26 मार्च 2016

सफलता पाने के 10 मंत्रों का अमल कीजिए

By: Successlocator On: मार्च 26, 2016
  • Share The Gag






  • क्या है आखिर सफलता! हम जो चाहते हैं उसे प सकें, यही सफलता है। इस सफलता को पाकर जो सुख की अनुभूति होती है, वह अवर्णनीय है। इस सफलता को पाने के कुछ मंत्र हैं, आप भी इन्हें अपनी लाइफ में शामिल करके सफलता की सीढियों पर चढ सकते हैं।

    लाइफ में हर काम सोच-समझकर अपनी शाक्ति और योग्यतानुसार ही चुनें और उसे पूर्ण करके ही दम लें, चाहे वह कितना ही मुश्किल क्यों ना हों।

    कुछ पाने के लिए कुछ खोना पडता है। वह भी किसी सीमा तक ही जैसे एक महिला जब लेखिका बनकर अपनी पहचान बनाना चाहती है तो उसे अपनी नींद व गप्पबाजी को त्यागना ही पडता है। नींद, आलस्य, गप्प-गोष्ठी जैसी आदतों को त्यागकर ही अपने लक्ष्य की ओर कदम उठाएं।


    बहानेबाजी या टालते रहने की प्रवृति इंसार को अकर्मण्य बनाती है। समस्या का समाधान करें, घबराकर पलायन ना करें। असफलता ही सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। आप निरंता प्रयासरत रहें।

    मंद स्मृति से पीडित बच्चों पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि यदि उनको कलात्मक हौबी की ओर प्रेरित किया जाए तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास तीव्र गति से होता है। नयी प्रेरणा ही उनकी लाइफ में मील का पत्थर साबित हो सकती है।


    हमेशा सकारात्मक विचारधारा अपनाएं, आशावादी बनें, क्योंकि निराशावादी विचारधारा ही इंसान को कुंठित कर असफलता की ओर धकेलती जाती है।

    आज के प्रगतिशील युग में विकलांग भी पीछे नहीं हैं। वे किसी भी कलात्मक हौबी को निखारकर अपने पैरों पर खडे हो सकते हैं। इस प्रकार वे परिवार में, समाज में आत्मसम्मान से जी सकते हैं। बस देर है सिर्फ अपनी योग्यता की पहचान कर उसमें सम्पूर्ण शक्ति से जुट जाने की। ऎसे लोगों से अपना सम्बन्ध बनायें, जो आपकी तहर महत्वाकांक्षी व परिश्रमी हों तथा सच्चो व दृढ इच्छाशक्ति वाले हों। निराश व्यक्ति का साथ निराशा ही देगा। निराशा सफलता की घोर दुश्मन है।

    किसी काम में असफल होने पर भाग्य को दोषी ना मानकर पूरी शक्ति व निष्ठा के साथ अपने लक्ष्य की प्राçप्त में जुट जाइये। अपनी आंख अर्जुन की भांति सिर्फ अपने लक्ष्य पर केन्द्रित रखिये।

    मूड नहीं बना है या अभी मूड नहीं है नामक बीमारी से बचें। अच्छा समय मूड के कारण रूकता नहीं है और इस प्रकार अच्छा अवसर मुटी से रेत की तरह फिसल जाता है। इसके बाद रह जाता है केवल पछतावा।

    सफलता पने केलिए समय का महत्व समझें। उसका एक-एक पल उपयोग में लाएं। एक से अधिक लक्ष्य होने पर प्राथमिकता के अनुसार उन्हें निश्चित करें और निष्ठा व लगनपूर्वक हर लक्ष्य की ओर बढें ताकि सफलता मिले।

    भविष्य में सफलता प्राप्त करने के मूलमंत्र

    By: Successlocator On: मार्च 26, 2016
  • Share The Gag

  • इसे भी पढ़ें:Short Moral Stories In Hindi | जैसा बोओंगे वैसा पाओंग
    1. सबके प्रति शिष्टाचार
    कई बार बिना सोचे-समझे अपरिचित लोगों से तो हम शिष्टता का व्यवहार करते हैं, पर जिन लोगों के साथ हम हर रोज़ काम करते हैं उनके प्रति हमारा बर्ताव कुछ और ही होता है। कई बार हम अपने लिए काम करने वाले लोगों की बातचीत में दखल देते हैं और उनकी बात को बीच में ही टोक देते हैं या उस पर ध्यान नहीं देते हैं प्राय: कभी-कभी तो हम उनके नाम तक भूल जाते हैं। बहुत बार हम अपने लिए काम करने वाले लोगों को उतना ही महत्त्व देते हैं जितना कमरे में पड़ी बेज़ान वस्तुओं को। लोग अपने बॉस से भी शिष्ट व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं, और उसकी कमी को बहुत जल्दी महसूस भी करते हैं।
    इसे भी पढ़ें:Winners Do Things Differently | कुछ हटके सोचो
    2. आलोचना करे, पर सोच-समझकरआपको लोगों की आलोचना करने का सही तरीका आना चाहिए। क्या आपको लगता है कि अशोक भविष्य में बेहतर कर्मचारी बन सकेगा ? बिलकुल नहीं। बल्कि ठीक इसका उलटा होगा। अशोक एक इन्सान है और दोबारा गलती करके अपने बॉस को गुस्सा दिला सकता है। आलोचना इसलिए नहीं की जाती कि उन्हें सज़ा मिले या बुऱा लगे। आलोचना ऐसे हो कि लोगों को अपनी गलती समझ में आ जाए जिससे वे अगली बार अच्छा काम करने का प्रयत्न करें। आलोचना के साथ थोड़ी-बहुत प्रशंसा मिलाकर उसके तीखेपन को कम करना अच्छा रहता है।
    इससे पहले कि आप कुछ कहें, दूसरे को स्वयं अपनी आलोचना करने का मोका दें। अगर उसे अपनी भूल का अहसास है तो वह इसे आपसे सुनने की बजाय खुद स्वीकार करना पसंद करेगा और जब आप किसी की आलोचना करें तो उस पर अपने पद की उच्चता न जताएं।
    इसे भी पढ़ें:करोड़पति लोग ऐसा क्या करते हैं की वो करोड़ पति है
    3. चिल्लाएं नहीं, समझाएंकिसी पर चिल्लाने की क्या जरूरत है ? उत्तेजना के क्षणों में किसी पर चिल्लाने की बजाय आप उससे आराम से बात भी तो कर सकते हैं। जैसे-यह कहें, ‘मुझे बहुत निराशा हुई। तुमने हमेशा इतना अच्छा काम किया है।’ याद रखें, किसी को डाँटने का उद्देश्य होता है उसे सुधारना, भविष्य में गलती न दोहराने में उसकी सहायता करना। अगर आप अशोक पर चिल्लाएंगे तो वह जान-बूझकर अपनी गलती फिर दोहराएगा-भले ही वह ऐसा केवल बॉस को गुस्सा दिलाने के लिए करे।
    इसे भी पढ़ें:ये डर ही है जो हमें बढ़ने नहीं देता है
    4. वादा तो वादा है
    ‘जैसा मैंने सोचा था वैसा नहीं हो पाया।’ दरअसल बॉस को ऐसा वादा करना ही नहीं चाहिए था। अगर वह वादा करके फिर उससे पीछे हटने की कोशिश करता है तो वह अपने सहकर्मियों का सम्मान खो देता है। बॉस की स्मृति प्राय: बहुत लचीली होती है, वह कह देता है कि उसने यह बात कही ही नहीं। वह लोगों को थोड़े समय तक खुश रखने के लिए ऐसी बातें कह देता है, पर आगे चलकर इसका प्रभाव उल्टा पड़ता है। लोग अपने बॉस से सच्चाई और ईमानदारी की उम्मीद रखते हैं। वे ऐसे बॉस का कभी सम्मान नहीं करेंगे जो अपनी ही बात से मुकर जाए। अगर बॉस पूरी तरह सच्चा और ईमानदार होगा तो लोग उसकी कमियों को भी खुशी से स्वीकार कर लेंगे-और कमियां तो हर बॉस में होती हैं।

    इसे भी पढ़ें:कैसे डालें सुबह जल्दी उठने की आदत

    5. औरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जिसकी उपेक्षा आप खुद उनसे करते हैं।
    ईसाई, हिन्दू, कम्यूनिस्ट, पुराने ढंग के रूढ़िवादी, आपको हमेशा बहुत से लोग मिलेंगे जिनके राजनीति, धर्म, खेल और अन्य विषयों पर अलग और कट्टर विचार होते हैं। पर वे सब बिना किसी परेशानी के शान्तिपूर्वक एक-दूसरे के साथ रहते हैं। मान लीजिए, आप किसी से सहमत नहीं हैं, तो क्या हुआ ? इसके लिए अप्रिय व्यवहार या बहस करने की क्या ज़रूरत है ? सभी को अपने विचारों और मान्यताओं के साथ रहने का अधिकार है। उन्हें अपने विचारों से सहमत कराने की कोशिश में अपना समय और शक्ति खर्च करना बेकार है। आपके अपने विचार हैं और उन्हें उनके अपने विचारों के साथ रहने दें। आप बहस करके लोगों के विचार नहीं बदल सकते। इससे केवल कटुता पैदा होती है। लोगों को अपनी मान्यताओं के साथ रहने दें।
    इसे भी पढ़ें:


  • दिल से चाहो तो हो सकता है | Motivational Short Stories In Hindi
  • 22 मार्च 2016

    जब पढने में मन न लगे तो क्या करे

    By: Successlocator On: मार्च 22, 2016
  • Share The Gag




  • दोस्तो ,
    अकसर प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी करने वाले प्रतियोगियों के सामने यह समस्या आती है ,कि पढाई में मन नही लगता है । मगर पढना प्रतियोगी परीक्षा के लिए बहुत जरुरी है । तो मेरे अनुभव और विचार से तो सबसे पहले पढाई में मन न लगने के कारन का पता लगाना चाहिए कि आखिर पढाई में मन क्यों नही लग रहा है ?
    मेरे विचार से कुछ सामान्य कारण ये हो सकते है :-
    १- पढाई का उपयुक्त माहौल का न होना ।
    २- पढने का उचित समय का न होना ।
    ३- पढने के लिए उपयुक्त सामग्री का न होना ।
    ४- उचित मार्गदर्शन का न होना ।
    ५-अन्य कार्यो से व्यवधान ।
    ६- एकाग्रता की कमी होना ।
    ७- दृढ निश्चय का अभाव।
    मेरे ख्याल से उपरोक्त सामान्य कारणों से सामान्यतः प्रतियोगी पढ़ नही पाते है , इनके अलावा भी कुछ अन्य विशेष कारण हो सकते है , जो अलग अलग लोगो के लिए अलग हो सकते है । आज हम इन्ही सामान्य कारणों की चर्चा करते है । इन कारणों में सबसे महत्वपूर्ण कारण जो है , वो है उचित मार्गदर्शन का न होना । उचित मार्गदर्शन का प्रतियोगी परीक्षाओ में अति महत्वपूर्ण स्थान है । जैसे आपको अगर दिल्ली जाना है , और आपको सही रास्ता मालूम नही , अगर आपको सही मार्गदर्शक नही मिला तो हो सकता है , कि आप किसी तरह से दिल्ली पहुच भी जाये मगर इसमें आपका बहुत सारा समय और धन खर्च हो सकता है । मगर सही मार्गदर्शक मिलने पर आप समय के साथ धन भी बचा सकते है , और अपनी मंजिल पर सही वक़्त पर पहुच सकते है । अतः सही ढंग से तैयारी शुरू करने के लिए एक उपयुक्त मार्गदर्शक अतिआवश्यक है । कई बार हम मेहनत और प्रयास तो बहुत करते है मगर सफलता नही मिलती है , दूसरी तरफ कुछ लोग कम मेहनत और कुछ प्रयास में ही सफल हो जाते है । इसका कारण उनका सही दिशा में सार्थक प्रयास होता है । जैसे - अगर हम कील को उल्टा पकड़कर कितनी भी जोर से दीवार में ठोंके वह नही ठुक सकती है , वही उसे सीधा कर देने पर वह थोड़े प्रयास से ही आराम से ठुक जाएगी । इसी तरह प्रतियोगी परीक्षा में सही दिशा में सही प्रयास बहुत जरुरी है ।

    इसे भी पढ़ें:पढाई पर अपना ध्यान केंद्रित कैसे करे? PADAI ME DHYAN


    अब हम मूल मुद्दे पर आते है , कि कैसे हम पढाई में मन लगाये : -
    सबसे पहले तो पढने के लिए एक लक्ष्य या उद्देश्य होना जरुरी है , यह हमारे लिए प्रेरक का कार्य करता है । अगर लक्ष्य विहीन है ,तो हमारी सफलता शंकास्पद होगी । अतः एक लक्ष्य होना अति आवश्यक है । एक से अधिक लक्ष्य होने से मन अधिक भटकता है और पढाई में मन नही लगता है ।
    अब लक्ष्य निर्धारण के बाद समुचित तैयारी जरुरी है , अर्थात हमें अपने लक्ष्य के बारे में पूरी जानकारी जुटानी होगी , कि परीक्षा कैसे होगी ?
    सिलेबस क्या है ?
    पैटर्न किस तरह का है ?
    प्रश्न किस तरह के आते है ?
    पाठ्य सामग्री कहाँ से , कैसे मिलेगी ?
    तैयारी की रणनीति क्या होगी ?
    सफलता के लिए कितनी मेहनत जरुरी है ?
    सफल लोगो की क्या रणनीति रही थी ? इत्यादि
    अगर हम इन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर लेते है तो , हमारी समास्या का आधा समाधान हो जायेगा । अब आधे समाधान के लिए हमें अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करना होगा । मतलब सेल्फ मेनेजमेंट
    यदि हम खुद को सही तरीके से प्रतियोगिता के हिसाब से नही ढाल पाते है, तो सफलता में संदिग्धता होगी । हमें अपनी पढाई का समय और घंटे अपनी क्षमता के अनुसार निर्धारित करने होंगे । और निर्धारित समय सरणी का द्रढ़ता के साथ पालन करना होगा । इसके लिए हम प्रेरक व्यक्तिवो , प्रेरक प्रसंगों, प्रेरक पुस्तकों आदि का सहर ले सकते है ।
    पढाई करते समय ध्यान देने योग्य बाते :-
    १ - पढाई हमेशा कुर्सी-टेबल पर बैठ कर ही करें , बिस्तर पर लेट कर बिलकुल भी न पढ़े । लेटकर पढने से पढ़ा हुआ दिमाग में बिलकुल नही जाता , बल्कि नींद आने लगती है ।
    २ - पढ़ते समय टेलीविजन न चलाये और रेडियो या गाने भी बंद रखे ।
    ३ - पढाई के समय मोबाइल स्विच ऑफ़ करदे या साईलेंट मोड में रखे ," मोबाइल पढाई का शत्रु है "

    ४ - पढ़े हुए पाठ्य को लिखते भी जाये इससे आपकी एकाग्रता भी बनी रहेगी और भविष्य के लिए नोट्स भी बन जायेंगे ।
    ५- कोई भी पाठ्य कम से तीन बार जरुर पढ़े ।
    ६ - रटने की प्रवृत्ति से बचे , जो भी पढ़े उस पर विचार मंथन जरुर करें ।
    ७ - शार्ट नोट्स जरुर बनाये ताकि वे परीक्षा के समय काम आये ।
    ८- पढ़े हुए पाठ्य पर विचार -विमर्श अपने मित्रो से जरुर करें , ग्रुप डिस्कशन पढाई में लाभदायक होता है।

    ९ - पुराने प्रश्न पत्रों के आधार पर महत्वपूर्ण टोपिक को छांट ले और उन्हें अच्छे से तैयार करें ।
    १० - संतुलित भोजन करें क्योंकि ज्यादा भोजन से नींद और आलस्य आता है , जबकि कब भोजन से पढने में मन नही लगता है ,और थकावट, सिरदर्द आदि समस्याएं होती है ।
    ११- चित्रों , मानचित्रो , ग्राफ , रेखाचित्रो आदि की मदद से पढ़े । ये अधिक समय तक याद रहते है ।
    १२- पढाई में कंप्यूटर या इन्टरनेट की मदद ले सकते है
    इसे भी पढ़ें:

    21 मार्च 2016

    अपना बॉस ख़ुद बनना है तो ये तरीके अपनाएँ

    By: Successlocator On: मार्च 21, 2016
  • Share The Gag
  • इसे भी पढ़ें:कड़ी मेहनत का महत्व | Importance Of Hardwork In Hindi
    मार्टिन जब लिसा हेनेस्से का पालतू कुत्ता पेट की बीमारी की चपेट में आया तो उन्होंने घर में उसके लिए ख़ास डाइट तैयार की थी. लिसा ने देखा कि कुत्ते को भोजन खूब पसंद आया.
    कुछ साल बाद लिसा को ऑटोमोटिव पार्ट्स डिस्ट्रिब्यूटर मैनेजर की अपनी नौकरी गंवानी पड़ी. उन्होंने पालतू पशुओं के भोजन के लिए 'योर पेट कैफ़े' की शुरुआत की, जो कुत्तों के लिए ख़ास तौर पर डाइट तैयार करती है.
    अमरीका के शिकागो में रहने वाली 52 साल की लिसा बताती हैं, "हम आजकल 125 पालतू कुत्तों के लिए डाइट तैयार करते हैं और उन्हें स्वस्थ रखने में मदद करते हैं."
    लिसा ने अपनी ये वेंचर 2012 में शुरू की थी. तब उन्हें हर नए कारोबारी की तरह फंडिंग संबंधी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. बीते तीन साल में उनका काम जम गया है, खर्च निकल आता है लेकिन लिसा को आज भी अपनी सेलरी जितनी रकम नहीं मिल पाती है.
    इसे भी पढ़ें:Success Tips in Hindi – तरक्की के लिये 10 बाते 

    वह कहती हैं, "अब मैं निवेशकों को जुटाने की कोशिश कर रही हूं ताकि मैं इसे करती रहूं और घर का खर्चा चलाने के लिए मुझे उबर की टैक्सी नहीं चलानी पड़े."
    नए कारोबार की मुश्किलें
    दरअसल कारोबार की शुरुआत के लिए काफी लगन, अनुभव, शोध, टाइमिंग और परिश्रम की जरूरत होती है. इसके बावजूद कारोबार की दुनिया में कई नाकाम हो जाते हैं. लेकिन इससे कारोबार में हाथ आज़माने वाले कम नहीं हो जाते.
    इसे भी पढ़ें:जैसा दुनिया को देखोगे वैसा ही पाओगे | Motivational Stories In Hindi For Students
    कफ़मैन इंडेक्स ऑफ़ इंटरप्रेन्योरियल एक्टिविटी के मुताबिक अमरीका में 2013 के हर महीने में करीब चार लाख छिहतर हज़ार कारोबार लाँच हुए. स्टार्टअप ब्रिटेन के मुताबिक उसी साल ब्रिटेन में करीब पांच लाख नए कारोबार शुरू हुए. रिजर्व बैंक ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया के मुताबिक हर साल ऑस्ट्रेलिया में तीन लाख छोटे मोटे कारोबार शुरू होते हैं.
    अमरीकी स्माल बिज़नेस एडमिनस्ट्रेशन के मुताबकि पांच साल बाद, इनमें से आधे नाकाम हो जाते हैं. जबकि ऑस्ट्रेलिया में हर दिन 44 कारोबार बंद हो जाते हैं.
    (पढ़ें- दोनों हाथ- पांव नहीं, फिर भी सफलता के शिखर पर)
    अमरीकी गैर सरकारी संस्था स्कोर के बिज़नेस मेंटॉर स्टीव ब्लूम कहते हैं, "कारोबार शुरु करने वाला हर शख्स उम्मीद भरा होता है. पुराने अनुभव बताते हैं कि आमदनी आधी होने लगती है और खर्चा दोगुना, ऐसे में कारोबार करने वाला शख्स मुश्किल में आ जाता है."
    ऐसे में आप अपने कारोबार को कैसे कामयाब बना सकते हैं, इसको लेकर कुछ टिप्स...
    इसे भी पढ़ें:Motivational – आपका भविष्य आप पर निभर्र करता है !
    केवल आइडिया नहीं अनुशासन भी
    केवल जोरदार आइडिया से काम नहीं चलेगा. टोरांटो स्थित सिमंस फाइनेंसियल प्लानिंग के प्लानर शानन ली सिमंस कहते हैं, "कोई भी बिज़नेस शुरू कर सकता है, लेकिन उसे काफ़ी ज़्यादा काम करने और आत्म अनुशासित रहने के लिए तैयार होना चाहिए."


    सिमंस कहते हैं, "जो अपना काम शुरू करते हैं, उनके लिए मुनाफे पर जश्न मनाने के बजाए अपने काम पर परिश्रम करना होगा."
    जिस कारोबार में आप किस्मत आज़माने जा रहे हैं उसके बारे में जानकारी और अनुभव से मदद मिलती है. ब्लूम कहते हैं, "अगर आपके पास ये दोनों चीजें नहीं हैं, तो आपको मुश्किलों के बारे में अंदाजा नहीं होगा."
    ख़ास इंडस्ट्री किस तरह काम करती है, ये जानने से आप झटके खाने से बच सकते हैं. प्रतिस्पर्धा और अवसर के बारे में आपको बेहतर पता होगा. इतना ही नहीं आपके कामयाब होने के ज्यादा अवसर होंगे.
    (पढ़ें- मिलिए ऐसे सीईओ से जो बेघर है)
    ब्लूम कहते हैं, "मैं किसी कारोबार के बारे में कुछ नहीं जानता हूं, तो भी उसमें कामयाब हो सकता हूं लेकिन मुझे उस कारोबार के बारे में जानकारी होगी तो मेरा मुनाफा दो से तीन गुना ज़्यादा हो सकता है."
    इन सबके अलावा आपको वित्तीय संसाधन और बिज़नेस प्लान की जरूरत होगी.
    कितने दिन में तैयार कर सकते हैं?

    इसे भी पढ़ें:सफल होना है तो काम करने के तरीके बदलो

    कारोबार के बारे में शोध करने के लिए, संसाधन जुटाने में और लाइसेंस हासिल करने में आपको छह से 12 महीने लगेंगे.
    ब्रिटेन के कैंब्रिज बिज़नेस एडवाइजर्स के निदेशक एलन टॉड कहते हैं, "यह लोगों के लिए भिन्न इंडस्ट्री में अलग अलग हो सकता है."
    इन्हें अभी कीजिए
    बिज़नेस प्लान बनाइए. इसके लिए हो सके तो किसी एक्सपर्ट से सलाह लीजिए. बजट तैयार कीजिए. ब्लूम कहते हैं, "ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें अगर शुरुआत से ही सही कदम उठाए गए होते तो वे कारोबार कभी नाकाम नहीं होते."
    ब्लूम सलाह भी देते हैं, "आप कारोबार का बजट बनाइए. जब तक ब्रेक-इवन प्वाइंट आए तब तक. हो सकता है कि वह बजट दोगुना या उसके करीब हो जाए."
    (पढ़ें- सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री से बेहतर कमाई हेयर ड्रेसिंग में)
    कारोबार का ढांचा चुनिए: यह स्थानीयता पर निर्भर करता है. आप जैसा कारोबार करना चाहते हैं उसके मुताबिक ही आपकी टैक्स और लाइसेंस संबंधी देनदारी बनेगी.
    अमरीका में एसबीए डॉट गर्वनमेंट या फिर ब्रिटेन में स्टार्टअप्स डॉट-को-डॉट-यूके से आपको मदद मिल सकती है. अमरीका में लीगल ज़ूम जैसी ऑनलाइन कंपनियां भी आपको अपनी कंपनी तैयार करने में मदद कर सकती है.
    इसे भी पढ़ें:Importance Of Time Management In Hindi | समय का महत्व
    बैंक से संपर्क करें: अगर आप नौकरी में हैं और अपना काम शुरू करना चाहते हैं तो नौकरी छोड़ने से पहले ही बैंक से पैसों के लिए संपर्क करें. सिमंस के मुताबिक स्व-रोजगार करने वालों के प्रति बैंकिंग संस्थान ज्यादा उत्साह नहीं दिखातीं.
    पहले खुद को परखें: कारोबार को लाँच करने से पहले ख़ुद को परखें. जिस तरह का कारोबार आप करना चाहते हों, उस कारोबार से जुड़े लोगों को मिलकर उसे समझें. सिमंस कहते हैं, "आपको ये सोचना होगा कि क्या लोग आपकी सेवा के लिए भुगतान करेंगे? लोगों को डिस्काउंट दें और उनका फीडबैक भी लें. इससे काफी कुछ सीखने को मिलेगा."
    सभी अनुबंध को पूरा करें: अगर आपने अपने दोस्तों के साथ भी कारोबार शुरू किया हो तो सब बातों को लिखित दस्तावेज का रूप दें.
    मार्टिन ज़वलिंग ने स्टार्टअपप्रोफेशनल डॉट कॉम पर लिखा है, "मैं दो दोस्तों को जानता हूं जो कारोबारी झगड़े के चलते, आज भी, सालों बाद एक दूसरे के खून के प्यासे हैं. आप दोस्त हो सकते हैं, पति-पत्नी हो सकते हैं लेकिन जब कंपनी बढ़ने लगती है तो चीज़ें तेज़ी से बदलती हैं."
    इन्हें बाद में करें
    अपनी प्रगति पर नज़र रखें. नियमित अंतराल पर देखें कि क्या बदलाव हो सकता है. टॉड कहते हैं कि चीज़ें अगर योजना के मुताबिक नहीं होती हैं तो नए कारोबारी एक्शन नहीं लेते. आपको कई बार बदलाव करने के लिए तैयार होना चाहिए.
    इसे भी पढ़ें:लक्ष्य कैसे निश्चित करे
    टैक्स संबंधी मदद भी लें. सिमंस कहते हैं, "जब आप नियमित रोजगार से अलग पैसे कमाते हैं तो वह कर के दायरे में आएगा. कर संबंधी सलाह लें और उसे समय से चुकाएं."
    स्मार्ट तरीके से करें
    एक मेंटॉर रखें. अकेले आगे बढ़ने से आप अकेले पड़ सकते हैं. टॉड कहते हैं, "कारोबार शुरू करने वाले ज़्यादातर लोगों को कोच या मेंटॉर रखने पर फ़ायदा होता है."
    स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल करें. कई लघु उद्योग विकास संबंधी एसोसिएशन और स्थानीय चैंबर ऑफ़ कॉमर्स मार्केटिंग से लेकर सॉफ्टवेयर से लेकर कर संबंधी विवरण रखने की सुविधा मामूली शुल्क पर देती है. आप इन सुविधाओं का फ़ायदा लेने की संभावनाओं को तलाशें.
    इसे भी पढ़ें:

    5 मार्च 2016

    सफलता की कुंजी

    By: Successlocator On: मार्च 05, 2016
  • Share The Gag
  • सफलता की कुंजी

    हमारे धर्म-ग्रन्थ मे एक बड़ा सुन्दर मंत्र इन शब्दों मे मिलता है-"उठो, जागों और जब तक ध्येय की प्राप्ति न हो, प्रयत्न करते रहों।" जीवन मे सफलता की यही कुंजी है। बिना सक्रियता के कुछ नही हो सकता। हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे तो क्या मिलेगा? दुनिया उसी को प्यार करती है, उसी को मान देती है, जो मेहनत करता है ओर खरी कमाई करके खाता है। आदमी का काम प्यारा होता है चाम नही।

    कुछ लोग बड़ी-बड़ी चीजों के चक्कर मे छोटी-छोटी चीजों की ओर ध्यान नही देते। वे भूल जाते है कि जो छोटी चीजों को नही सॅभाल सकता, वह बड़ी चीजों के योग्य नही बन सकता।

    एक बार गांधीजी की एक छोटी-सी पैसिल इधर-उधर हो गयी। उसकी तलाश मे उन्होने दो घटें खर्च किये और जब वह मिल गयी, तब उन्हे चैन पड़ा। वह जानते थे कि छोटी चीजों के प्रति लापरवाही हुई कि फिर बड़ी चीजों के लिए भी आदमी मे वह दुर्गुण आ जाता है।

    हमारी सफलता इस बात मे है कि हम सावधान रहकर, जो भी काम हमारे हाथ मे हो, उसे अच्छी तरह पूरा करें। हिमालय की चोटी पर च़ढ़ने के अवसर कम ही आते है, लेकिन हाथ के काम को कुशलता से करने का मौका तो हर घड़ी सामने रहता है।

    रूसों संसार का एक महापुरूष हो गया है। उसने लिखा, "जो मनुष्य अपने कर्त्तव्य को अच्छी तरह से करने की शिक्षा पा चुका है, वह मनुष्य से सम्बन्ध रखने वाले सभी कामों को भली-भॉती करेगा। मुझे इसकी चिन्ता नही कि मेरे शिष्य सेवा, धर्म या न्यायलय के लिए बनाए गए है। समाज से सम्बन्ध रखने वाले किसी काम के पहले प्रकृति ने हमें मानव-जीवन से सम्बन्ध रखने वाले काम करने के लिए बनाया है। यही मैं अपने शिष्य को सिखाऊँगा। जब उसे यह शिक्षा मिल चुकेगी, तब वह न सिपाही होगा, न पादरी होगा और न वकील ही। वह पहले मनुष्य होगा, फिर और कुछ।"

    कुछ लोग जीवन की सफलता पैसे ऑंकते है। जिसने अधिक कमाई कर ली, उसके लिए माना जाता है कि वह जिन्दगी मे सफल रहा। पर धन सफलता की असली कसौटी नही है। धन साधन है, जीवन का साध्य नही हो सकता। यदि पैसा ही सबकुछ होता तो बुद्ध, महावीर, गांधीजी आदि महापुरूष क्यों गरीबी का जीवन अपनातें? बुद्ध और महावीर तो राजा के बेटे थे, राज्य के अधिकारी थे, लेकिन उन्होने राज-पाट के वैभव से मुँह मोड़कर उस रास्ते को अपनाया, जिससे ढाई हज़ार वर्ष बाद आज भी वे जीवित है और जब तक मानव-जाति है, आगे भी जीवित रहेगें। गांधीजी को कौन-सी कमी थी? लेकिन उन्होने सादगी का जीवन अपनाया। आज सारी दुनिया उन्हे प्यार करती है। उनका मान करती है।

    आदमी को निराशा तभी होती है, जब वह आशा रखता है। जो काम वह करता है, उसके फल मे उसकी आसक्ति रहती है। गीता बताती है-"काम करों, पर फल की इच्छा मत रक्खों।" मेहनत कभी अकारथ नही जाती। फलों के पेड़ों पर फल आते ही है। लेकिन फलों पर हमारी इतनी निगाह रहती है कि पेड लगाने के आनन्द को हम अनुभव नही करते। अच्छी तरह से काम करने का अपना निराला ही उल्लास होता है।

    कुछ लोग कहते है, यह भी कोई जिन्दगी है कि हर घड़ी काम करते रहों। बहुत दिन जीने के लिए आराम बड़ा जरूरी है। ऐसा कहने मे एक बुनियादी दोष है। हर घड़ी काम करने का मतलब यह नही है कि आदमी कभी आरम ही न करे। उसका मतलब है, आदमी कर्मठ रहे, आलस न करें। सच बात यह है कि निष्क्रिय जीवन से बढ़कर दूसरा अभिशाप नही है। जो लोग क्रियाशील रहते है, वे काम करने का सन्तोष पाते है और अपनी प्रसन्नता से धरती का बोझ हल्का करते है। इसके विपरीत जो काम से बचते है, वे स्वयं तो परेशान होते ही है, समाज मे भी बडा दूषित वायुमण्डल पैदा करते है। कर्ममय जीवन दूसरो पर अच्छा असर डालता है, आलसी दूसरे को आलसी बनाता है।

    बचपन मे अंग्रेजी की एक बड़ी सुन्दर कविता पढ़ी थी। कवि कहता है, "उठो, दिन बीता जा रहा है और तुम सपने लेते हुए पड़े हुए हो! दूसरे लोगो ने अपने कवच धारण कर लिए हैऔर रणभूमि मे चले गये है॥ सेना की पंक्ति मे एक खाली जगह है, जो तुम्हारी राह देख रही है। हर आदमी का अपना कार्य करना होता है।"

    मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, उसके कर्त्तव्य बढ़ते जाते है। वह जितनी खूबी से उनका पालन करता है, उतना ही वह अच्छा नागरिक बनता है और समाज को सुखी बनाता है।

    हर आदमी के लिए ऊँचाई पर स्थान है, लेकिन वहॉँ पहँचता वही है, जिसके अन्तर मे आत्म-विश्वास होता है, हाथ-पैरों मे ताकत होती है, निगाह मे ऊँचाई होती है ओर हृदय में सबके लिए प्रेम और सहानुभूति का सागर उमड़ता रहता है।

    ऐसा आदमी जानता है कि उसके ऊपर सदा निर्मल आकाश है। अगर कभी बादल घिर भी आते है तो वे अधिक समय नही टिकते है। अपने लक्ष्य पर आँख रखकर मज़बूती से बढ़े चलना इंसान का सबसे बड़ा कर्त्तव्य है।

    4 मार्च 2016

    अपने पर भरोसा

    By: Successlocator On: मार्च 04, 2016
  • Share The Gag
  • अपने पर भरोसा

    आदमी कितनी भी मेहनत कर ले, अगर उसे अपने पर भरोसा नही है तो वह जीवन मे सफल नही हो सकता। बाहरी साधन इंसान के लिए जरूरी होते है, कुछ हद तक मदद भी करते है, लेकिन बिना आत्मविश्वास के उसकी गाड़ी नही बढ़ सकती। अपने पैरो की ताक़त के बिना आदमी दूर तक नही जा सकता।

    अपने पर भरोसे के मयने होते है-अपनी शक्तियों पर भरोसा। किसी भी काम को करने वाले आदमी मे अगर यह विश्वास है कि उसे जरूर पूरा कर सकेगा तो वह पूरा होकर ही रहेगा। जन्म से सारे गुण को पैदा कर सकता है। आत्म-विश्वास भी काम से आता है। गांधीजी बचपन मे डरपोक थे, लेकिन आगे चलकर ऐसे निडर बने कि दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें नही डरा सकी।

    आत्म-विश्वास सौ रोगो की एक दवा है। आत्म विश्वास है तो आपको काम के लिए नहीं भटकना पड़ेगा, भयंकर बीमारियॉँ नही पडेंगी, चिन्ताऍ आपका खून नहीं चूसेंगी ओर दुनिया की असफलताओं की वेदना आपको नही उठानी पड़ेगी। आत्म-विश्वास वह शक्ति है, जो असम्भव को भी सम्भव करके दिखा देती है।

    आत्म-विश्वास दृढ़ इच्छा-शक्ति सेउत्पन्न होता है। इच्छा-शक्ति वैसे हरकिसी मे होती है; किन्तु बहुत से लोगों मे वह सोती पडी रहती है। वे जानते ही नही कि उनके अन्दर शक्ति है। जो उसे पहचान लेते है, उनमें यह विश्वस पैदा हो जाता है कि वे जो कुछ करेगें, अच्छा ही होगा। ऐसे आदमी हौसले से काम करते जाते है ओर सफलता हर घड़ी उनके दरवाजें पर खड़ी रहती है।

    एक राजा पर उसके दुश्मन ने हमला किया। राजा ने उसका मुकाबला किया, लेकिन वह हार गया। अपने राज्य से भागकर वह एक गुफा मे जा छिपा। राज्य को वापस पाने की उसे कोई आशा न रही। गुफा मे बैठकर उसे बीते दिनों की याद सताने लगी। अकस्मात उसकी निगाह सामने की दीवार पर गयी। देखता क्या है कि एक कीड़ा बार-बार ऊपर चढ़ने की

    कोशिश कर रहा है। चढ़ता है, गिर पड़ता है। इस तरह वह छ: बार चढ़ा ओर छ: बार गिरा, लेकिन उसने अपना प्रयास नही छोड़ा। राजा बड़ी उत्सुकता से उसे देखता रहा। सातवी बार उसकी कोशिश सफल हुई। वह ऊपर पहुंच गया। राजा सोचने लगा-इस छोटे-से कीडे ने हार नही मानी और ऊपर पहुँचकर ही रहा। आखिर मैं तो आदमी हूं, कोशिश करूँ तो कोई वजह नही कि मेरी जीत न हो। यह सोचकर वह बाहर निकला और हिम्मत के साथ अपनी बिखरी सेना को इकटठा करके उसने फिर अपने राज्य को जीतने की कोशिश की। उसे अब भरोसा हो गया था कि उसे अवश्य सफलता मिलेगी और उसकी बात सही निकली।

    राजा ने देखा, कीड़े ने हार नहीं मानी।

    पं. जवाहरलाल नेहरू ने ठीक ही लिखा है, "हमारी कामयाबी इस बात मे नही है कि हम कभी गिरें ही नही। हमारी कामयाबी इसमें है कि गिरते ही हम हर बार उठकर खड़े हो जायें।"

    कुछ लोग आत्म-विश्वास को घमण्ड मानते हैं। यह गलत है। दोनो मे जमीन आसमान का अन्तर है। आत्म-विश्वास आदमी का गुण है, जो उसे काम रकने का हौसला देता है। घमण्ड दुर्गुण है। वह आदमी को गिराता है। उससे आदमी के सारे गुणों पर पर्दा पड़ जाता है ओर समाज मे सब लोग उसे तिरस्कार की निगाह से देखते है। घमण्ड आदमी का बहुत बड़ा दुश्मन है।

    3 मार्च 2016

    काम मे प्रसन्नता(pleasure in work)

    By: Successlocator On: मार्च 03, 2016
  • Share The Gag
  •                                      काम मे प्रसन्नता

    किसी बड़े आदमी ने कहा है कि जिस काम मे प्रसन्नता, आन्नद न हो, वह बेकार है। हम रोज़ देखते है कि कुछ लोग थोड़ा-सा काम करके थक जाते है, जबकि कुछ लोग ढेर-का-ढेर काम करके भी फूल की तरह खिले रहते है। इसका कारण क्या है। इसका कारण यही है कि जिनको काम मे रस नही आता, उनके लिए काम, भारी बोझ-सा होता है और भला भारी बोझ लेकर आदमी कितनी दूर चल सकता है? जिनको काम में रस मिलता है, वे उसमें आनन्द लेते हैं, उसे सहज भाव से करते है, इसलिए काम का भार उन पर नही पड़ता।

    काम में यह आन्नद तब मिलता है, जबकि हम काम के साथ आत्मीयता का नाता जोड़ लेते है। मॉँ अपने बच्चे के लिए रात-रात भर जागती है, फिर भी उसे वह भारी नही पड़ता। दूसरे के लिए थोड़ा-सा भी जगने मे उसे हैरानी हो जाती है।

    यह भी जरूरी है कि हम किसी भी काम को छोटा न समझे। हमारे यहॉँ बुद्धि से काम करने वाले शरीर की मेहनत से होने वाले कामों को छोटा समझते है। नतीजा यह कि जब उन्हें शरीर से काम करना पड़ता है तो उन्हें आनन्द नही आता। कोई भी काम छोटा नहीं है, न कोई काम बड़ा है। सबका अपना-अपना स्थान है। कहावत है न कि, "जहॉँ काम अवे सुई, कहॉँ करै तलवार।" यानी जहॉँ सूई की आवश्यकता है, वहॉँ तलवार क्या करेगी? रसोई मे काम करने वाला रसोइया, दफ्तर मे काम करने वाला बाबू, कक्षा मे पढ़ाने वाला अध्यापक, प्रयोगशाला मे प्रयोग करने वाला वैज्ञानिक, इमारतों के नक्शे बनाने वाला इंजीनियर, खेतों मे काम करने वाले किसान और मज़दूर आदि-आदि सबके काम अपना-अपना महत्व रखते है। उनमें न कोई हेय है, न कोइ श्रेष्ठ है। सब आदमी के लिए जरूरी है ओर एक-दूसरे के पूरक है।

    जब काम के साथ ऐसी भावना पैदा हो जाती है तो उसमें से आनन्द का सोता फूट पड़ता है। काम बहुत ही प्यारा लगने लगता है। शेक्सपियर ने लिखा है, "जिस परिश्रम से हमें आनन्द मिलता है, वह हमारी व्याधियों के लिए अमृत के समान होता है।"

    काम मे आदमी को रस मिलने से उसका उत्साह बढ़ता है। उत्साह बढ़ने से आदमी के हाथ दूना काम करते है। उत्साह वह ज्योति है, जिसके आगे निराशा का अंधकार एक क्षण नही ठहरता। उत्साह से भरा व्यक्ति कभी खाली नही बैठ सकता। उसे नित नये-नये काम सूझते रहते है। बड़ी उम्र मे भी जवान बना रहता है।

    जीवन में सबके सामने बड़े-बड़े अवसर आते रहते है। जो उन्हे पहचानकर पकड़ लेते है, वे महान काम कर डालते है। किसी चित्रशाला मे एक चित्र था, जिसमें चेहरा बालों से ढँका था और पैर मे पंख लगे थे। किसी ने पूछा, "यह किसकी तस्वीर है?"

    गांधी जी के लिए कभी कोई काम छोटा न था।

    कलाकार ने कहा, "अवसर की।"

    "इसका मुँह क्यों छिपा हुआ है?"

    "इसलिए कि जब यह लोगों के सामने आता है तो वे इसे पहचान नही पाते।"

    "इसके पैर में पंख क्यो लगें है?"

    "इसलिए कि यह बड़ी तेजी से भाग जाता है और एक बार गया कि उसे कोई नहीं पकड़ सकता।"

    उत्साही आदमी अवसर को कभी हाथ से नही जाने देता। उसकी ऑंखे सदा खुली रहती है और उसकी बुद्धि हमेशा जाग्रत रहती है।

    बाइबिल मे कहा है-"काम पूजा है।" जिस तरह लोग पूजा मे ऊँची निगाह और ऊँची भावना रखते है, वैसी ही निगाह और भावना हमें हर काम मे रखनी चाहिए। जिसे काम मे रस आता है, वही काम की महिमा को जानता है, वही काम को कर्त्तव्य मानकर करता है। गांधीजी को इतने बड़े-बडे काम रहते थे, लेकिन फिर भी वही अपने आश्रम के छोटे-से-छोटे काम मे भी मदद करते थे। रसोई मे साग काटते थे, पखाना साफ करते थे, बीमारों की देख-भाल करते थे। काम उनके लिए सचमुच की पूजा थी।

    2 मार्च 2016

    ध्यान मगन-concentration

    By: Successlocator On: मार्च 02, 2016
  • Share The Gag
  •                                               तल्लीनता

    बहुत-से कामों मे हमें सफलता नहीं मिलती तो इसकी वजह यह है कि हम उन कामों को पूरे मन से नही करते। काम उठाया, थोड़ा-सा किया, मन मे दुविधा पैदा हो गयी-यदि यह काम पार न पड़ा तो? नही, इसे यों करें तो ठीक रहेगा। उस तरह सोच लो, फिर उसे करना शुरू करो। एक बार शुरू कर दिया तो उसे अपनी पूरी शक्ति से करों। जिसकी निगाह इधर-उधर भटकती रहती है, वह अपने लक्ष्य को नही देख सकता। आपने देखा होगा, तॉँगे मे घोड़े की ऑंखो के दोनो ओर पटटे बॉँध देते है। क्यो? इसलिए कि उसे सामने का ही रास्ता दिखाई दे। वह दायें-बायें न देखे।

    स्टीफन ज्विग दुनिया के बहुत बड़े लेखक हुए है। वे एक बार एक बड़े कलाकार से मिलने गये। कलाकार उन्हे अपने स्टूडियों मे ले गया और मूर्तियों दिखाने लगा। दिखाते-दिखाते एक मूर्ति के सामने आया। बोला, यह मेरी नयी रचना है।" इतना कहकर उसने उस पर से गीला कपड़ा हटाया। फिर मूर्ति को ध्यान से देखा। उसकी निगाह उस पर जमी रही। जैसे अपने से ही कुछ कह रहा हो, वह बड़बड़ाया-"इसके कंधे का यह हिस्सा थोड़ा भारी हो गया है।" उसने ठीक किया। फिर कुछ कदम दूर जाकर उसे देखा, फिर कुछ ठीक किया। इस तरह एक घंटा निकल गया। ज्विग चुपचाप खड़े-खड़े देखते रहे। जब मूर्ति से सन्तोंष हो गया तो कलाकार ने कपड़ा उठाया, धीरे-से उसे मूर्ति पर लपेट दिया और वहां से चल दिया। दरवाजें पर पहुचकर उसकी निगाह पीछे गयी तो देखता क्या कि कोई पीछे-पीछे आ रहा है। अरे, यह अजनबी कौन है? उसने सोचां घड़ी भर वह उसकी ओर ताकता रहा। अचानक उसे याद आया कि यह तो वह मित्र है, जिसे वह स्टूडियो दिखाने साथ लाया था। वह लजा गया। बोला, "मेरे प्यारे दोस्त, मुझे क्षमा करना। मैं आपकों एकदम भूल ही गया था।"

    ज्विग ने लिखा है, "उस दिन मुझे मालूम हुआ कि मेरी रचनाओं मे क्या कमी थी। शक्तिशाली रचना तब तैयार होती है, जब आदमी सारी शक्तियां बटोरकर एक ही जगह पर केन्द्रित कर देता है।"

    अर्जुन की कहानी बहुतों से सुनी होगी। पाण्डवों के तीर चलाने की परिक्षा लेने के लिए

    एक दिन गुरू द्रोणावचार्य ने सब भाईयों का इकटठा किया। बोले, "देखो वह सामने पेड़ पर सफेद रंग की एक नकली चिड़िया है। उसकी आंखों मे लाल रंग के दो रत्न लगे है। तुम्हें उसकी दाहीनी आंख पर निशाना लगाना है।" सब भाई धनुष-बाण लेकर तैयार हो गये। द्रोण ने एक-एक से पूछा, "तुम्हें वहॉँ क्या-क्या दिखाई देता है?" किसी ने कुछ बताया, किसी ने कुछ बताया। जब अर्जुनकी बारी आयी तो उसने कहा, "गुरूदेव मुझे तो उस चिड़िया की दायीं ऑंख के सिवा ओर कुछ दिखाई नहीं देता।" इतनी थी उसकी एकाग्रता। तभी तो वह बाण चलने मे बेजोड़ था।

    एकाग्रता से आदमी का अपने काम को अच्छी तरह करने का मौका मिलता है। साथ ही उसका संकल्प भी पक्का बनता है।"एकहि साधै सब सधै।" एक चीज अच्छी तरह से हो गयी तो बहुत-सी चीजें आप पूरी हो जाती है। दस साल तक विनोबाजी सारे देश मे पैदल घूमते रहे। वह प्यार से उन लोगो से ज़मीन लेते, जिनके पास थी और प्यार से उन्हे दे देते थे, जिनके पास नही थी। विनोबाजी के पेट मे अल्सर था। वह कभी-कभी बड़ा दर्द करता था। उन्हे बड़ी हैरानी होती थी, पर उनकी यात्रा नही रूकती थी। एक बार जब दर्द बढ़ गया तो डॉक्टरों ने उनकी जॉच की। अच्छी तरह से देखभाल करके उन्होने विनोबाजी से कहा, "आपकी हालत गम्भीर है। आप आठ महीने आराम करें।"

    विनोबाजी ने मुस्कराकर कहा, "हालत अच्छी नही है तो आपने चार महीने क्यों छोड़ दियें? अरे, आपको कहना चहिए था कि बारहों महीने आराम करों।"

    डॉक्टरों ने कहा, "आप पैदल चलना छोड़ दें।"

    विनोबाजी ने उसी लहज़े मे जवाब दिया, "मेरे पेट मे दर्द है, पैरो मे नही।"

    विनोबाजी ने एक दिन को भी अपनी पदयात्रा बंद नही की। लोगों ने जब बहुत कहा तो उन्होने जवाब दे दिया, "सूर्य कभी नही रूकता, नदी कभी नही ठहरती, उसी अखण्ड गति से मेरी यात्रा चलेगी।" उनकी इस एकाग्रता का ही नतीजा है कि बिना किसी दबाव के, प्यार की पुकार पर, उन्हें कोई पैतालीस लाख एकड़ भूमि मिल गयी।

    सुकरात बहुत बड़े दार्शनिक थे। एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे बाज़ार से साग लाने को कहा। वह चले, पर मन दर्शन की किसी गुत्थी मे उल्झा था। सीढ़ियॉँ उतरने लगे कि मन की समस्या ने उनकी गति रोक दी। वह सीढिय़ो पर ही खड़े थे। वह बड़ी झल्लाई, कुंछ उल्टी-सीधी बाते कही। सुकरात का ध्यान टुटा। बोले, "मैं अभी साग लाता हूं।" दो-तीन सीढियॉ तेजी से उतरे, पर मन फिर उलझ गया। पैर पिुर रूक गये। बहुत देर हो गयी। पत्नी चौका साफ करके गंदे पानी की बाल्टी उठाकर फेंकने चली तो देखती क्या है कि वह सीढ़ियों से नीचे भी नहीं उतरे हैं। उसने बाल्टी का पानी उनके ऊपर डाल दिया। उन्होंने हंसकर बस इतना ही कहा, "देवीजी इसमें अचरज की कोई बात नहीं है। बिजली की कड़क के बाद पानी तो आना ही था।"

    चित्त् की एकग्रता से बहुत-सी घरेलू उलझनें हुईं, लेकिन उसी की बदौलत आज सुकरात को दुनिया याद करती है।

    किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है, "प्रतिभा के मानी होते हैं नब्बे फ़ीसदी बहाना और दस फ़ीसदी प्रेरणा। दुनिया के काम मेहनत और एकाग्रता से ही पूरे होते हैं। वैज्ञानिको का कहना है कि एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति भरी होती है कि उसके द्वारा संसार की सारी मोटरें और चक्कियां चेलाई जा सकती हैं। ज़रुरत बस उस शक्ति को इअकटठा करने की हैं। भाप को इंजन, पिस्टन रॉड पर केन्द्रित करने की है।

    एमर्सन का कथन है-"अगर जिंदगी में कोई बुद्धिमानी की बात है तो वह एकाग्रता है और अगर कोई खराब बात है तो अपनी शक्तियों को बिखेर देना।"

    दुनिया में लोगों में शक्ति की कमी नहीं है, लेकिन वे अपनी उस शक्ति को केन्द्रित करना नहीं जानते। बंधी हुई भाप बड़े-से-बड़े इंजनों को खींच ले जाती है, लेकिन अगर वह बिखर जाय तो बेकार चली जाती है।

    1 मार्च 2016

    चरैवेति-चरैवेति(never back down)

    By: Successlocator On: मार्च 01, 2016
  • Share The Gag
  • चरैवेति-चरैवेति

    निराशा से हाथ-पर-हाथ रखकर बैठना हार को बुलावा देना है। गतिहीनता मौत का नाम है। कहावत है-गतिशील पत्थर पर काई नही लगती। काम मे आने वाले लोहे पर जंग नही लगती। यह बात सोलहों आने सही है। रूका पानी सड़ जाता है। मेहनत से बचने वाला आदमी निकम्मा हो जाता है।

    वेदों मे एक बड़ा सुन्दर गीत है-'चरैवेति-चरैवेति'। इसका मतलब होता है—चलते रहो, चलते रहो। गीत मे कहा गया है, "जो आदमी चलता रहता है, उसकी जाघों मे फूल फूलते है, उसकी आत्मा मे फल लगते है। …बैठे हुए आदमी का सौभग्य पडा रहता है ओर उठकर चलने वाले का सौभाग्य चल पड़ता है। इसलिए चलते रहो, चलते रहो।"

    गीतकार आगे कहता है, "चलता हुआ आदमी ही मधु पाता है, मीठे फल चखता है। सूरज की मेहनत को देखों, जो हमेशा चलता रहता है, कभी आलस नही करता। इसलिए चलते रहो, चलते रहों।

    आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है आलस। वह हर घडी दॉँव देखता हैं। आदमी का मन जहॉँ ढीला पड़ा कि वह आकर उसको दबोच लेता है। आलसी आदमी हमेशा हैरान रहता है। उसके सामने काम करने को पड़े रहते है और वह इस उलझन मे रहता है कि उन्हे कैसे निबटायें। काम पूरे नहीं होते तो वह तरह-तरह के बहाने खोजता है। उसमें बहुत-से दुर्गुण पैदा हो जाते है। इसलिए बुद्धिमान आदमी आलस को कभी पास नही फटकने देते।

    गांधीजी आगा खॉँ महल से छूटकर आये थे। उन्हें कस्तूरबा ट्रस्ट का विधान बनाया था। उन्होने एक साथी से कहा कि सवेरे प्रार्थना के समय वह उन्हें याद दिला दें। अगले दिन जब सब प्रार्थना के लिए इकटठे हुए तो उन सज्जन ने गांधीजी को याद दिलानी चाही, लेकिन वह कुछ कहे कि उससे पहले ही गांधीजी ने विधान निकालकर सामने रख दिया। बोले, "तुमसे मैने याद दिलाने को कहा था, पर बाद मे मुझे लगा कि भगवान दिन का काम देते है तो उसे करने की शक्ति भी देते है। यदि हम उस काम को उसी दिन नही कर डालते तो भगवान की दी हुई शक्ति का पूरा उपयोग नही करते। यही सोचकर मैं रात को बैठ गया और विधान को पूरा करके सोया।"

    गांधीजी ने अकेले इतना काम किया, उसका रहस्य यही था कि उन्होने आलस को हमेशा दूर रखा। जिस समय जो काम करना था, उसी समय उसे पूरा किया।

    प्रकृति हर घड़ी अपने काम करती रहती है। जरा सोचिए, सूरज आलस करके थोड़ी देर को सो जाय तो क्या होगा? दुनिया मे हाहाकार मच जायेगा। हवा एक पल को रूक जाय तो इस धरती पर कोई भी जीता बचेगा? समय पर वर्षा न हो तो सूखा पड़ जायेगा ओर लोग भूखो मर जायेंगें।

    उद्योग सफलता की कुंजी है। मिस्त्र के पिरामिडों का देखकर हम आज भी अचरज करते है। चीन की दीवार को देखकर दॉतो तले उँगली दबाते है। तेनसिंग के एवरेस्ट की चोटी पर चढने की बात याद करके रोमांच हो आता है। ये काम कैसे हुए? बराबर मेहनत करने से। यदि अदमी परिश्रम से बचता तो दुनिया का पता कैसे चलता? समुद्र कैसे पार होते? पहाड़ो की चोटियों पर लोग कैसे पहुँचते? आदमी पृथ्वी की परिक्रमा कैसे कर पाता? रेल, मोटर, हवाई जहाज कहाँ से चलते? दुनिया के हर क्षेत्र मे आज जो चमत्कार दिखाई देते है, वे कहाँ से होते?

    अंग्रेजी मे कहावत है-"रोम एक दिन मे नही बन गया था।" हिन्दी मे भी हम कहा करते है-"हथेली पर सरसो नही जमती।" बडे-बडे कामों के पूरा होने मे समय लगता ही है। अग्रेजी के विश्वकोश को पूरा करने मे वैब्सटर को छब्बीस साल लगे। टॉल्स्टॉय ने अपना सुप्रसिद्ध उपन्यास 'युद्ध और शान्ति' सात बरस मे पूरा किया। इतिहासकार गिबन को अपने रोम साम्राज्य के पतन की रचना मे बीस वर्ष लगे। जार्ज स्टीफेंसन रेलगाड़ी का सुधार करने मे पन्द्रह बरस जुटा रहा। शरीर की रक्त-संचालन क्रिया का पता लगाने मे हारवे के आठ वर्ष खर्च हुए। बड़े कामो के लिए बड़ी साधना की जरूरत होती है। जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा, यह कहावत बिल्कुल सही है।