिए उनके शिक्षक (teacher) उन्हें स्कूल छोड़ देने के लिए कहते थे और कहते थे की, “ तुम कभी किसी भी कीमत पर कुछ नहीं कर सकते”.
    8. हेनरी फोर्ड / Henry Ford
    हेनरी फोर्ड की पहली दो मोटर गाडी (motor cars) की कंपनी असफल हुई. लेकिन उन्होंने कंपनी स्थापित करना नहीं छोड़ा और उनकी फोर्ड मोटर कंपनी (ford company) पहली सबसे प्रच

    Chanakya Niti in Hindi Ninth Chapter (चाणक्य नीति - नववा अध्याय)

    By: Successlocator On: फ़रवरी 19, 2016
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  • 1: यदि मुक्ति चाहते हो तो समस्त विषय-वासनाओं को विष के समान छोड़ दो और क्षमाशीलता, नम्रता, दया, पवित्रता और सत्यता को अमृत की भांति पियो अर्थात अपनाओ।

    2: जो नीच व्यक्ति परस्पर की गई गुप्त बातों को दुसरो से कह देते है, वे ही दीमक के घर में रहने वाले सांप की भांति नष्ट हो जाते है।

    3: ब्रह्मा को शायद कोई बताने वाला नहीं मिला जो की उन्होंने सोने में सुगंध, ईख में फल, चंदन में फूल, विद्वान को धनी और राजा को चिरंजीवी नहीं बनाया।

    4: सभी औषधियों में अमृत प्रधान है, सभी सुखो में भोजन प्रधान है, सभी इन्द्रियों में नेत्र प्रधान है सारे शरीर में सिर श्रेष्ठ है।

    5: न तो आकाश में कोई दूत गया, न इस संबंध में किसी से बात हुई, न पहले किसी ने इसे बनाया और न कोई प्रकरण ही आया, तब भी आकाश में भृमण करने वाले चंद्र और सूर्य के ग्रहण के बारे में  जो ब्राह्मण पहले से ही जान लेता है, वह विद्वान क्यों नहीं हैं? अर्थात वास्तव में वह विद्वान है, जिसकी गणना से ग्रहों की चल का सही-सही-पता लगाया जाता रहा है।

    6: विध्यार्थी, नौकर, पथिक, भूख से व्याकुल, भय से त्रस्त, भंडारी और द्वारपाल, इन सातों को सोता हुआ देखे तो तत्काल जगा देना चाहिए क्योंकि अपने कर्मो और कर्तव्यों का पालन ये जागकर अर्थात सचेत होकर ही करते है।

    7: सांप, राजा, सिंह, बर्र (ततैया) और बालक, दूसरे का कुत्ता तथा मूर्ख व्यक्ति, इन सातो को सोते से नहीं जगाना चाहिए।

    8: धन के लिए वेद पढ़ाने वाले तथा शुद्रो के अन्न को खाने वाले ब्राह्मण विषहीन सर्प की भांति क्या कर सकते है, अर्थात वे किसी को न तो शाप दे सकते है, न वरदान।

    9: जिसके नाराज होने का डर नहीं है और प्रसन्न होने से कोई लाभ नहीं है, जिसमे दंड देने या दया करने की सामर्थ्य नहीं है, वह नाराज होकर क्या कर सकता है ?

    10: विषहीन सर्प को भी अपना फन फैलाकर फुफकार करनी चाहिए। विष के न होने पर फुफकार से उसे डराना अवश्य चाहिए।

    11: प्रातःकाल जुआरियो की कथा से (महाभारत की कथा से), मध्याह्न (दोपहर) का समय स्त्री प्रसंग से (रामायण की कथा से) और रात्रि में चोर की कथा से (श्री मद् भागवत की कथा से) बुद्धिमान लोग अपना समय काटते है।

    12: अपने हाथों से गुंथी हुई माला, अपने हाथो से घिसा हुआ चंदन और अपने हाथ से लिखा स्त्रोत, इन सबको अपने ही कार्य में लगाने से, देवताओं के राजा इंद्र की श्रीलक्ष्मी (धन-सम्पत्ति-ऐश्वर्य) भी नष्ट हो जाती है।

    13: ईख, तिल, क्षुद्र, स्त्री, स्वर्ण, धरती, चंदन, दही,और पान, इनको जितना मसला या मथा जाता है, उतनी गुण-वृद्धि होती है।

    14: दरिद्रता के समय धैर्य रखना उत्तम है, मैले कपड़ों को साफ रखना उत्तम है, घटिया अन्न का बना गर्म भोजन अच्छा लगता है और कुरूप व्यक्ति के लिए अच्छे स्वभाव का होना श्रेष्ठ है।
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