22 अक्तू॰ 2015

"सब कुछ ठीक नहीं हो तो याद रखेंये पांच बातें"

By: Successlocator On: अक्तूबर 22, 2015
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  • सब कुछ ठीक नहीं हो तो याद रखें ये पांच बातें इससे कोई   फर्क नहीं  पड़ता हैं कि जिंदगी में जो हो रहा हैं वह अच्छा हैं या बुरा।
    ख़ुशी समस्याओं की गैर मौजूदगी का नाम नहीं हैं, बल्कि समस्याओं से निपटने के सामर्थ्य का नाम हैं। इस बात को देखें की आज आपके पास क्या हैं। इस बात पर नहीं कि आपने क्या खो
    दिया। अगर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा हैं तो उस हालत का सामना करने के लिए ये तरीके काम में लीजिए –
    • कठिन समय सिखाता हैं आगे बढ़ने के बारें में। कभी-कभी जिंदगी पिछले दरवाजे इसलिए बंद कर देती हैं क्योकि यह समय आगे बढ़ने का हैं। यह अच्छा भी हैं क्योकि जब तक हालात दबाव न डालें हम आगे नहीं बढ़ते हैं। जब समय कठिन हो तो याद रखे कोई भी दर्द बिना उद्देश्य के नहीं होता हैं। जिससे चोट लगी, उससे नज़रअंदाज कर दें, लेकिन इससे जो सबक मिला उसे कभी भूलें नहीं। हर सफलता के लिए संघर्ष की जरुरत होती हैं। धैर्य रखें, सकारात्मक रहें। याद रखें दर्द दो तरह के होते हैं – एक जो आपको चोट पहुचता हैं, दूसरा जो आपको बदलता हैं। दोनों ही सिखाते हैं।
    • , इसका आनन्द   जीवन आसन नहीं, हँसना बंद न करें अभी वक्त अच्छा हैंलें। 
    यह सदा नहीं रहेगा। वक्त बुरा हैं, चिंता न करें। यह भी सदा नहीं रहेगा। यह सोचकर हँसना बंद न करें की जीवन आसान नहीं हैं। कोई बात परेशान कर रही हैं तो मुस्कुराना न छोड़ दें। हर पल नई शुरुआत और नया अंत हैं। दूसरा मौका मिलेगा। अगले ही पल। इसे अच्छा बनाने की जरुरत हैं।
    • बीते कल की बातें आज बिलकुल न दोहराएं। कुछ नहीं करना और सफल होने के मुकाबले प्रयास करना और नाकाम होना ज्यादा अच्छा हैं। अगर नाकाम रहे तो सब कुछ ख़त्म नहीं हो गया। अतीत की छाया भविष्य पर मत पड़ने दीजिएं। बीतें कल की आज शिकायत करने से आने वाला कल बेहतर नहीं होगा। बदलाव लायें और पीछे मुड़कर न देखें। सच्ची ख़ुशी तभी आएगी, जब समस्याओं के बारें में शिकायत करना छोड़ देंगे।
    •   बदलाव वही लाएं जो आपको बेहतर बना सके। 
              जब कोई आपको नीचा दिखाने की कोशिश करे तो मुस्कुराएं। उत्साह और काम में मन लगाए रखने  का    यह आसान तरीका हैं। आप हर बात को पर्सनली नहीं ले सकते हैं। आपसे कोई कहे कि आप अच्छे नहीं हैं तो उसे प्रभावित करने के लिए खुद में बदलाव न लाएं बदलाव वही लाएं जो आपको बेहतर बनाए।
    •   धैर्य का अर्थ काम के दौरान अच्छा नजरिया अपनाना हैं।
              धैर्य का मतलब इंतजार नहीं होता, बल्कि सपनोँ के लिए काम करने के दौरान अच्छा नजरिया रखने की काबिलियत से हैं। इसलिए प्रयास करें तो उसे वक्त भी दें इसका मतलब कुछ पलों के लिए स्थायित्व और चैन
    खोना हो सकता हैं, लेकिन यह धैर्य रखने से ही ज़ाहिर होगा कि आप जो पाना चाहते हैं, उसके प्रति कितने द्रढ़
    हैं अगर द्रढ़ हैं तो नाकामियों के बावजूद काम पूरा होगा धैर्य रखने से हर कदम पर बेहतर महसूस करेंगे लगने लगेगा कि आपकी राह में कोई संघर्ष नहीं हैं।

    अरस्तु के गुरु सुकरात की महत्वपूर्ण बातें जो कभी गलत नहीं हुई ।

    By: Successlocator On: अक्तूबर 22, 2015
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  •       प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात कुछ ऐसेव्यक्तित्व के धनी थे कि सभी लोग अपनी समस्याओं का समाधान जाननेके लिए उनके पास कई लोग आते और
    तरह-तरह के सवाल करते थे। सुकरातसमान भाव से सभी की समस्याओं का समाधान करने और उन्हें संतुष्ट करने कीकोशिश करते।एक बार एक व्यक्ति ने सुकरात से प्रश्न किया, ‘ आपके गुरु कौन है? ‘सुकरात ने हँसते हुए जवाब दिया,‘ सारी दुनिया में जितने भी मुर्ख है वे
    सब मेरे गुरु हैं‘। व्यक्ति ने सोचा किसुकरात मजाक कर रहे हैं क्योंकि वे अक्सर ऐसा करते थे। व्यक्ति ने पूछा,मूर्ख आपके गुरु कैसे हो सकते हैं ?’सुकरात ने जवाब दिया, मैं हमेशा यह
    जानने की कोशिश करता हूँ कि किस दोष की वजह से किसी को मुर्ख कहा जा रहा है । अगर मुझे लगता है कि यह दोष मेरे भीतर भी है तो मैं अपने भीतर के उस दोष को दूर कर लेता हूँ,जिससे कि मुझे मूर्ख ना कहा जाए ।इस तरह मैंने जो भी ज्ञान प्राप्त किया है वह मूर्खों से ही शिक्षा लेकर किया है ।
    नीचे कुछ Socrates ke Quotes, मैं Hindi में POST के माध्यम से आपको बता रहा हूँ जो कि काफी प्रेरणादायी सिद्ध
    होंगे ।
    1-   काम में कमियाँ निकालनेवालों पर ज्यादा ध्यान दें।
    2-   किसी से दोस्ती करने में धीमे रहिये, लेकिन अगर दोस्ती हो जाएँ तो उसे मजबूती से निभाइए और हमेशा जरुरत के समय दोस्तों के साथ रहिये। 
    3-   हर साल भी अगर एक बुरी आदत को दूर फेका जाएँ,तो बुरे से बुरा व्यक्ति भी अच्छा बन सकता हैं।
    4-   किसी भी स्थिति में पैसे सेअच्छे गुण हासिल नहीं कियें जासकते हैं, लेकिन अच्छे गुणों से पैसा जरुर कमाया जा सकता हैं।
    5-   जो व्यक्ति खुद के गुस्से को काबू करना सीख लेता हैं, वह दूसरों के गुस्सो से खुद ही बच निकलता हैं।
    6-   हमारी प्रार्थना केवल आशीर्वाद पाने के लिए होनी चाहिए क्योकि ईश्वर सब जानता हैं, कि आपके लिए क्या अच्छा हैं और क्या बुरा।
    7-   जिन्दगी में कुछ भी हो जाये एक बार शादी जरुर कीजिये अगर अच्छी पत्नी मिली तो जिन्दगी खुशहाल हो जाएगी
    और अगर नहीं तो आप दार्शनिक जरुर बन जाओगे।
    8-   खुद को जानों यह इसलिए जरुरी हैं क्योकि एक बार खुद को जान लिया तो यह सीख जायेंगे कि खुद को आगे कैसे बढ़ाना हैं।
    9-   जो आप चाहते हैं वह नहीं मिलता हैं तो तकलीफ होती हैं जो नहीं कहते हैं वह मिल जाता हैं तो भी तकलीफ होती हैं और जो चाहते हैं वह भी मिल जाता हैं तो भी तकलीफ होती हैं क्योकि वह ज्यादा दिन आपके पास नहीं रहता है।
    10-  एकमात्र अच्छाई केवल ज्ञान हैं और एकमात्र बुराई केवल अज्ञान हैं।
    11-   संतुष्टि प्रकर्ति की दौलत हैं और वैभव इंसान के द्वारा बनायीं हुई गरीबी वे ही धनवान हैं जो कम में संतुष्टि करना जानते हैं।
    12-  खुद को भीतर से खुबसूरत बनाये और प्राथना करे कि आप बाहरऔर भीतर से एक जैसे रहे।
    13-  सच्ची बुद्धिमानी उसी वक्त आ सकती हैं, जब हम यह मान ले कि हम जिन्दगी खुद के बारे में और हमारे आस-पास कि दुनिया के बारें में कितना कम जानते हैं कुछ ही जानते हैं।
    14-  उन लोगों कि बातों पर ध्यान मत दीजिए, जो आप के काम और आचरण की प्रशंसा करते हैं बल्कि उन लोगो कि बातों पर ध्यान दीजिए जो आप के काम मेंकमियां निकालते हैं।

    "मनुष्य के मस्तिष्क की 20 महानशक्तियाँ और प्रबंधन"

    By: Successlocator On: अक्तूबर 22, 2015
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  • मनुष्य के मस्तिष्क की 20 महान
    शक्तियाँ और प्रबंधन
    हमारे ideas हमारा लक्ष्य(GOAL)
    निर्धारित करते हैं उसे पाने के लिए
    जरुरत होती है आस्था (trust, faith,
    confidence) की। आस्था के लिए हमें                                    
    अपना मस्तिष्क खुला रखना होगा,
    इसे मस्तिष्क का उचित प्रबंधन भी
    कहते हैं।
    हम सबके मस्तिष्क में असीमित शक्ति
    होती है, मानव मस्तिष्क में असीम स्मरण शक्ति और सोचने की क्षमता मौजूद होती है , विश्व का कोई भी कंप्यूटर एक स्वस्थ मस्तिष्क की बराबरी नहीं कर सकता । मस्तिष्क जिस किसी चीज को स्वीकार करता है और विश्वास करता है, वह उसे प्राप्त भी कर सकता है क्योंकि आपका मस्तिष्क जिन चीजों को सोचता है, देखता है, विश्वास करता है और महसूस करता है वह उन्हें अवचेतन मन में भेज देता है। फिर आपका अवचेतन मन ब्रह्मांड की शक्तियों के साथ कार्य करने के पश्चात एक ऐसी वास्तविकता की रचना करता है, जो कि उस संदेश पर आधारित रहती है, जिसका उद्गम (starting) मस्तिष्क में हुआ था, परंतु सिर्फ इस प्रकार से सोचना और यह आशा करना कि यह सब अपने आप हो जाएगा, पर्याप्त नहीं है। यदि आप ठीक प्रकार से अपने कार्य के
    प्रति dedicated हैं तो आप उसे अवश्य पूरा कर लेंगे, लेकिन आवश्यकता है यह जानने की, कि आप अपने मस्तिष्क की शक्तियों का प्रयोग कैसे करेंगे।मनुष्य के मस्तिष्क की 20 महानशक्तियाँ
    1. मस्तिष्क में कल्पना शक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा आशाओं और उद्देश्यों को साकार करने के तरीके सुझाएँ जाते हैं। इसमें इच्छा और उत्साह की प्रेरक क्षमता दी गई हैं, जिसके द्वारा योजनाओं और उद्देश्यों के अनुरूप कर्म किया जा सके। इसमें इच्छा शक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा योजना पर लंबे समय तक काम किया जा सके।
    2. इसमें आस्था की क्षमता दी गई हैं, जिसके द्वारा पूरा मस्तिष्क
    असीम बुद्धि की प्रेरक शक्ति की तरफ मुड जाता हैं तथा इस
    दौरान इच्छाशक्ति और तर्कशक्ति शान्त रहती हैं।
    3. इसमें तर्कशक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा तथ्यों और सिद्दांतों को अवधारणाओं, विचारों और योजनाओं में बदला जा सकता हैं।
    4. इसे यह शक्ति दी गई हैं कि यह दुसरें मस्तिष्कों के साथ मौन सम्प्रेषण (Transmission) कर सके, जिसे टेलीपैथी(Telepathy) कहते हैं।
    5. इसे निष्कर्ष की शक्ति दी गई हैं, जिसके द्वारा अतीत का विश्लेषण करके भविष्य का पूर्वानुमान लगाया जा सकता हैं। यह क्षमता स्पष्ठ करती हैं कि दार्शनिक भविष्य का अनुमान लगाने के लिए अतीत की तरफ क्यों देखते हैं।
    6. इसे अपने विचारों की प्रकर्ति चुननें, संशोधित करने और नियंत्रित करने के साधन दिए गए हैं, इसके द्वारा व्यक्ति को अपने चरित्र के निर्माण का अधिकार दिया गया हैं, जोकि इच्छानुसार ढाला जा सकता हैं। और इसे यह शक्ति भी दी गई हैं कि यह यह तय करें कि मस्तिष्क में किस तरह के विचार प्रबल होंगे।
    7. इसे अपने हर विचार को ग्रहण करने, Record करने और याद करने के एक अदभुदत फाइलइंग सिस्टम (filing                     system) दिया गया हैं जिसे स्मरण                                           शक्ति कहा जाता हैं। यह अदभुद तंत्र अपने आप सम्बन्ध विचारों
    को इस तरह से वर्गीकृत कर देता हैं कि किसी विशिष्ट विचार को याद करने से उससे जुड़े विचार अपने आप याद आ जातें हैं।
    8. इसे भावनाओं की शक्ति दी गई हैं। जिसके द्वारा यह शरीर को इच्छित कर्म के लिए प्रेरित का सकता हैं।
    9. इसे गोपनीय रूप से और ख़ामोशी से कार्य करने की शक्ति दी गई हैं जिससे सभी परिस्थितियों में विचार की गोपनीयता सुनिश्चित होती हैं।
    10. इसके पास सभी विषयों पर ज्ञान प्राप्त करने, संगठित करने, संगृहीत करने और व्यक्त करने की असीमित क्षमता होती हैं, चाहे यह ज्ञान भोतिकी का हो या रहस्यवाद का, बाह्यः जगत का हो या आन्तरिक जगत का।
    11. इसके पास शारीरिक सेहत को अच्छा बनायें रखने की शक्ति भी हैं और स्पष्ठ रूप से यह सभी
    बीमारियों के उपचार का एकमात्र स्त्रोत भी हैं बाकी सभी स्त्रोत तो सिर्फ योगदान देते हैं यह तो शरीर को संतुलित रखने के लिए मरम्मत-तंत्र भी चलाता हैं, जो स्वचालित हैं।
    12. इसमें रसायनों का अद्भुद स्वचालित तंत्र भी होता हैं जो शरीर के रखरखाव और मरम्मत के
    लिए आहार को आवश्यक तत्वों में बदलता हैं।
    13. यह हर्दय को अपने आप चलाता हैं, जिसके द्वारा यह रक्त के जरिएं भोजन को शरीर के हर अंग तह पहुचाता हैं और अवशिष्ट सामग्री तथा मृत कोशिकाओं को शरीर से बाहर निकलता हैं।
    14. इसके पास आत्म-अनुशासन की शक्ति हैं, जिसके द्वारा यह किसी भी अच्छी आदत को
    ढाल लेता हैं और तब तक कायम रख सकता हैं, जब तक की आदत स्वचलित नहीं हो जाती।
    15. यहाँ हम प्रार्थना द्वारा असीम बुद्दिमता से सम्प्रेषण कर सकते हैं इसको प्रक्रिया बहुत आसान हैं इसके लिए आस्था के साथ अवचेतन मस्तिष्क के प्रयोग की जरुरत होती हैं।
    16. यह भौतिक जगत के हर विचार, हर औजार, हर मशीन और हर यन्त्र के अविष्कार का एकमात्र जनक हैं।
    17. यह सुख और दुःख का एक मात्र स्त्रोत हैं यह गरीबी और अमीरी का स्त्रोत हैं इन दोनों विरोधी विचारों में से जिसकी शक्ति भी प्रबल होती हैं यह उसे अभिव्यक्ति करने में अपनी उर्जा लगाता हैं।
    18. यह समस्त मानवीय संबंधों और समस्त मानवीय व्यवहारों का स्त्रोत हैं इसी से मित्रता और शत्रुता होती हैं, जो इस बात पर निर्भर करता हैं कि इसे किस तरह के निर्देश दियें गए हैं।
    19. इसकें पास सभी बाह्य परिस्थितियों और स्थितियों का विरोध करने तथा उनसे अपनी रक्षा करने की शक्ति हैं, हालंकि यह हमेशा उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकता।
    20. तर्क के भीतर इसकी कोई सीमा नहीं हैं, इसकी सीमायें वही हैं, जिन्हें व्यक्ति आस्था के आभाव के कारण स्वीकार करता हैं, यह सच हैं मस्तिष्क जो सोच सकता हैं और जिसमे विश्वास कर सकता हैं, उसे वह हासिल भी कर सकता हैं। मस्तिष्क कितना अद्भुद और शक्तिशाली हैं मस्तिष्क की इतनी आश्चर्यजनक शक्ति के बावजूद की कोशिश ही नहीं करते हैं यही वजय हैं कि वे डरों और मुश्किलों से भयभीत होकर जीवन जीते हैं, उचित दृष्टिकोण, उपयुक्त मन:स्थिति और सकारात्मक सोच के साथ सही दिशा में कार्य करने वाले व्यक्ति अपने जीवन में सफलता के नयें आयाम स्थापित करते हैं।

    "जोश में होश खोना"

    By: Successlocator On: अक्तूबर 22, 2015
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  • उतेजना ,भावना और जोश हमारी
    मानवीय गुण हैं जीवन में हम कभी कभी
    बहुत ही जोशिलें हो जाते हैं. क्या
    सही है क्या बुरा इसका ख्याल ही
    नहीं रह जाता है. जोश में आना बुरा
    नही है परन्तु होश के साथ.बिना होश
    का जोश विनाशक होता है.इसका
    बैज्ञानिक कारण यह है की जब हम
    जोश में होश खोते हैं तो उस स्थिति
    में हमारी श्वाँस की लय बिगड़
    जाती है ,हमारे मस्तिष्क में आक्सीजन
    की आपूर्ति नही हो  है.इसका
    परिणाम यह होता है की
    दिमाग सही निर्णय नही ले पता है
    की क्या बुरा है सही और हमारे से गलत
    कार्य हो जाता है.इसी बात पर आज
    के नेता(हमारे कर्णधार) की कहानी
    को लेते
    हैं.........
    नाव चली जा रही थी। बीच मझदार
    में नाविक ने कहा,
    "नाव में बोझ ज्यादा है, कोई एक
    आदमी कम हो जाए तो अच्छा, नहीं
    तो नाव डूब जाएगी।"
    अब कम हो जए तो कौन कम हो जाए?
    कई लोग तो तैरना नहीं जानते थे: जो
    जानते थे उनके लिए नदी के बर्फीले
    पानी में तैर के जाना खेल नहीं था।
    नाव में सभी प्रकार के लोग
    थे-,अफसर,वकील,, उद्योगपति,नेता
    जी और उनके सहयोगी के अलावा आम
    आदमी भी।
    सभी चाहते थे कि आम आदमी पानी
    में कूद जाए।
    उन्होंने आम आदमी से कूद जाने को
    कहा, तो उसने मना कर दिया।
    बोला, जब जब मैं आप लोगो से मदत
    को हाँथ फैलता हूँ कोई मेरी मदत नहीं
    करता जब तक मैं उसकी पूरी कीमत न
    चुका दूँ , मैं आप की बात भला क्यूँ मानूँ?
    "
    जब आम आदमी काफी मनाने के बाद
    भी नहीं माना, तो ये लोग नेता के
    पास गए, जो इन सबसे अलग एक तरफ बैठा
    हुआ था।
    इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने के बाद
    कहा, "आम आदमी हमारी बात नहीं
    मानेगा तो हम उसे पकड़कर नदी में फेंक
    देंगे।"
    नेता ने कहा, "नहीं-नहीं ऐसा करना
    भूल होगी। आम आदमी के साथ
    अन्याय होगा। मैं देखता हूँ उसे - नेता ने
    जोशीला भाषण आरम्भ किया
    जिसमें राष्ट्र,देश, इतिहास,परम्परा
    की गाथा गाते हुए, देश के लिए बलि
    चढ़ जाने के आह्वान में हाथ
    ऊँचा करके कहा,
    ये नाव नहीं हमारा सम्मान डूब रहा है
    "हम मर मिटेंगे, लेकिन अपनी नैया नहीं
    डूबने देंगे… नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे"….
    सुनकर आम आदमी इतना जोश में आया
    कि वह नदी के बर्फीले पानी में कूद
    पड़ा।
    "दोस्तों पिछले 65 सालो से आम
    आदमी के साथ यही तो होता आया
    है "

    "आलोचक-आपकामार्गदर्शक "

    By: Successlocator On: अक्तूबर 22, 2015
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  • "आलोचक-आपका
    मार्गदर्शक "
    एक धनवान व्यक्ति भेंगा था. उसे
    अपनी आंखों के दोष का पता न था.
    एक दिन उसने दर्पण में देखा कि उसकी
    आंखों की बनावट दूसरे व्यक्तियों से
    भिन्न तथा खराब है. उसे लगा दर्पण
    खराब है. दूसरे दर्पण में देखा, उसमें भी
    आंखों में दोष दिखायी दिया. उस
    व्यक्ति को क्रोध आ गया. जिस
    दर्पण में भी उसे अपनी आंखें दोषपूर्ण
    दिखती, वह उन सभी दर्पणों को
    तुड़वा देता. घर के सारे दर्पण तोड़ दिये
    गये थे. कुछ दिन तक ऐसा ही चलता
    रहा. जहां दर्पण मिलता, वह उसे तोड़
    देता.
    एक दिन उसके मित्र ने उससे दर्पण तोड़ने
    का कारण पूछा. कारण सुनने के बाद
    मित्र ने कहा,‘‘भाई कमी दर्पण में नहीं,
    तुम्हारी आंखों में है. दर्पण में जो
    दिखता है, वह तो प्रतिबिंब मात्र है.
    कहने का मतलब कि यदि
    कोई आलोचना करे, तो आलोचक में
    कमी न देख, आत्ममंथन कर जरूरी सुधार
    करें. यदि कोई आपकी आलोचना कर
    रहा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि
    आपमें वाकई कोई दोष या कमी है.
    आलोचना का एक पक्ष यह भी हो
    सकता है कि आपके आलोचक आपसे कुछ
    भिन्न विचार रखते हों. अमेरिकी
    राजनेता एलेनर रुजवेल्ट के अनुसार कोई
    आपको तब तक नीचा नहीं दिखा
    सकता, जब तक कि स्वयं आपकी उसके
    लिए सहमति न हो. घर हो या बाहर,
    ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां आपको
    आलोचना का सामना न करना पड़े. हर
    क्षेत्र में और हर जगह यह एक आम बात है.
    यह कभी स्वस्थ तरीके से
    की जाती है तो कभी बीमार
    मानसिकता से भी. ठीक इसी तरह इसे
    ग्रहण करने की बात भी है. कुछ लोग इसे
    स्वस्थ मन से स्वीकार करते हैं और कुछ
    इसी से अपने मन को बीमार बना लेते हैं.
    कुछ ऐसे भी होते हैं जो सुनते हैं, अगर उन्हें
    लगता है कि बात सही है तो गुनते हैं,
    वरना ठहाका लगाते हैं और आगे बढ़
    जाते हैं.
    किसी की आलोचना का आप पर
    कैसा असर होता है, यह बहुत हद तक
    आपके नजरिये पर निर्भर है. इस नजरिये
    से ही यह तय होता है कि आप अपनी
    जिंदगी में किस हद तक सफल होंगे.
    इसीलिए सजग लोग आलोचना को
    भी अपने व्यक्तित्व विकास की
    योजना का एक जरूरी हिस्सा बना
    लेते हैं.
    - बात पते की
    * कोई आपको तब तक नीचा नहीं
    दिखा सकता, जब तक कि स्वयं
    आपकी उसके लिए सहमति न हो.
    * इसीलिए सजग लोग आलोचना को
    भी अपने व्यक्तित्व विकास की
    योजना का एक जरूरी हिस्सा बना
    • लेते हैं.

    "खुद की क्षमताओं पर भरोसा"

    By: Successlocator On: अक्तूबर 22, 2015
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  • खुद की क्षमताओं पर भरोसा होना
    आत्मविश्वास का जरूरी हिस्सा है।
    कुछ लोग स्वाभाविक रूप से
    आत्मविश्वासी होते हैं, तो कुछ को इसे
    विकसित करने की जरूरत होती है।
    अपनी काबलियत पर हमें हमेशा
    विश्वास करना चाहिए, क्योंकि
    जीवन में हमें अपना आत्म विश्वास और
    अपनी काबलियत ही आगे ले जाती है।
    खुद में आत्मविश्वास पैदा करने की जरूरत
    है। अपनी उपलब्धियों पर नजर डालें।
    अक्सर अभावों के बारे में सोचने के
    कारण अपनी क्षमता और प्रतिभा का
    बेहतर इस्तेमाल नहीं कर पाते।
    आत्मविश्वास में सुधार करने की दिशा
    में काम करें। तनाव की स्थितियों में
    बेहतर कार्य करने का कौशल विकसित
    करें। सकारात्मक लोगों के साथ रहें।
    यदि आपको अपने चुने हुए मार्ग पर
    विश्वास है, और इस पर चलने का साहस
    और मार्ग की हर कठिनाई को जीतने
    की शक्ति है, तो आपका सफल होना
    निश्चित है। इसी संदर्भ में एक कहानी
    से कुछ सीखते हैं ………
    बहुत समय पहले की बात है , एक राजा
    को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे
    भेंट किये । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे ,
    और राजा ने कभी इससे पहले इतने
    शानदार बाज नहीं देखे थे।राजा ने
    उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी
    आदमी को नियुक्त कर दिया।जब कुछ
    महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को
    देखने का मन बनाया , और उस जगह पहुँच
    गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था।
    राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी
    बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी
    शानदार लग रहे थे ।राजा ने बाजों
    की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, ” मैं
    इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे
    उड़ने का इशारा करो ।इशारा मिलते
    ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे , पर जहाँ
    एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू
    रहा था , वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर
    वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया
    जिससे वो उड़ा था।
    ये देख , राजा को कुछ अजीब
    लगा.“क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी
    अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा
    बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”,
    राजा ने सवाल किया।” जी हुजूर , इस
    बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो
    इस डाल को छोड़ता ही नहीं।”राजा
    को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो
    दुसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना
    देखना चाहते थे।अगले दिन पूरे राज्य में
    ऐलान करा दिया गया कि जो
    व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में
    कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया
    जाएगा।फिर क्या था , एक से एक
    विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का
    प्रयास करने लगे , पर हफ़्तों बीत जाने के
    बाद भी बाज का वही हाल था, वो
    थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर
    आकर बैठ जाता।
    फिर
    एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने
    देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में
    उड़ रहे हैं। उन्हें अपनी आँखों पर यकीन
    नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति
    का पता लगाने को कहा जिसने ये
    कारनामा कर दिखाया था।वह
    व्यक्ति एक किसान था।अगले दिन वह
    दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में
    स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने
    कहा , ” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम
    इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े
    विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे कर
    दिखाया। ““मालिक ! मैं तो एक
    साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की
    ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस
    वो डाल काट दी जिसपर बैठने का
    बाज आदि हो चुका था, और जब वो
    डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने
    साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।
    प्रिये मित्रों, हम सभी ऊँचा उड़ने के
    लिए ही बने हैं। लेकिन कई बार हम जो
    कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं
    कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की , कुछ
    बड़ा करने की काबलियत को भूल जाते
    हैं।

    संगत का असर

    By: Successlocator On: अक्तूबर 22, 2015
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  • संगत का असर सब कुछ बदल देता है। संगत अर्थात् दोस्ती, मित्रता, साथ है। संगत के कारण चाल-ढाल, पहरावा, खानपान, बात करने का तरीका, चरित्र सब कुछ में बदलाव आ जाता है।इसी बात को हम एक कहानी द्वारा देखते हैं.
    एक बार एक राजा शिकार के लिए अपने काफिले के साथ किसी जंगल से गुजर रहा था. दूर-दूर तक शिकार नजर नहीं आ रहा था. वे धीरे-धीरे घनघोर जंगल में प्रवेश करते गये. उन्हें कुछ डाकुओं के छिपने की जगह दिखायी दी. पास पहुंचे तो पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा, ‘‘पकड़ो-पकड़ो एक राजा आ रहा है. इसके पास बहुत सारा सामान है. लूटो-लूटो.’’


    तोते की आवाज सुन कर सभी डाकू राजा की और दौड़ पड़े. डाकुओं को अपनी और आते देख कर राजा और उसके सैनिक दौड़ कर भाग खड़े हुए. भागते-भागते कोसों दूर निकल गये. सामने एक बड़ा-सा पेड़ दिखायी दिया. कुछ देर सुस्ताने के लिए उस पेड़ के पास चले गये. जैसे ही पेड़ के पास पहुंचे कि उस पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा, ‘‘आइए राजन, हमारे साधु महात्मा की कुटी में आपका स्वागत है. अंदर आइए, पानी पीजिए और विश्रम कर लीजिए.’’


    तोते की इस बात को सुन कर राजा हैरत में पड़ गया और सोचने लगा कि एक ही जाति के दो प्राणियों का व्यवहार इतना अलग-अलग कैसे हो सकता है. राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह तोते की बात मान कर अंदर साधु की कुटिया की ओर चला गया. साधु-महात्मा को प्रणाम कर उनके समीप बैठ गया और अपनी सारी कहानी सुनायी, फिर पूछा, ‘‘ऋषिवर इन दोनों तोतों के व्यवहार में आखिर इतना अंतर क्यों है ?’’


    साधु महात्मा बोले, ‘‘ये कुछ नहीं राजन, बस संगति का असर है. डाकुओं के साथ रह कर तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है. जो जिस वातावरण में रहता है, वह वैसा ही बन जाता है. मूर्ख भी विद्वानों के साथ रह कर विद्वान बन जाता है और अगर विद्वान भी मूर्खो की संगत में रहता है, तो उसके अंदर भी मूर्खता आ जाती है.
    सच बात तो यह है की संगत का प्रभाव हर मनुष्य पर होता है। इसलिए हमेशा ऐसी संगत ढूँढें जिससे हमारे मन में कभी बुरे विचार न पैदा न हों। क्योंकि हम चाहें या न चाहें जिस भी व्यक्ति से हम संपर्क करते हैं उसकी बातों का प्रभाव हम पर पड़ता है। अगर हम किसी कामी, व्यसनी, परनिंदक व्यक्ति से संपर्क रखते हैं तो स्वयं अपने अन्दर ही तकलीफ अनुभव होती है यह अलग बात है की अपने अज्ञान की वजह से उसे देख नहीं पाते हैं। इसके विपरीत कुछ लोगों को देखकर अच्छा लगता है क्योंकि अपने गुणों के कारण उनमें आकर्षण होता है। इसलिए हमेशा बेहतर लोगों की संगत करना चाहिए।
    कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय |खीर खीड भोजन मिलै, साकट संग न जाय ||.......संत कबीर दास जी कहते हैं कि साधु की संगत में अगर भूसी भी मिलै तो वह भी श्रेयस्कर है। खीर तथा तमाम तरह के व्यंजन मिलने की संभावना हो तब भी दुष्ट व्यक्ति की संगत न करें।
                                                                        दुष्ट लोगों की संगत का दुष्परिणाम भोगना ही पड़ता है यह एक ऐसा सत्य है जिसे झुटलाया नहीं जा सकता | सज्जन पुरुष और दुष्ट का कोई मेल नहीं और जब भी यह मिले कीचड़ सज्जन पुरुष पे अवश्य पड़ता है | आज कल एक होड़ सी लगी रहते है कि कैसे पैसे वालों से सम्बन्ध बनाये जाएं, कैसे समाज के ताक़तवर लोगों से सम्बन्ध बनाये जाएं | ऐसे चक्करों में यदि कोई सज्जन पुरुष दुनिया कि देखा देखि पड़ गया तो दुष्परिणाम भोगना ही पड़ता है |

           रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग ।
           करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ॥

    17 अक्तू॰ 2015

    जानें सफलता के मंत्र

    By: Successlocator On: अक्तूबर 17, 2015
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  • जानें सफलता के मंत्र





    हर व्यक्ति की मूलभूत चाहत होती है कि उसके जीने के मायने हों। वह इतना सक्षम हो कि न केवल अपनी वरन अपने परिजनों-परिचितों की भी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति कर सके। समाज में उसका सम्माननीय स्थान हो। उसकी राय हर छोटे-बड़े काम में ली जाए। वह लोगों की सोच को अपनी इच्छानुसार प्रभावित कर सके। 

    सीधे शब्दों में कहें तो हर व्यक्ति चाहता है कि उसके पास काम, दाम, नाम, सम्मान और कमान सभी हो। जिस व्यक्ति के पास ये उपलब्धियां हों उसे सफल कहा जा सकता है। सफल का अर्थ है- स+फल = फल सहित, अर्थात उपलब्धि सहित, महत्व सहित। सफलता का अर्थ डिग्री पाना, नौकरी लगना, पैसा कमाना मात्र नहीं है। व्यक्ति की सामाजिक हैसियत एवं उपयोगिता भी उसकी सफलता की कसौटी है। इस बात को यूं भी कहा जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति सफल होना चाहता है तो उसका उपरोक्त पांच उपलब्धियों पर अधिकार होना चाहिए। 

    हम देखते हैं हमारे चारों ओर ऐसे कई लोग हैं, जो सफलता के लिए कठोर श्रम करते हैं पर सफलता कुछ गिने-चुने लोगों को ही मिलती है। हम इसे तकदीर का खेल कहते हैं। पर यदि विश्लेषणात्मक नजरिए से हम देखें तो पाएंगे कि सफल एवं असफल व्यक्तियों में एक मूलभूत अंतर है। यद्यपि कठोर श्रम दोनों करते हैं, पर सफल व्यक्तियों के पास एक स्पष्ट दृष्टिकोण होता है। वे अंधेरे में तीर नहीं चलाते। उन्हें प्रस्तुत समस्या की समझ होती है और उसके निदान की एक तर्कपरक, व्यावहारिक योजना होती है। 

    जहां दरवाजों से पहुंचा जा सकता है, वहां दीवारों में सिर टकराकर रास्ता बनाने की कोशिश करना कठोर श्रम का उदाहरण हो सकता है, पर साथ ही यह उदाहरण है वज्र मूर्खता का। कुछ सूत्र हैं जो उन दरवाजों की तरह हैं जिनसे सफलता के सिंहासन तक पहुंचा जा सकता है। ये सूत्र हैं-

    हमेशा खुश रहें दूसरों को भी खुश रखें
    यह सूत्र जितना नैतिक एवं मानवीय मूल्य रखता है, उतना ही वैज्ञानिक मूल्य भी रखता है। मनोविज्ञान के अनुसार हम अपना श्रेष्ठ तभी दे सकते हैं या अपनी क्षमताओं का अधिकतम उपयोग तभी कर सकते हैं, जब हम सौहार्दपूर्ण तनावरहित वातावरण में काम कर रहे हों। जिस प्रकार जहां प्रकाश हो वहां अंधकार नहीं हो सकता, उसी प्रकार जहां खुशी हो, प्रसन्नता हो वहां तनाव नहीं हो सकता।

    कार्य पूर्ण लगन और उत्साह से करें
    सफलता के मार्ग पर व्यक्ति की गाड़ी तभी तक चलती है, जब तक इसमें लगन एवं उत्साह का ईंधन होता है। लगन एवं उत्साह उत्पन्न होता है समर्पण एवं चाहत से। सफलता की पहली शर्त, पहला सूत्र यह है कि सफलता की ऐसी चाहत होनी चाहिए जैसे जीवन के लिए प्राणवायु की। सफलता का रहस्य ध्येय की दृढ़ता में है।

    समय के पाबंद रहें
    समय की महत्ता दर्शाते ढेरों कहावतें, मुहावरे दुनिया की लगभग हर भाषा में मिल जाएंगे। यह सत्य सभी मानेंगे कि समय अपनी चाल से चलता है न धीमा न तेज। समय उनके लिए अच्छा चलता प्रतीत होता है, जो समय के साथ चलते हैं और उनके लिए खराब चलता है, जो समय से पीछे चलते हैं या तेज भागने की कोशिश करते हैं। जब तक समय प्रबंधन (टाइम मैनेजमेंट) नहीं होता, तब तक समय हमारे नियंत्रण के बाहर चलता रहेगा। अतः दीर्घसूत्रता या काम का आज-कल पर टालमटोल नहीं होना चाहिए।

    रहें सचेत एवं जागरूक
    सिद्धांततः जीवन में वही सबसे अधिक सफल व्यक्ति है, जो सबसे अधिक जानकार है। जो क्षेत्र हमारी दृष्टि परिधि में होता है हम साधारणतः उसी के प्रति सचेत एवं जागरूक होते हैं। यही बात हमारे दृष्टिकोण या नजरिए के बारे में भी सत्य है। हमारा कार्यक्षेत्र एवं नियंत्रण क्षेत्र बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि हम अपना दृष्टिकोण व्यापक बनाएं। अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाने का तरीका है अपने आंख-कान खोलकर रखना, बुद्धि को सूक्ष्म और हृदय को विशाल बनाना।

    सकारात्मक दृष्टिकोण रखें
    अंधेरे में रास्ता दिखाने हेतु एक दीपक पर्याप्त होता है। आशावाद के जहाज पर चढ़कर हम मुसीबतों एवं समस्याओं के तूफानों से उफनते असफलताओं के महासागर को भी पार कर सकते हैं।

    अपनी क्षमताओं और कमजोरियों को पहचानें
    हर व्यक्ति में कुछ न कुछ कमजोरियां होती हैं। शतरंज के खेल की तरह हमें हर कदम सोच-समझकर अपनी ताकत एवं सीमाओं का आकलन करते हुए उठाना चाहिए। हां, सावधानी शतरंज के खेल से भी अधिक रखनी चाहिए, क्योंकि जीवन कोई खेल नहीं है।

    अपनी हार की संभावना समाप्त कर दें
    जीत या सफलता सुनिश्चित करने का तरीका है हार की संभावना समाप्त कर देना। सफलता की तैयारी का महत्वपूर्ण भाग है उन कारकों को पहचानकर मूल से समाप्त कर देना जिनसे असफलता आ सकती है। ये वे कारक हैं, जो आपकी तैयारी की कमजोर कड़ी हैं। ये वे कारक हैं, जो लक्ष्य से आपका ध्यान विचलित कर सकते हैं। ये वे कारक हैं जिनका आपका प्रतिद्वंद्वी लाभ उठा सकता है। पराजय से बचना विजय ही को निमंत्रण है। नुकसानी की संभावना समाप्त होने पर ही नफे की शुरुआत है। इसी तरह असफलता की संभावना से रहित तैयारी ही सफलता की गारंटी है।

    कार्यों से ही दूसरों का दिल जीता जा सकता है न कि महज शब्दों से
    व्यक्ति का आचरण एवं उसके कर्म ही उसकी पहचान होते हैं। यदि हम दूसरों के हृदय में स्थायी जगह चाहते हैं तो इसका आधार हमारे ईमानदारीपूर्ण कर्म ही हो सकते हैं। महज शब्दों द्वारा अपनत्व बताना रेत पर बनी लकीरों की तरह होता है जिन्हें हर आती-जाती सागर की लहर बनाती-मिटाती रहती है। पर कर्म पाषाण पर उकेरी आकृति की तरह होता, जो एक स्थायी स्मृति बन जाता है।

    ईमानदारी और उदारता को अपनी पहचान बनाएं 
    कोई भी सामाजिक गतिविधि जनसहयोग के बगैर पूर्ण नहीं हो सकती। लोग तभी हमारे साथ रहेंगे जब उन्हें हमारी ईमानदारी पर भरोसा होगा और हमारा साथ उन्हें गरिमापूर्ण महसूस हो। बेईमानी, भय और उपेक्षा की नींव पर हम सहयोग की इमारत खड़ी नहीं कर सकते।

    कभी दूसरों की नकल न करें
    कमान उन्हीं के हाथों में होती है, नेता वही होते हैं, जो अपना मार्ग स्वयं निर्माण करते हैं और उस पर जनसमूह को ले जाते हैं। इतिहास ऐसे ही नेतृत्व को याद रखता है। अंधानुकरण कर भेड़चाल चलने वाले कभी सफल नहीं हो सकते। सफलता की रेखाएं उन्हीं मनुष्यों के कपाल में अंकित हैं जिनके हृदय में नवीन आविष्कारों की आंधी पैदा हुआ करती है। 

    उपरोक्त सूत्र हमारे हाथों की दस उंगलियों की तरह हैं। जब दसों सूत्र एकसाथ काम करते हैं, तब दोनों हाथों की मुट्ठियों की गिरफ्त में होता है सफलता का परचम। 

    ये सूत्र चमत्कारिक सफलता दे सकते हैं, पर मात्र सूत्र पढ़ने से चमत्कार नहीं हो सकता है। सतत प्रयास, अवलोकन और अभ्यास से ही सफलता के ये सूत्र सिद्ध हो सकते हैं। यहां यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि सफलता पाने में जितने कुशलता, संकल्प और श्रम की आवश्यकता होती है, उससे कहीं अधिक कुशलता, संकल्प और श्रम इस सफलता को बनाए रखने के लिए लगते हैं।


    सफल बनने के लिए समय खरीदना सीखें

    By: Successlocator On: अक्तूबर 17, 2015
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  • सफल बनने के लिए समय खरीदना सीखें



    दोस्तों !!! आजकल Life इतनी Fast होती जा रही है कि सभी लोग Life में एक दूसरे से आगे निकलने की लगातार कोशिश कर रहे हैं और इस लगातार कोशिश के कारण लोगों ने Life को इतना Busy बना लिया है कि उन्हें दिन के 24 घंटे भी कम लगने लगे है। आजकल बहुत से लोगों के पास पैसा तो बहुत है लेकिन समय की कमी है , वह सोचते हैं कि यदि उनके पास और समय होता तो वह और ज्यादा पैसा कमा पाते लेकिन यह बात भी सत्य है कि 24 घंटे से ज्यादा किसी को नहीं मिल सकते।

    एक चीनी कहावत  में यह कहा गया है कि "एक इंच सोने से भी एक इंच समय नहीं खरीदा जा सकता।" लेकिन क्या ये कहावत सही है ??? क्या हम समय को नहीं खरीद सकते ???  मेरा मानना है कि आप समय को खरीद सकते है। लोग अपने कुछ काम Pending में रखकर समय को बचाते हैं ताकि कुछ जरूरी दूसरे काम कर सकें लेकिन इस तरीके से फायदा होने की बजाए नुकसान होता है क्योकि जो काम Pending में रखे जाते है वह समय से पूरे नहीं हो पाते। अतः मेरा मानना है कि हम लोगों को समय बचाने की जगह समय खरीदना सीखना चाहिए। समय खरीदने से ही कोई काम Pending में रखना पड़ता है और ही समय  कमी महसूस होती है। समय को खरीदकर हम जितने चाहे काम पूरे कर सकते हैं।


    time and money
    सफल बनने के लिए समय खरीदना सीखें



    आपका एक घंटे का मूल्य कितना है ???

    समय को खरीदना सीखने से पहले आपको अपने एक घंटे के मूल्य का पता लगाना होगा। इसके लिए आप एक फॉर्मूले की सहायता से अपने एक घंटे का मूल्य जान सकते हैं और वह फॉर्मूला है.…

    आपके एक घंटे का मूल्य = आपकी महीने की आमदनी / काम के घंटे

    यानी आप अपनी आमदनी को काम के घंटों से भाग (Divide) करते हैं तो आप अपने एक घंटे का मूल्य जान सकते हैं। 
    उदहारण  के लिए यदि आप प्रत्येक महीने 40000 रुपये कमाते है और इसके लिए आपको महीने में 200 घंटे काम करना होता है तो आपके एक घंटे का मूल्य होगा 40000 /200 = 200 रुपये। इस तरह आप भी अपने एक घंटे मूल्य जान सकते है। 


    समय को कैसे खरीदा जा सकता है ???

    यदि आपने अपने एक घंटे  मूल्य जान लिया है तो अब आप समय को खरीद सकते है। उदहारण  के लिए यदि आपके एक घंटे का मूल्य 200 रुपये है और यदि आपको बैंक में पैसे जमा करने जाना है और इस काम के लिए आपको एक घंटे का समय चाहिए तो यह समझ लीजिये कि यदि आप पैसे जमा करने जाते हैं तो आपको 200 रुपये का नुकसान होगा।  अब यदि आप यही काम किसी को 50 रुपये देकर करवा लेते हैं तो आपको अब 150 रूपये का फायदा होगा यानी इस तरीके से आपने किसी दूसरे व्यक्ति का एक घंटे का समय खरीद लिया। कंपनियों के मालिक भी यही करते हैं। जरा सोचें कि कंपनी का मालिक तो अपनी कंपनी में बनने वाले Products को बनता है और ही खुद बेचता है लेकिन मुनाफा उसी की जेब में जाता है। कंपनी का मालिक अपने कर्मचारियों को Pay देकर उन्हें काम करवाता है यानी कंपनी का मालिक दूसरों का समय खरीद लेता है।

    आपको समय खरीदने की ज्यादा से ज्यादा कोशिश करनी चाहिए। उदहारण  के लिए आप पैसेंजर ट्रेन में यात्रा करना पसंद करेंगे या सुपरफास्ट ट्रेन में ??? जाहिर है कि यदि आप एक Busy Person हैं तो आप सुपरफास्ट ट्रेन में यात्रा करना पसंद करेंगे। इसके लिए आप सुपरफास्ट ट्रेन का महंगा टिकट ख़रीदेंगे कि पैसेंजर ट्रेन का सस्ता टिकट खरीदेंगे। यहाँ आपका उद्देश्य ज्यादा पैसे देकर समय को खरीदना होगा। यदि आपका समय और ज्यादा कीमती है तो आप सुपरफास्ट ट्रेन की जगह हवाई जहाज से यात्रा कर सकते हैं।

    पैसों से समय खरीदने का ये तरीका आज पूरे संसार में अपनाया जाता है। बड़ी बड़ी कंपनियों के मालिक इस तरीके का बहुत फायदा उठाते हैं। बहुत सी विदेशी कंपनियाँ पैसे देकर अपना काम भारतीय कंपनियों से सस्ते में करवाती हैं यानी वह पैसे देकर भारतीय कंपनियों का समय खरीद लेती है।

    आपने अनेक बार ये देखा होगा कि Busy Person या Rich Person कभी भी किसी Shop से मोलभाव नहीं करते हैं क्योकि उनका समय बहुत कीमती होता है। उदहारण  के लिए यदि किसी Busy Person के एक घंटे का मूल्य 500 रूपये है और यदि वह Shopping करते समय एक घंटे मोलभाव करके यदि 300 रुपये बचा भी लेता है तो वह कुल मिलकर 200 रुपये नुकसान में ही रहेगा। अतः busy person अपने एक घंटे के मूल्य जानता है और इसी वजह से Shopping के समय मोलभाव करने से बचता है।


    समय खरीदने के तरीके से किसको परेशानी होती है ???

    समय खरीदने के तरीकों से सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगो को होती है जो अपना काम जरूरत पड़ने पर भी दूसरों से नहीं करवाते क्योकि वह प्रत्येक काम खुद ही करना पसंद करते हैं। वह पैसे बचाने के चक्कर में छोटे छोटे काम खुद ही करते हैं। इस आदत से कभी कभी उनके Important Work भी रुक जाते हैं और उन्हें घाटे का सामना करना पड़ता है।

    आजकल के आधुनिक समय में समय को खरीदना एक जरूरत बनता जा रहा हैं।  अतः समय को खरीदने के नए नए तरीकों को अपनाना चाहिए। बहुत से ऐसे काम होते है जो दूसरों को पैसे देकर कराये जा सकते है और यदि किसी का समय खरीदने से आपके पास समय बचता है और आप पैसे भी बचा पाते हैं तो आपको समय जरुर खरीदना चाहिए। जॉर्ज रॉबर्ट गिसिंग के इन शब्दों को हमेशा ध्यान रखिए "समय ही धन है लेकिन यदि आप इसे उलट देते हैं तो एक मूल्यवान सत्य का पता चलता है कि धन ही समय है। "