22 अग॰ 2017

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जैसा जैसा सोचेगे वैसे वैसे बनते जायेंगे

By: Successlocator On: अगस्त 22, 2017
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  • एक व्यक्ति जंगल मे लकड़ी काटने गया वहां पर उसने एक हथिनी को देख जो कि शिकारियों की गोली लगने की वजह से मार चुकी थी।और उसके कुछ ही दूरी पर उसका एक बच्चा उसके आसपास बेचैन हो कर घूम रहा था उस बच्चे को देखकर लकड़हारे को दया आ गयी और वो उस हाथी के बच्चे को घर ले आया ,ओर उसके पैर में एक पतली सांकड़ बांध दी।उस बच्चे ने उसे भरकस तोड़ने का प्रयास किया पर उस उम्र में वह उस सांकड़ को तोड़ पाने में सक्षम नही था,पर फिर भी वह रोज प्रयास करता था रोज दर रोज उसके प्रयास काम होते गए और उसने सोच लिया कि अब वह इसे नही तोड़ सकता अब उसने प्रयास करना भी छोड़ दिया अब वह धीरे धीरे बड़ा हुआ उस समय भी लकड़हारा उसे उसी सांकड़ से बांधता था और वह हाथी उस पतली सांकड़ के सहारे बंधा रहता था।एक दिन एक सज्जन पुरुष जो कि हाथियों की ताकत से वाकिफ थे उन्होंने उस लकड़हारे से पूछा भाई तू इस सांकड़ के सहारे इस हाथी को कैसे रोक लेते है।तब उसने एक दम सरल शब्दों में जवाब दिया कि जब यह बच्चा था तब से मैं इसे इसी सांकड़ से बांधता था उस समय इसने भरकस प्रयास किया पर उस समय वह इसे तोड़ने में सक्षम नही था,धीरे धीरे वह मंटा चला गया कि इसे तोड़ पाना उसके बस में नही है और अब तो वह प्रयास भी नही करता।
    ठीक उसी हाथी की तरह आज हमारी मानसिकता हो गयी है यदि हम किसी काम मे किसी वजह से असफल होते है तो हैम ये मान बैठते है कि अब ये काम हमारे बस से बाहर है और हम प्रयास जॉन भी बंद कर देते है और सेफ जॉन की तरफ आकर्षित होते है जी कि कोई छोटी मोटी नॉकरी जिससे हमारी जिंदगी आसानी से निकल जाए। इस तरह हमारी सोच दिन ब दिन ओर क्रुद्ध होती चली जाती है और सोचते है जो भाग्य में लिखा होगा तो मिलेगा ही औऱ इस तरह प्रयास करना धीरे धीरे बंद कर देते है।आपने एक कहावत तो सुनी ही होगा"मन के हारे हार है,मैन के जीते जीत"।
    कहने का आशय स्पष्ट है जब तक आप खुद हार नही मान तब तक हमे कोई नही हरा सकता और जब हम मन से हार मान लेते है  तब कोई कितना भी प्रयास कर ले हमे सफल नही बना सकता।इसलिए आप सारी बेड़ियो को तोड़ कर अपनी खोज में निकालिये।

                                         कविता
                                                               हरिवंश राय बच्चन
    तू खुद की खोज में निकल
    तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की
    समय को भी तलाश है
    समय को भी तलाश है
    जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ
    समझ न इन को वस्त्र तू .. (x२)
    ये बेड़ियां पिघाल के
    बना ले इनको शस्त्र तू
    बना ले इनको शस्त्र तू
    तू खुद की खोज में निकल
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    तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की
    समय को भी तलाश है
    समय को भी तलाश है
    चरित्र जब पवित्र है
    तोह क्यों है ये दशा तेरी .. (x२)
    ये पापियों को हक़ नहीं
    की ले परीक्षा तेरी
    की ले परीक्षा तेरी
    तू खुद की खोज में निकल
    तू किस लिए हताश है तू चल, तेरे वजूद की
    समय को भी तलाश है
    जला के भस्म कर उसे
    जो क्रूरता का जाल है .. (x२)
    तू आरती की लौ नहीं
    तू क्रोध की मशाल है
    तू क्रोध की मशाल है
    तू खुद की खोज में निकल
    तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की
    समय को भी तलाश है
    समय को भी तलाश है
    चूनर उड़ा के ध्वज बना
    गगन भी कपकाएगा .. (x२)
    अगर तेरी चूनर गिरी
    तोह एक भूकंप आएगा
    तोह एक भूकंप आएगा
    तू खुद की खोज में निकल
    तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की
    समय को भी तलाश है
    समय को भी तलाश है

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